तेज हो टीकाकरण

राज्य सरकारें संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर को कैसे व्यवस्थित करेंगी, यह एक बड़ा सवाल है. निजी अस्पतालों को भी आपूर्ति, भंडारण व्यवस्था और ढुलाई को सुचारू करने की चुनौती है.

By संपादकीय | May 11, 2021 1:46 PM

जनवरी के मध्य से शुरू हुआ टीकाकरण अभियान अप्रैल के मध्य के बाद से शिथिल पड़ गया है. एक मई से 18-44 वर्ष आयु वर्ग के लिए लोगों के लिए भी टीका देने का कार्यक्रम शुरू हो चुका है, लेकिन हर राज्य समुचित मात्रा में खुराक उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं. मार्च से देश कोरोना महामारी की दूसरी लहर से जूझ रहा है. टीकाकरण में अवरोध की यह एक बड़ी वजह है, परंतु अभियान के तौर-तरीकों और वैक्सीन नीति में बदलाव से भी बहुत असर पड़ा है.

यह सही है कि अभी उपलब्ध दो टीकों का निर्माण करनेवाली कंपनियां मांग के अनुरूप आपूर्ति नहीं कर पा रही हैं, लेकिन टीकों की खरीद से जुड़े नियमों को बदलने से भी अभियान बाधित हुआ है. मई से पहले इस अभियान को पूर्ववर्ती सार्वभौम टीकाकरण प्रक्रिया के ढर्रे पर चलाया जा रहा था. उस प्रक्रिया में करीब 29 हजार केंद्र ऐसे उपलब्ध थे, जहां निर्धारित तापमान पर टीकों का भंडारण किया जा सकता है. इन केंद्रों से खुराक टीकाकरण केंद्रों में लायी जाती थीं. एक मई से लागू प्रक्रिया में अब केंद्र अलग खरीदारी करता है

तथा राज्य सरकारें और निजी अस्पताल अपने स्तर पर निर्माताओं से टीके लेते हैं. इससे पहले तीन महीने से अधिक समय के अनुभव से अभियान में स्थिरता आ गयी थी, जो अब एक हद तक भंग हुई है. अब राज्य सरकारों और निजी अस्पतालों को खरीद, भंडारण और रखरखाव की जिम्मेदारी संभालनी पड़ रही है. इससे आपूर्ति में भी देरी हो रही है और खर्च भी बढ़ रहा है. एक मई से पहले की व्यवस्था के अनुसार केंद्र सरकार उत्पादकों से टीके लेकर देश के विभिन्न हिस्सों में पहुंचाती थी.

अब केंद्र सरकार के पास कुल उत्पादन का 50 फीसदी हिस्सा आता है, जबकि बाकी 50 फीसदी राज्य सरकारें और निजी क्षेत्र हासिल करते हैं. ऐसे में मांग को पूरा करने के लिए क्षमता भी बढ़ाना होगा और आपूर्ति की व्यवस्था भी अधिक जटिल होगी. अभी देश में 58,259 सरकारी और 2304 निजी टीकाकरण केंद्र हैं. केंद्र सरकार को मिले टीके तो पहले की तरह राज्यों को वितरित होते रहेंगे, लेकिन राज्य सरकारें संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर को कैसे व्यवस्थित करेंगी, यह एक बड़ा सवाल है.

इसी तरह से निजी अस्पतालों को भी निर्माताओं से लेकर भंडारण व्यवस्था और ढुलाई को सुचारू करने की चुनौती है. ऐसे में यह आशंका आधारहीन नहीं है कि राज्यों और निजी क्षेत्र को अधिक खर्च करना पड़ेगा. अगर इस संबंध में ध्यान नहीं दिया गया, तो इस खर्च का भार लोगों को भी उठाना पड़ सकता है. बहरहाल, वैक्सीन निर्माताओं ने उत्पादन बढ़ाने का आश्वासन दिया है तथा जल्दी ही तीसरी वैक्सीन भी उपलब्ध होने की उम्मीद है. केंद्र और राज्य सरकारें भी मौजूदा चुनौतियों के समाधान के लिए प्रयासरत हैं. सर्वोच्च न्यायालय भी इस संबंध में सक्रिय है. भले आज गति धीमी हो, पर अभियान को लगातार जारी रखना जरूरी है.

Next Article

Exit mobile version