अभिव्यक्ति का महत्व

हमारा लोकतंत्र हमें आलोचना का अधिकार देता है, लेकिन हमें किसी के अपमान या अवमानना की छूट कतई नहीं है.

By संपादकीय | December 9, 2020 12:20 PM

लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में मौलिक अधिकारों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विशिष्ट स्थान है. तकनीक के वर्तमान युग में सोशल मीडिया ने नागरिकों के लिए अपने विचारों को रखने, संवाद करने और विमर्श में हिस्सा लेने का व्यापक मंच उपलब्ध कराया है. इंटरनेट पर सूचनाओं, तर्कों एवं तथ्यों के सतत और तीव्र प्रवाह ने अभिव्यक्ति को भी धार दिया है. ऐसे में भारत के महान्यायवादी (अटॉर्नी जनरल) केके वेणुगोपाल का यह कहना बहुत महत्वपूर्ण है कि सोशल मीडिया पर नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश नहीं लगाया जाना चाहिए क्योंकि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ऐसा करना उचित नहीं होगा.

पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया पर कुछ व्यक्तियों के बयानों से विवाद उत्पन्न होता रहा है तथा अनेक मामलों में सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना का प्रश्न भी सामने आया है. देश के सबसे बड़े कानून अधिकारी होने के नाते न्यायालय की अवमानना की शिकायत पर सुनवाई के लिए अटॉर्नी जनरल की सहमति आवश्यक होती है. वेणुगोपाल ने कुछ शिकायतों को इसके योग्य नहीं पाया है.

उन्होंने कहा भी है कि बहुत गंभीर मामलों में ही सर्वोच्च न्यायालय कार्रवाई की पहल करता है. सरकारों द्वारा भी सोशल मीडिया में कही-लिखी बातों पर आपराधिक मामला दर्ज करने और लोगों को हिरासत में लेने के कई उदाहरण हैं. बीच-बीच में ऐसे अंदेशों पर भी चर्चा होती है कि केंद्र या राज्य सरकारें सोशल मीडिया को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही हैं. वेणुगोपाल का स्पष्ट मानना है कि ऐसा कोई भी प्रयास उचित नहीं है और अगर कोई मामला सामने आता है, तो सर्वोच्च न्यायालय उस पर विचार कर सकता है.

यह अपेक्षा की जा सकती है कि हमारी सरकारें लोकतंत्र में खुली बहस के महत्व पर अटॉर्नी जनरल के वक्तव्य का संज्ञान लेते हुए ऐसी कोई भी पहल नहीं करेंगी, जिससे सोशल मीडिया का खुलापन सीमित होता है. किंतु यह भी आवश्यक है कि नागरिक पूरे उत्तरदायित्व के साथ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उसके माध्यमों का इस्तेमाल करें. अक्सर देखा जाता है कि लोग अभद्र टिप्पणियां करते हैं, निराधार व्यक्तिगत आक्षेप लगाते हैं तथा घृणा और झूठ फैलाने की कोशिश करते हैं. हिंसा उकसाने और हिंसा करने की धमकी देने के भी कई प्रकरण हैं. यह समझा जाना चाहिए कि अभिव्यक्ति संयमित भाषा और विमर्श की मर्यादा के साथ होनी चाहिए.

हमारा लोकतंत्र हमें आलोचना का अधिकार देता है, लेकिन हमें किसी के अपमान या अवमानना की छूट कतई नहीं है. हमें अधिकार के साथ अपने कर्तव्यों को भी साधना चाहिए. यदि सोशल मीडिया पर किसी व्यक्ति या व्यक्तियों का व्यवहार अनुचित है, तो इसे टोकने व रोकने का दायित्व भी हमारा है. तकनीक ने हमें समूचे विश्व से जोड़कर परस्पर संवाद का उत्कृष्ट माध्यम उपलब्ध कराया है. कुछ लोगों के आपत्तिजनक आचरण के कारण हमें इसे खोना नहीं चाहिए. इस मंच को स्वतंत्र रखने के लिए सरकारों, सेवा देनेवाली कंपनियों और लोगों की परस्पर सकारात्मक साझेदारी आवश्यक है.

Posted by : Pritish Sahay

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