आशावाद से नये भारत का निर्माण

विविधता ही हमारी एकता की ताकत है. उसकी वजह से ही लोकतंत्र चल रहा है और लोकतांत्रिक भावना भी प्रकट होती है. हमारे गणतंत्र का विचार कोई नया नहीं है.

By राम बहादुर | January 26, 2022 7:46 AM

हमारे यहां 26 जनवरी, 1950 को गणतंत्र की एक नयी व्यवस्था बनी. हालांकि, हमें आजादी 15 अगस्त, 1947 को ही मिल गयी थी. इससे पहले 26 जनवरी, 1930 को कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज का संकल्प घोषित किया था. अगर 26 जनवरी को आजादी मिलती है, तो यह गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस दोनों होता, लेकिन ऐसा हो नहीं हो सका, इसलिए 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाने की एक व्यवस्था बनी.

सभा की आखिरी बैठक 24 जनवरी, 1950 को हुई. इस दिन तीन बड़े फैसले हुए. पहला, राजेंद्र बाबू ने सुनाया कि जन-गण-मन हमारा राष्ट्रगान होगा. दूसरा फैसला हुआ कि देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू होंगे. जवाहर लाल नेहरू ने प्रस्ताव रखा और वल्लभभाई पटेल ने समर्थन किया. तीसरा फैसला था कि संविधान की दो प्रतियां एक अंग्रेजी में और एक हिंदी में रखी जाए, उस पर सभी सदस्यों ने हस्ताक्षर किये. ये तीनों महत्वपूर्ण काम 24 जनवरी को आखिरी बैठक में संपन्न हुए. इसके एक दिन बाद 26 जनवरी को पूरे देश में धूमधाम से गणतंत्र दिवस मनाया गया.

वर्ष 1950 में हमने पहला गणतंत्र दिवस मनाया, तब से लेकर आज तक हम प्रति वर्ष 26 जनवरी को इस समारोह को मनाते आ रहे हैं. पहले गणतंत्र दिवस की परेड और वर्तमान में आयोजित हो रही परेड को देखें, तो बड़ा परिवर्तन आ चुका है. यह भी एक लोकतांत्रिक देश के शक्ति संपन्न होने का पैमाना है. पहली परेड में हेलीकॉप्टर, विमान आदि शामिल नहीं थे. वह सामान्य-सी शुरुआत थी. उसके बाद से गणतंत्र दिवस की हर परेड में प्रति वर्ष कुछ नया दिखता है.

इस वर्ष सबसे महत्वपूर्ण बात हुई है कि अब गणतंत्र दिवस समारोह चार दिनों का होगा. इस बार समारोह की शुरुआत 23 जनवरी से यानी नेता सुभाषचंद्र बोस की जयंती से हुई है. परेड की रिहर्सल 24 जनवरी से शुरू होती रही है. अब गणतंत्र दिवस समारोह 23 जनवरी से शुरू होकर 26 जनवरी तक चलेगा. यह बहुत बड़ी बात है, क्योंकि नेताजी और आजाद हिंद फौज का स्वाधीनता संग्राम में बहुत बड़ा योगदान है.

आजाद हिंद को भले ही अपेक्षित सफलता नहीं मिल पायी, लेकिन उससे देश में जो लहर पैदा हुई, वास्तव में उससे अंग्रेज डर गये. लाल किले में आजाद हिंद फौज के तीन लोगों पर मुकदमा चलाया गया. उस मुकदमे पर पूरे देश की निगाह थी. लोगों में आश्चर्यजनक उत्साह था. ऐसा माहौल था कि जैसे मुकदमा नेताजी पर ही चल रहा हो. भुलाभाई देसाई उस मुकदमे यानी आईएनए के मुख्य वकील थे. बेनेगल नरसिंह राव को उस समय कई अहम आंतरिक जानकारियां पता थीं. परोक्ष तौर पर उन्होंने काफी मदद की. उस समय वे वायसराय के रिफाॅर्म ऑफिस में सलाहकार थे. बाद में संविधान निर्माण में भी उनका बड़ा योगदान रहा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजाद हिंद फौज के लिए लाल किले में संग्रहालय बनवाया. अभी नेताजी की प्रदर्शनी विक्टोरिया मेमोरियल कोलकाता में चल रही है. इंडिया गेट पर नेताजी की होलोग्राम मूर्ति स्थापित की गयी है. सरकार ने फैसला किया है कि नेताजी की एक विशालकाय प्रतिमा इंडिया गेट पर लगायी जायेगी. इन कवायदों का उद्देश्य है कि अब हम अपने लोकतांत्रिक गणराज्य में नेताजी के योगदान को शामिल कर रहे हैं.

