स्कूलों में बदलता होमवर्क
National Education Policy : वर्ष 2018 की वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट में पाया गया था कि 74 प्रतिशत शहरी छात्रों को दैनिक होमवर्क मिलता है, जिसमें उनके तीन से चार घंटे का समय चला जाता है, जबकि सीखने के मोर्चे पर उसका कोई विशेष लाभ नहीं होता.
National Education Policy : राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनइपी), 2020 के जरिये स्कूली छात्रों के होमवर्क में आ रहा बदलाव स्वागतयोग्य है, जिसमें रटने की बजाय सीखने पर ज्यादा जोर है. इस नीति में छात्रों पर शैक्षणिक बोझ कम करने तथा गतिविधि आधारित शिक्षा को प्रोत्साहित करने की वकालत की गयी है. केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसइ) समेत कई राज्य बोर्डों ने शिक्षकों से ऐसे होमवर्क देने को कहा है, जिन्हें करने में बच्चों को खुशी हो और उनमें प्रयोग करने की गुंजाइश हो.
ऐसे में, स्कूलों की कोशिश है कि छात्रों को होमवर्क में ही व्यस्त न रखा जाये. ज्यादातर स्कूल आज प्रोजेक्ट आधारित काम देने लगे हैं और बच्चों को सामुदायिक जुड़ाव वाली गतिविधियों में शामिल करने लगे हैं. छात्रों के होमवर्क को आसान और दिलचस्प बनाया जा रहा है, ताकि वे केवल किताबी कीड़ा बनकर न रह जायें. जोर इस पर दिया जा रहा है कि छात्र चीजों के बारे में खुद से सोचने, समझने और उन्हें बनाने की कोशिश करें. इससे बच्चों की रचनात्मकता जागती है और उनमें सोचने की क्षमता बढ़ती है. दरअसल, छात्रों को मिल रहे भारी-भरकम होमवर्क से उनकी रचनात्मकता खत्म होने लगी थी और इसे लेकर देशभर में चिंता जतायी जा रही थी.
वर्ष 2018 की वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट में पाया गया था कि 74 प्रतिशत शहरी छात्रों को दैनिक होमवर्क मिलता है, जिसमें उनके तीन से चार घंटे का समय चला जाता है, जबकि सीखने के मोर्चे पर उसका कोई विशेष लाभ नहीं होता. पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने भी शिक्षकों को एक खास तरह का होमवर्क दिया था, जिसमें उन्हें छात्रों के साथ स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने के अभियान से जोड़ा गया था, ताकि ‘मेक इन इंडिया’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ को प्रेरणा मिल सके. यह बच्चों में देशभक्ति की भावना के साथ व्यावहारिक सोच बढ़ाने में भी मददगार साबित होगा.
बदलाव के तहत अब होमवर्क में लंबे पैराग्राफ याद करने या गणित के सवाल हल करने के लिए नहीं दिये जाते. सिर्फ याद की गयी बातें पूछने के बजाय होमवर्क में छात्रों से अवधारणाओं के क्यों और कैसे को समझने की अपेक्षा भी की जाती है. छात्रों को पाठ्यपुस्तकें पढ़ने के बजाय प्रयोग, प्रोजेक्ट और नवाचार की चुनौतियों के माध्यम से सीखने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता है. ये नये तरीके आलोचनात्मक सोच, विश्लेषण और जानकारी की व्याख्या जैसी क्षमताओं को बढ़ावा देते हैं, जो रटने की प्रवृत्ति से अक्सर दब जाती रही हैं.
