चीन का अतिक्रमण

भारत न केवल वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के विस्तारवादी रवैये के मुकाबले के लिए तैयार है, बल्कि समुद्र में भी चीनी वर्चस्व को चुनौती देने की क्षमता रखता है.

By संपादकीय | September 1, 2020 2:29 AM

लद्दाख के पैंगांग झील के दक्षिणी किनारे पर दो दिन पहले रात के अंधेरे में चीनी सैनिकों ने घुसपैठ कर यथास्थिति को बदलने की कोशिश की, जिसे मुस्तैद भारतीय जवानों ने विफल कर दिया है. तनातनी खत्म करने के लिए दोनों तरफ के अधिकारी बातचीत कर रहे हैं. मई से ही कई जगहों पर चीनियों द्वारा ऐसी हरकतें कर वास्तविक नियंत्रण रेखा पार करने की कोशिशें हो रही हैं. गलवान की झड़प इसी का नतीजा थी. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि 1962 के बाद से दोनों देशों के बीच मौजूदा तनाव सबसे गंभीर है. भारतीय सेना अस्थायी सीमा को बनाये रखने के लिए चौकस है और किसी भी स्थिति के लिए तैयार है, लेकिन भारत ने हमेशा कहा है कि विवादों को स्थापित प्रक्रिया के तहत सैनिक और कूटनीतिक स्तर की बातचीत से सुलझाया जाना चाहिए.

साथ ही, भारत सैन्य चुनौतियों और संभावित स्थितियों के अनुरूप अपनी तैयारी भी कर रहा है. पूर्वी लद्दाख में बड़ी संख्या में चीनी सैनिकों की मौजूदगी और आक्रामकता के मद्देनजर हमारे सैनिकों और हथियारों की भी समुचित तैनाती है. इसके अलावा, भारत ने चीन को ठोस संकेत देते हुए विवादित दक्षिण चीन सागर में नौसैनिक युद्धपोतों को भी तैनात कर दिया है. बीते एक दशक से चीन ने इस क्षेत्र में कृत्रिम द्वीपों और सैन्य उपस्थिति से अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है और वह दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों के सामुद्रिक अधिकारों का हनन करने के साथ अंतरराष्ट्रीय समुद्री मार्गों पर नियंत्रण करने के लिए प्रयासरत है. इस वजह से इस क्षेत्र में अमेरिका और अनेक देशों के युद्धपोत भी मौजूद हैं.

हमारी नौसेना उन समुद्री इलाकों और रास्तों पर भी लगातार नजर रख रही है, जहां से चीनी सेना के हिंद महासागर में घुसने की आशंका रहती है. नौसेना की इन तमाम गतिविधियों में अमेरिका समेत अन्य देशों के पोतों से निरंतर संपर्क भी शामिल है. भारत ने यह कार्रवाई अपने समुद्री मार्गों और सीमा की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए की है. इससे यह भी इंगित होता है कि भारत न केवल वास्तविक नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय स्थल सीमा पर चीन के विस्तारवादी रवैये के मुकाबले के लिए तैयार है, बल्कि जरूरत पड़ने पर समुद्र में भी चीनी वर्चस्व को चुनौती देने की क्षमता रखता है.

इसी क्रम में रूस में आयोजित बहुदेशीय युद्धाभ्यास में शामिल होने से भारत का इनकार करना यह दिखाता है कि अब हमारा देश चीन और पाकिस्तान के बरक्स अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी कड़ा रुख अपना सकता है. गलवान घाटी में बहादुर भारतीय सैनिकों ने जान की बाजी लगाकर सरहदों की सुरक्षा की थी और कई चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था. भले ही चीन इसे स्वीकार न करे, लेकिन उसके सैनिकों की कब्रों की तस्वीरें भारतीय वीरता का प्रमाण हैं. चीन को एक अच्छे पड़ोसी का बर्ताव कर पूरे क्षेत्र में शांति स्थापना में सहयोग करना चाहिए.

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