कच्चे तेल की नयी अर्थनीति से उम्मीदें

तेल कंपनियों के भारी मुनाफे पर कराधान के माध्यम से सरकार घरेलू बाजार में कच्चे तेल की आपूर्ति की कमी को पूर्व नियंत्रित करने के साथ अपने कर संग्रहण को बढ़ा सकती है.

By डॉ पीएस | July 25, 2022 9:58 AM

एक जुलाई को केंद्र सरकार द्वारा घोषित कच्चे तेल की अर्थनीति के कुछ नये प्रावधानों का आने वाले समय में सकारात्मक प्रभाव हो सकता है. इन प्रावधानों के अंतर्गत पेट्रोल, डीजल व विमानन ईंधन के निर्यात पर कर लगाया गया था, जो पेट्रोल व विमानन ईंधन के निर्यात पर छह रुपये प्रति लीटर तथा डीजल के निर्यात पर 13 रुपये प्रति लीटर था. अप्रत्याशित लाभ कर के इन दरों में 20 जुलाई से दो रुपये प्रति लीटर की कटौती की गयी है.

सोना आयात पर भी सीमा शुल्क 7.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 12.5 प्रतिशत कर दिया गया है और सोने पर उत्पाद शुल्क की दर 15 प्रतिशत होगी. इन प्रावधानों में सबसे अच्छा आर्थिक पक्ष कच्चे तेल का उत्पादन करने वाली कंपनियों पर अतिरिक्त उत्पादन कर लगाना है. इसके अंतर्गत तेल कंपनियों को उस मुनाफे पर अतिरिक्त कर देना होगा, जो उन्होंने वैश्विक बाजार में कच्चे तेल के निर्यात से कमाया है. यह कर अब 23,250 रुपये से घट कर 17 हजार रुपये प्रति टन होगा.

चालू वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में अनुमानित विकास दर पहली तिमाही बीतने के बाद से ही घट रहा है. तब इसे नौ प्रतिशत से अधिक सोचा गया था, पर विभिन्न एजेंसियों के आकलन के अनुसार अब यह पूर्वानुमान सात प्रतिशत के आसपास है. इसके पीछे कई आर्थिक कारण हैं. वित्तीय घाटा तेजी से बढ़ा है, जिसके मुख्य कारकों में खाद्य पदार्थों पर सब्सिडी में बढ़ोतरी, कच्चे तेल पर एक्साइज ड्यूटी में कमी करने से अनुमानित वार्षिक घाटा, उर्वरकों पर सब्सिडी बढ़ाना, उज्जवला योजना पर बढ़ा खर्च आदि हैं.

उल्लेखनीय है कि बजट प्रस्तुत करने के 20 दिन बाद ही रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हो गया, जो भारत के लिए भी एक आर्थिक समस्या बन कर सामने आया. कच्चे तेल के मूल्य में एकाएक बड़ी वृद्धि हुई. रूस और यूक्रेन से भारत को बड़े पैमाने पर उर्वरकों की आपूर्ति होती है. युद्ध के कारण इसमें कमी आयी और कृषि क्षेत्र को सहायता देने के लिए उर्वरकों पर सब्सिडी बढ़ानी पड़ी.

एक विकट चुनौती अमेरिकी डॉलर की तुलना में रुपये का लगातार कमजोर होना भी है. बीते पांच महीनों में इसमें अधिकतम 6.28 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी है तथा इन दिनों यह 79 रुपये से अधिक है. रुपये की गिरावट कई तरह के आर्थिक संकट पैदा करती है, जिनमें चालू वित्तीय घाटे का बढ़ना मुख्य है. यह गिरावट विदेशी निवेशकों को भी आशंकित करती है तथा इसका विपरीत प्रभाव स्टॉक मार्केट पर भी पड़ता है.

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद वैश्विक बाजार में कच्चे तेल के मूल्य में फरवरी से जून तक लगातार तेजी रही. अब इसमें कुछ गिरावट हो रही है. इसने भारतीय अर्थव्यवस्था व आम जन पर बहुत विकट प्रभाव डाला है. घरेलू बाजार में पेट्रोल, डीजल व रसोई गैस के मूल्य बढ़े और इसका असर समूचे बाजार की महंगाई के रूप में सामने आया. इस कारण सरकार को पेट्रोल व डीजल पर उत्पाद शुल्क में कटौती करनी पड़ी ताकि महंगाई नियंत्रित रह सके.

इसके बाद जब भारतीय रुपया गिरने लगा, तो स्थिति और खराब हो गयी क्योंकि इसी दौरान सोने के आयात में तेजी दर्ज की गयी. यह लगभग हर परिस्थिति में देखा जाता है कि रुपये के मूल्य में गिरावट व सोने के आयात में बढ़ोतरी में तारतम्य रहता है. चीन के बाद भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा सोने का आयातक है.

इन दिनों एक तरफ रुपया लगातार दबाव में है, तो दूसरी तरफ सोने के आयात से बाहर जाती विदेशी मुद्रा इस दबाव को और बढ़ा रही है. इसलिए ऐसा समझना जायज है कि सोने के आयात पर बढ़ायी गयीं कर दरों से जहां रुपये पर से दबाव कम होगा, वहीं सरकार को वित्तीय घाटा और व्यापार घाटा कम करने में भी सहायता मिलेगी.

हमारे देश की तेल कंपनियों ने निर्यात से इस दौरान खूब मुनाफा कमाया है. आंकड़ों के अनुसार, जनवरी तक रूस का भारत के कच्चे तेल आयात में दो प्रतिशत हिस्सा होता था, जो जून में 20 प्रतिशत तक पहुंच गया. यह भी देखने को मिला है कि रूस से सस्ते मूल्य पर तेल खरीद कर भारतीय तेल कंपनियां विभिन्न देशों को निर्यात कर रही हैं. इस पर अतिरिक्त उत्पादन शुल्क या विंडफाल टैक्स लगाना सराहनीय कदम कहा जा सकता है.

इसके माध्यम से सरकार घरेलू बाजार में कच्चे तेल की आपूर्ति की कमी को पूर्व नियंत्रित करने के साथ अपने कर संग्रहण को बढ़ा सकती है. तेल कंपनियों से प्राप्त यह उत्पाद शुल्क सीधा केंद्र सरकार के पास जायेगा. इसमें राज्यों का हिस्सा नहीं होगा, जिससे सरकार अपने वित्त घाटे तथा चालू वित्तीय घाटे को कम कर सकेगी. सरकार की घोषणा से तेल कंपनियों पर एक नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिला है.

बीते हफ्ते शेयर बाजार में सरकारी तेल कंपनियों के शेयर मूल्यों में बड़ी गिरावट आयी. निजी उपक्रमों के शेयर भी कुछ गिरे हैं. पर इन कंपनियों के निवेशकों को हतोत्साहित नहीं होना चाहिए. देश के आर्थिक हित में ऐसे प्रावधान जरूरी हैं. हालांकि इससे आगे बीपीसीएल के होने वाले विनिवेश पर भी असर पड़ सकता है. सरकार की इन घोषणाओं का उद्देश्य घरेलू बाजार में कच्चे तेल के मूल्यों को तर्कसंगत बनाना है, न कि अनावश्यक हस्तक्षेप करना.

Next Article

Exit mobile version