पश्चिमी धारणा थी कि भारत में विविधता इतनी अधिक है कि शायद ही लोकतांत्रिक देश या रिपब्लिक के रूप में भारत बहुत सफल हो पायेगा. यह धारणा उन लोगों की थी, जो विविधता को शक्ति नहीं मानते थे. उनकी नजर में विविधता भारत की कमजोरी है. दरअसल, विविधता को वे विभिन्नता और विभेद मानते थे, जबकि सच्चाई यह है कि विविधता ही हमारी एकता की ताकत है.

उसकी वजह से ही लोकतंत्र चल रहा है और लोकतांत्रिक भावना भी प्रकट होती है. हमारे गणतंत्र का विचार कोई नया नहीं है. सदियों से हमारे यहां गणतंत्र शासन प्रणाली का एक तरीका रहा है, साधारण से साधारण आदमी की भागीदारी होती रही है. आजादी के बाद किस तरह की शासन प्रणाली हो, जब इस पर बहस हुई, तो ग्राम स्वराज्य की अवधारणा पर जोर दिया गया. गांव आत्मनिर्भर, स्वायत्त हों और वे अपना फैसला स्वयं करें.

वे सरकार की आधारभूत इकाई के रूप में काम करेंगे, तो गणतंत्र की नींव मजबूत होगी. इस दिशा में 73वें संविधान संशोधन में उल्लेखनीय व्यवस्था तय की गयी. आज देशभर में पंचायतों के स्तर पर चुने गये लाखों प्रतिनिधि अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. हालांकि, जितनी सुचारु तरीके से वह व्यवस्था बननी चाहिए, आमजन की भागीदारी होनी चाहिए, वैसी नहीं हो पा रही है. धन के अभाव और अत्यधिक सरकारी दखल जैसी समस्याएं भी है.

हमारे यहां शासनतंत्र अभी औपनिवेशिक मानसिकता का है. हालांकि, इस दिशा में भी सुधार हो रहा है. वर्तमान सरकार पूर्ववर्ती सरकारों से भिन्न और बेहतर है. ज्यादातर पिछली सरकारें दो-चार साल की सोचती थीं. उनकी योजनाएं और लक्ष्य सीमित थे, लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार ने सोचना शुरू किया कि 50 साल बाद का भारत कैसा होगा. इस सोच-विचार के साथ-साथ काम भी शुरू हुआ है. नयी शिक्षा नीति भविष्य के नये भारत के निर्माण की नींव है.

पहली बार इस तरह की कोई शिक्षा नीति आयी है. हर दिशा में सार्थक प्रयास हो रहे हैं. सामान्य जन में यह आकांक्षा का पैदा होना कि नया देश बनायेंगे. यह सकारात्मक बदलाव का संकेत है. जहां-जहां सरकार की नीतियों के कारण गलतियां हुई हैं. उन्हें सरकार सुधारे या नहीं, लेकिन लोगों ने सुधारना शुरू कर दिया है.

उदाहरण के लिए, हरित क्रांति से पारंपरिक खेती-किसानी को जो नुकसान हुआ है, उसका स्पष्ट आकलन तो नहीं है, लेकिन, स्पष्ट है कि उससे भूमि की उर्वरता और गुणवत्ता समाप्त हो गयी है. फर्टिलाइजर और पेस्टिसाइड से हो रही उपज शरीर के लिए नुकसानदायक है, तरह-तरह के रोग हो रहे हैं. इससे कुछ लोग खेती के तौर-तरीकों को बदलने लगे हैं. मौजूदा परिस्थितियों में युवाओं की सोच भी बदल रही है. कुल मिला कर, कह सकते हैं कि यह नये आशावाद का जन्म है. (बातचीत पर आधारित).

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