शेख हसीना को दी गयी सजा के निहितार्थ

Sheikh Hasina : शेख हसीना सरकार के पतन के बाद से ही यूनुस का रुख यह संकेत देता रहा कि उनकी योजनाएं एक अंतरिम प्रशासन तक सीमित नहीं हैं. देश में लौटते ही उन्होंने सत्ता पर तेजी से पकड़ बनायी और उन राजनीतिक शक्तियों के साथ समीकरण स्थापित किये, जो ऐतिहासिक रूप से 1971 के मुक्ति संग्राम की भावना के विरोध में रहे हैं.

By आनंद कुमार | November 19, 2025 8:02 AM

Sheikh Hasina : शेख हसीना के विरुद्ध सुनाया गया हालिया फैसला न केवल बांग्लादेश की राजनीति के इतिहास में एक असाधारण क्षण है, बल्कि यह दर्शाता है कि न्याय के नाम पर व्यापक राजनीतिक सफाया किया जा रहा है. बांग्लादेश की अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आइसीटी) द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को अनुपस्थिति में मृत्युदंड सुनाया जाना इस दिशा में सबसे बड़ा कदम माना जा रहा है. अवामी लीग देश की धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक धारा, मुक्ति संग्राम की विरासत और लोकतांत्रिक मूल्यों की वाहक रही है. पर अंतरिम सरकार के मुखिया प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में दिये गये फैसले से प्रतीत होता है कि यह केवल हसीना को दंडित करने का प्रयास नहीं, बल्कि अवामी लीग और 1971 की विचारधारा की जड़ों को उखाड़ फेंकने की संगठित कोशिश है.


शेख हसीना सरकार के पतन के बाद से ही यूनुस का रुख यह संकेत देता रहा कि उनकी योजनाएं एक अंतरिम प्रशासन तक सीमित नहीं हैं. देश में लौटते ही उन्होंने सत्ता पर तेजी से पकड़ बनायी और उन राजनीतिक शक्तियों के साथ समीकरण स्थापित किये, जो ऐतिहासिक रूप से 1971 के मुक्ति संग्राम की भावना के विरोध में रहे हैं. इस दौरान हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमलों की अनेक घटनाएं सामने आयीं. लेकिन इनकी गंभीरता को स्वीकार करने और अपराधियों पर कार्रवाई करने के बजाय यूनुस ने इन्हें अवामी लीग के समर्थकों की हरकत करार देकर खारिज कर दिया. उनके इस रवैये ने संकेत दिया कि अंतरिम शासन उन तत्वों से दूर नहीं, जो मुक्ति संग्राम विरोधी राजनीति को पुनर्जीवित करना चाहते हैं. यूनुस ने प्रारंभ से ही स्पष्ट कर दिया था कि वह शेख हसीना को हर हाल में अभियोजित करेंगे.

आलोचकों का मानना है कि यह प्रक्रिया राजनीतिक प्रतिशोध और व्यक्तिगत शत्रुता से प्रेरित है, खासकर इसलिए क्योंकि हसीना के कार्यकाल में यूनुस को कई कानूनी मामलों का सामना करना पड़ा था. न्यायाधिकरण की पूरी प्रक्रिया एक निर्वाचित सरकार के अभाव में, भय और दमन के वातावरण में और विपक्षी राजनीति पर सख्त नियंत्रण की स्थितियों में चली. शेख हसीना के भारत में शरण लेने के बाद उन्हें अनुपस्थिति में दोषी ठहराना भी इस आशंका को बढ़ाता है कि यह न्यायिक प्रक्रिया निष्पक्ष नहीं थी. इसके समानांतर अवामी लीग की विरासत को प्रतीकात्मक रूप से मिटाने की कोशिशें भी चलती रहीं. बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की प्रतिमाएं तोड़ी गयीं और ढाका के धानमंडी स्थित उनके ऐतिहासिक निवास को- जो बांग्लादेश के राष्ट्र निर्माण की सबसे महत्वपूर्ण स्मृतियों में से एक था- ध्वस्त कर दिया गया. यह स्पष्ट हो गया है कि वर्तमान शासन सिर्फ अस्थायी व्यवस्था नहीं, बल्कि एक वैचारिक परियोजना है, जो बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक पहचान को बदलने का उद्देश्य रखती है.


