अर्थव्यवस्था में तेजी के आसार

विकास दर के ताजा आंकड़े आने के बाद वित्त मंत्रालय ने कहा कि आर्थिक सुस्ती ने निचला स्तर छू लिया है. यह आंकड़ा अब इससे नीचे नहीं जायेगा और अब तेजी आयेगी. कोर क्षेत्र में दिसंबर और जनवरी में तेजी रही है. चालू तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र में बेहतरी की उम्मीद है.

By सतीश सिंह | March 6, 2020 1:04 AM

सतीश सिंह

आर्थिक विशेषज्ञ

विकास दर के ताजा आंकड़े आने के बाद वित्त मंत्रालय ने कहा कि आर्थिक सुस्ती ने निचला स्तर छू लिया है. यह आंकड़ा अब इससे नीचे नहीं जायेगा और अब तेजी आयेगी. कोर क्षेत्र में दिसंबर और जनवरी में तेजी रही है. चालू तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र में बेहतरी की उम्मीद है. आठ प्रमुख उद्योगों (कोर क्षेत्र) की विकास दर जनवरी में 2.2 प्रतिशत रही. उद्योग और वाणिज्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, कोयला और सीमेंट क्षेत्र का कोर क्षेत्र की तेजी में प्रमुख योगदान रहा. एक साल पहले की समान अवधि में कोर क्षेत्र की विकास दर 1.5 प्रतिशत थी. लगातार चार महीने गिरावट के बाद जनवरी में कोर क्षेत्र में तेजी रही. दिसंबर, 2019 में कोर क्षेत्र की विकास दर 2.1 प्रतिशत थी.

कोर क्षेत्र के आंकड़े इसलिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इसका हर महीने आनेवाले औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आइआइपी) में 40.27 प्रतिशत का योगदान होता है. जनवरी, 2020 में सबसे तेज वृद्धि कोयला क्षेत्र में दर्ज हुई. इस उद्योग का उत्पादन आठ प्रतिशत की दर से बढ़ा. विकास दर्ज करनेवाले अन्य क्षेत्रों में रिफाइनरी उत्पाद की विकास दर 1.9 प्रतिशत, स्टील उद्योग की 2.2 प्रतिशत, सीमेंट उद्योग की पांच प्रतिशत और बिजली उद्योग की 2.8 प्रतिशत रही.

वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्था की हालत भारतीय अर्थव्यवस्था से भी ज्यादा बुरी है. आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओइसीडी) के अनुसार, विश्व के विविध देशों एवं देशों के केंद्रीय बैंकों को आर्थिक सुस्ती से निबटने के लिए विशेष प्रयास करने चाहिए. इस साल वैश्विक अर्थव्यवस्था में महज 2.4 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है, जो 2009 के बाद सबसे कम है. ओइसीडी का कहना है कि 2021 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में 3.3 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो सकती है.

विश्व बैंक पहले ही कोरोना की वजह से वैश्विक वृद्धि दर में एक प्रतिशत के कमी की आशंका जता चुका है. इसकी वजह से दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं चीन और अमेरिका के कारोबार में सुस्ती गहरा रही है. इससे भारत समेत अनेक देशों की अर्थव्यवस्था पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है.

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के अनुसार, कारोबारियों को बढ़ावा देने के लिए प्रौद्योगिकी को हर स्तर पर लागू करने की जरूरत है. इसकी मदद से भारत अधिक जवाबदेह, उत्तरदायी और पारदर्शी बना है. सीधे लाभ अंतरण (डीबीटी) से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा है और एक लाख करोड़ रुपये से अधिक की राशि की बचत हुई है. फरवरी 2020 में डिजिटल भुगतान, लेनदेन और वॉल्यूम दोनों दृष्टिकोणों से बढ़ा है. एनपीसीआइ द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, फरवरी में यूपीआइ लेनदेन बढ़कर 132 करोड़ हो गया, जबकि जनवरी 2020 में यह 130 करोड़ रुपये था.

भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, बैंकों का क्रेडिट ग्रोथ जनवरी 2020 में कम होकर 8.5 प्रतिशत हो गया, जो पिछले साल की समान अवधि में 13.5 प्रतिशत था. इसका कारण सेवा क्षेत्र और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) में कर्ज की कम मांग होना है. जनवरी 2020 में सेवा क्षेत्र का ऋण वृद्धि दर 8.9 प्रतिशत रही, जो जनवरी 2019 में 23.9 प्रतिशत थी. वहीं एनबीएफसी को बैंकों द्वारा ऋण देने का प्रतिशत घटकर 32.2 प्रतिशत हो गया, जो पिछले साल की समान अवधि में 48.3 प्रतिशत था. मौजूदा समय में बाजार में मांग एवं खपत दोनों कम है. इस कारण बैंक उधारी दर में कटौती कर रहे हैं. स्टेट बैंक समेत कई बैंकों ने हाल ही में उधारी दरों में कमी की है.

फिनटेक कंपनियों द्वारा ऑनलाइन ऋण देने में तेजी आयी है. सरल प्रक्रिया के कारण उधारी दर ज्यादा होने पर भी लोग ऑनलाइन ऋण लेना पसंद कर रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक, तीन सौ से अधिक फिनटेक या प्रौद्योगिकी आधारित वित्तीय कंपनियां ऑनलाइन कर्ज देने का काम कर रही हैं, जिनमें स्टार्टअप भी शामिल हैं. एक दशक पहले तक फिनटेक कंपनियों को बैंकिंग प्रणाली के कामकाज के एक अवरोधक के रूप में देखा गया था, लेकिन अब कुछ पारंपरिक बैंक और एनएफबीसी कंपनियां भी फिनटेक कंपनियों के तौर-तरीके अपनाकर अपना बैंकिंग कारोबार बढ़ा रही हैं. आइसीआइसीआइ बैंक की रिपोर्ट और क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के अनुसार, 2014 से 2019 के दौरान खुदरा ऋण लेनेवालों की संख्या दोगुनी हो गयी. वित्त वर्ष 2014 के 22 करोड़ लोगों की तुलना में वित्त वर्ष 2019 में 48 करोड़ लोगों ने ऋण लिया था. इस अवधि में ऑनलाइन कर्ज लेनेवालों की कुल संख्या में पांच गुना वृद्धि हुई है. ऐसे कर्जदारों की संख्या 15 लाख करोड़ तक पहुंच गयी है.

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