प्रवासियों की देखभाल

कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लागू लॉकडाउन की शुरुआत से ही देशभर में काम रहे प्रवासी कामगारों में बेचैनी का आलम है. एक तरफ आर्थिक गतिविधियों के रुक जाने से उनकी कमाई बंद हो गयी है, दूसरी तरफ वे अपने गांव लौटना चाहते हैं. हजारों कामगार अपने परिवार को लेकर अपने गांव […]

By संपादकीय | April 14, 2020 11:05 AM

कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लागू लॉकडाउन की शुरुआत से ही देशभर में काम रहे प्रवासी कामगारों में बेचैनी का आलम है. एक तरफ आर्थिक गतिविधियों के रुक जाने से उनकी कमाई बंद हो गयी है, दूसरी तरफ वे अपने गांव लौटना चाहते हैं. हजारों कामगार अपने परिवार को लेकर अपने गांव जा भी चुके हैं या आस-पड़ोस में संक्रमण के संदेह में रखे गये हैं. लेकिन आज भी बहुत बड़ी संख्या ऐसे प्रवासियों की है, जो वापस नहीं जा सके हैं या पलायन के क्रम में उन्हें जगह-जगह रोक दिया गया है. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकारों से कहा है कि वे इनके खाने-पीने और रहने का इंतजाम करने के साथ मेडिकल और मानसिक जरूरतों का भी ख्याल रखें. इस निर्देश में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का भी उल्लेख हुआ है.

हालांकि राज्य सरकारें इन प्रवासियों के देखभाल की व्यवस्था करने की कोशिश कर रही हैं तथा केंद्र सरकार की ओर से भी मदद पहुंचाने का सिलसिला जारी है, लेकिन अभी भी यह सब नाकाफी है. भूख से बेहाल और बीमारी से लाचार मजदूरों और उनके परिवारों की चिंताजनक खबरें लगातार आ रही हैं. सरकारी विभागों और प्रशासन की भलमनसाहत और मेहनत के बावजूद कामगारों की जरूररतें पूरी नहीं हो पा रही हैं. इस वजह से अनेक जगहों पर लोग हंगामे और हिंसा पर भी उतारू होने को मजबूर हुए हैं. जब खाना ठीक से न मिले और घर लौट पाने या रोजगार मिल पाने की उम्मीदें टूटती जा रही हों, तो ऐसी घटनाओं का होना स्वाभाविक है. ऐसे में उन्हें ठीक से देखभाल मुहैया कराने के साथ बीमारियों के इलाज और मानसिक तौर पर समझाने-बुझाने की जरूरत बढ़ती जा रही है.

कोरोना वायरस कितनी बड़ी चुनौती है और इससे निपटने के प्रयास में किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, यह कामगारों को भी बताया जाना चाहिए. समस्याओं और समाधानों को लेकर भी उनसे चर्चा जरूरी है. इसके लिए प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों तथा धार्मिक व्यक्तियों की सेवा लेने का निर्देश दिया गया है. इन उपायों से बेचैन और बदहाल कामगारों में भरोसा पैदा होगा और वे अस्थायी शिविरों में चैन से रह सकेंगे. आम तौर पर ऐसे कामगारों को सामुदायिक केंद्रों, पंचायत भवनों, स्कूलों आदि में रखा गया है.

ऐसी जगहों पर आम तौर पर बहुत अधिक लोगों के रहने, खाने-पीने आदि की व्यवस्था नहीं होती है. यह सब स्वच्छता के साथ उपलब्ध कराना राज्यों की जिम्मेदारी है. ऐसा नहीं हो पाने और घर भी नहीं लौट पाने से कामगार नाराज हो सकते हैं क्योंकि उनके साथ उनके परिवार भी हैं. यह कामगार नागरिक होने के साथ हमारी अर्थव्यवस्था का आधार हैं और जब हम सब इस संकट से उबर जायेंगे, तो फिर इन्हीं की मेहनत से आर्थिकी को संवारने की प्रक्रिया शुरू होगी. उम्मीद है, राज्य सरकारें सक्रियता से इन्हें जरूरी सुविधाएं मुहैया करायेंगी.

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