यूनुस ने विदेश नीति में भी नाटकीय बदलाव किये हैं. पाकिस्तान और चीन के प्रति उनका झुकाव भारत के लिए गहरी चिंता का कारण बना हुआ है. हसीना के प्रधानमंत्रीकाल में भारत-बांग्लादेश संबंधों में अभूतपूर्व निकटता आयी थी, जिसने दोनों देशों के बीच सुरक्षा, व्यापार, कनेक्टिविटी और आतंकवाद रोधी सहयोग को मजबूत किया. लेकिन अंतरिम सरकार के रवैये ने न केवल ढाका-दिल्ली के रिश्तों में तनाव बढ़ाया है, बल्कि क्षेत्रीय सुरक्षा ढांचे को अस्थिर करने की आशंका भी पैदा कर दी है. बढ़ती धार्मिक कट्टरता और अल्पसंख्यकों पर हमलों के बीच यूनुस शासन का पाकिस्तान एवं चीन के साथ बढ़ता समीकरण संकेत देता है कि बांग्लादेश की विदेश नीति का झुकाव उस दिशा में जा रहा है, जो भारत के दीर्घकालिक हितों के खिलाफ है.

ऐसे माहौल में ढाका द्वारा शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग ने भारत के लिए जटिल राजनीतिक-कानूनी परिस्थितियां खड़ी कर दी हैं. फैसले के बाद अंतरिम सरकार ने औपचारिक रूप से भारत से आग्रह किया कि वह हसीना को वापस भेजे. पर नयी दिल्ली ने इस पर कोई प्रतिबद्धता व्यक्त नहीं की है. वर्ष 2013 की भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि कहती है कि यदि आरोप राजनीतिक हों या नीयत पर संदेह हो, तो प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है. यह ध्यान में रखते हुए, कि अधिकांश अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक इस मामले को राजनीतिक प्रेरणाओं से संचालित मानते हैं, भारत के जल्दबाजी में फैसला लेने की संभावना नहीं है. फिर हसीना भारत की भरोसेमंद क्षेत्रीय साझेदारों में रही हैं, और उन्हें ऐसे समय में सौंपना जब उनका राजनीतिक आधार प्रतिबंधित है, भारत की छवि को क्षति पहुंचा सकता है और बांग्लादेश में भारत विरोधी तत्वों को मजबूत कर सकता है.

बड़ी बात यह है कि अवामी लीग पर चुनाव लड़ने से प्रतिबंध लगा दिया गया है, जबकि फरवरी में चुनाव कराने का दावा किया जा रहा है. यह स्थिति चुनावी प्रक्रिया की वैधता पर गंभीर प्रश्न खड़े करती है. भारत लगातार इस बात पर जोर दे रहा है कि चुनाव तभी अर्थपूर्ण होंगे, जब सभी प्रमुख राजनीतिक दलों की भागीदारी सुनिश्चित हो. बांग्लादेश में लोकतंत्र का भविष्य भारत की दृष्टि से अब हसीना के व्यक्तिगत भविष्य से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है. यदि अवामी लीग को चुनाव से बाहर रखा जाता है, तो बांग्लादेश गहरे राजनीतिक संकट और अस्थिरता की ओर धकेला जा सकता है.


शेख हसीना का कहना है कि 2024 की घटनाएं जनविद्रोह नहीं, सुनियोजित तख्तापलट थीं. छात्रों के प्रारंभिक आक्रोश को कट्टरपंथी तत्वों ने हथिया लिया और आंदोलन को हिंसा की ओर धकेल दिया. उन्होंने कभी प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश नहीं दिया और सरकार परिस्थितियों पर नियंत्रण खो बैठी थी. उन्होंने कभी इस्तीफा नहीं दिया, बल्कि जान के खतरे को देखते हुए देश छोड़ा. चुनावों में पंद्रह महीने की देरी, अवामी लीग पर प्रतिबंध, और तथाकथित ‘जुलाई चार्टर’, जो देश की वैचारिक नींव को बदलने का प्रयास है, सिद्ध करता है कि सत्ता पर कब्जा अवैध और अलोकतांत्रिक परिवर्तन था.

जैसे-जैसे बांग्लादेश चुनावों के करीब जा रहा है, राजनीतिक ध्रुवीकरण गहराता जा रहा है. भारत और अन्य क्षेत्रीय शक्तियों के लिए चुनौती यह है कि वे ऐसे बांग्लादेश की वकालत करें, जहां लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं वास्तविक, समावेशी और वैध हों. हसीना के खिलाफ सुनाया गया फैसला एक व्यक्ति का फैसला नहीं- यह बांग्लादेश के भविष्य, उसकी राजनीतिक दिशा और उसकी पहचान को प्रभावित करने वाला ऐतिहासिक क्षण है. यह तय करेगा कि देश लोकतंत्र की ओर आगे बढ़ेगा या ऐसे राजनीतिक अंधकार की ओर लौटेगा, जो उसकी स्वतंत्रता की मूल भावना के प्रतिकूल है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)