चुनावी मैदान में सार्थक चर्चा से दूर भोजपुरी
Bhojpuri : जिस भाषा का सांस्कृतिक इतिहास जितना समृद्ध है, वह राजनीतिक रूप से उतनी ही ताकतवर और प्रभावी है. ऐसा नहीं कि भोजपुरी की अपनी कोई उदात्त सांस्कृतिक परंपरा नहीं है. कबीर, दादू, रैदास से लेकर भिखारी ठाकुर और महेंदर मिसिर तक भोजपुरी का समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास रहा है.
Bhojpuri : इसे दुर्योग कहें या कुछ और, भोजपुरी अक्सर उन वजहों से चर्चा में रहती आई है, जो सांस्कृतिक धारा को सहज स्वीकार्य नहीं है. भाषाएं आज राजनीतिक औजार बन चुकी हैं. दुनिया की हर संस्कृति और वहां की राजनीति अपनी भाषाओं को अपना स्वाभिमान, अपनी पहचान मानती है. इसलिए वह भाषाओं का न सिर्फ सम्मान करती है, बल्कि उनके उन्नयन के लिए हर मुमकिन प्रयास करती है.
उत्तर भारत की भाषाओं को लेकर ऐसा स्वाभिमान और सम्मान बोध कम ही नजर आता है. भोजपुरी समाज भी इसी श्रेणी में आता है. शायद यही वजह है कि बिहार की राजनीति में भोजपुरी किसी शालीन और महत्वपूर्ण वजह से चर्चा में नहीं है. बिहार के चुनावी मैदान में भोजपुरी की चर्चा उनके तीन सितारों की मौजूदगी से तो है ही, उनका अश्लील गायन भी चर्चा में है. भाषाएं अपनी संस्कृतियों का वाहक होती हैं. इस वजह से वे अपनी राजनीति का बड़ा औजार भी होती हैं. भाषाओं को छेड़ा नहीं कि राजनीति उफान पर आ जाती है.
जिस भाषा का सांस्कृतिक इतिहास जितना समृद्ध है, वह राजनीतिक रूप से उतनी ही ताकतवर और प्रभावी है. ऐसा नहीं कि भोजपुरी की अपनी कोई उदात्त सांस्कृतिक परंपरा नहीं है. कबीर, दादू, रैदास से लेकर भिखारी ठाकुर और महेंदर मिसिर तक भोजपुरी का समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास रहा है. बिहार के चुनावों में भोजपुरी अगर इन वजहों से चर्चा में रहती, तो संतोष की बात होती. लेकिन ऐसा नहीं है. बिहार के चुनावी मैदान में दो सितारे सीधे तौर पर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.
छपरा से राजद के टिकट पर शत्रुघ्न यादव उर्फ खेसारी यादव मैदान में हैं, तो सासाराम जिले की करगहर सीट से नवेली जनसुराज पार्टी के टिकट पर ऋतेश पांडेय किस्मत आजमा रहे हैं. यहीं की काराकाट सीट से भोजपुरी के पावर स्टार कहे जाने वाले पवन सिंह की पत्नी ज्योति मैदान में हैं. जिस तरह से पवन सिंह ने चुनाव की घोषणा के ऐन पहले कमल का फूल हाथ में लिया, उससे तय माना जा रहा था कि वह भाजपा के उम्मीदवार हो सकते हैं. पर उनसे अलग रह रहीं पत्नी ज्योति सिंह ने उनका खेल बिगाड़ दिया. इस वजह से उन्हें मैदान से बाहर होना पड़ा. इसके बावजूद पवन सिंह पत्नी की वजह से चर्चा में हैं.
पिछली सदी के नौवें दशक में भोजपुरी में अश्लील गीतों की परंपरा परवान चढ़ी. अश्लील और फूहड़ गाने की जैसे गायकों में होड़ मच गयी. सभ्य और उदार सांस्कृतिक चेतना के लिए ये गीत सहज स्वीकार्य नहीं थे. पर धीरे-धीरे भोजपुरी का ऐसा ही बाजार विकसित होता चला गया. इसका असर भोजपुरी के सिनेमा पर भी दिखा. स्त्री के गोपन अंग केंद्रित गायन भोजपुरी की मुख्यधारा बनता चला गया. भोजपुरी का सिनेमा भी उसी राह पर चल पड़ा. जिस भोजपुरी के सिनेमा की शुरुआत ‘बिदेसिया’ और ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो’ जैसी क्लासिक से हुई, जिसमें ‘नदिया के पार’,‘दूल्हा गंगा पार के’, ‘लागी नाहीं छूटे राम’, ‘रुसि गइले संइया हमार’ जैसी फिल्में बनती रहीं, उसी भोजपुरी ने एक दौर में अश्लील फिल्मों की बाढ़ देखी. इन फिल्मों के हीरो कभी खेसारी रहे, तो कभी मनोज तिवारी, तो कभी पवन सिंह, कभी रीतेश पांडेय, तो कभी दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ.
भोजपुरी की एक और खासियत है कि यहां गीतों, खासकर अश्लील गीतों से हिट हुआ गायक हीरो का सबसे बेहतरीन मैटीरियल माना जाता है. मौजूदा बिहार चुनाव में इन दोनों हीरो और गायकों के बहाने भोजपुरी की अश्लीलता ही चर्चा में है. वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, बिहार के 24.86 प्रतिशत लोग यानी करीब 2.58 करोड़ लोग भोजपुरी भाषी थे. तब बिहार की आबादी करीब 10.5 करोड़ थी. आज राज्य की अनुमानित जनसंख्या करीब 13 करोड़ है.
इस लिहाज से करीब 3.25 करोड़ लोग भोजपुरी भाषी हैं. पड़ोसी झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी भोजपुरी बोलने वालों की अच्छी-खासी संख्या है. देश-दुनिया में फैले भोजपुरीभाषियों की संख्या करीब 20 करोड़ बैठती है. भोजपुरी इलाकों की अपनी संस्कृति है, उदार और समृद्ध लोक परंपराएं हैं, हृदय को झंकृत कर देने वाले लोकगीत हैं, जिनके प्रतिनिधि गायकों में भरत शर्मा व्यास, गोपाल राय, चंदन तिवारी, दीपाली सहाय जैसे नाम हैं. लेकिन उनकी पूछ-परख इन सितारों की तुलना में कम है और पहचान भी.
पर भोजपुरी की असल समस्याएं बिहार की चुनावी चर्चाओं से नदारद हैं.
देश में अपेक्षाकृत कम बोली जाने वाली भाषाओं को क्लासिक या संवैधानिक दर्जा मिल चुका है. भोजपुरीभाषियों का एक सचेत वर्ग भोजपुरी को संविधान की आठवीं सूची में शामिल कराने को लेकर प्रयासरत है. बिहार के चुनाव में इसकी पुरजोर चर्चा होनी चाहिए थी. ऐसी मांग सीपीआइ-माले के आरा के सांसद सुदामा प्रसाद और बक्सर जिले के डुमरांव के निवर्तमान विधायक अजीत कुमार सिंह ने जरूर उठाई है. दोनों ने भोजपुरी के अमर गायक भिखारी ठाकुर को भारत रत्न देने और भोजपुरी को संविधान की आठवीं सूची में शामिल करने की मांग की है. दुनियाभर में अपनी भाषाओं को लेकर वहां की राजनीति दलीय सीमाओं को तोड़ती रही है. पर बिहार के चुनावी मैदान पर भोजपुरी को लेकर ऐसा नहीं दिख रहा. बल्कि उम्मीदवार बने भोजपुरी सितारों का अश्लील गायन ही चर्चा में है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)
