भारी टैरिफ के बाद अब वीजा का झटका, पढ़ें आनंद कुमार का लेख
H-1B Visa: दरअसल भारतीय पेशेवर एच-1बी वीजा के सबसे बड़े लाभार्थी हैं और लगभग 71 प्रतिशत वीजा भारतीयों को ही जारी होते हैं. नयी फीस कई भारतीय पेशेवरों के वार्षिक वेतन के 60 फीसदी से अधिक है
H-1B Visa: जब भारत अमेरिकी प्रशासन द्वारा लगाये गये भारी-भरकम शुल्क पर बातचीत करने की कोशिश कर ही रहा था, तभी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को एक और झटका देते हुए एच-1बी वीजा की फीस में भारी बढ़ोतरी कर दी. यह फैसला भारत–अमेरिका के आर्थिक रिश्तों के एक और महत्वपूर्ण क्षेत्र यानी सेवा क्षेत्र को नुकसान पहुंचाने वाला है. ट्रंप प्रशासन ने 19 सितंबर को एच-1बी वीजा की सालाना फीस 2,000–5,000 डॉलर से बढ़ाकर सीधे 1,00,000 डॉलर कर दी है.
यह नियम 21 सितंबर की आधी रात से लागू भी हो गया है. अमेरिकी प्रशासन ने हालांकि बाद में यह स्पष्ट किया कि बढ़ी हुई फीस नये आवेदनों पर लागू होगी, पहले से वीजाधारकों या उनके नवीनीकरण पर नहीं. इसके बावजूद, इस घोषणा ने भारतीय पेशेवरों और आइटी कंपनियों में हड़कंप मचा दिया है. एच-1बी वीजाधारकों और उनके परिवारों में अनिश्चितता का माहौल बन गया है. अनेक लोग अपने बच्चों की पढ़ाई, घर के कर्ज और रोजमर्रा की योजनाओं को लेकर गहरे असमंजस में हैं.
दरअसल भारतीय पेशेवर एच-1बी वीजा के सबसे बड़े लाभार्थी हैं और लगभग 71 प्रतिशत वीजा भारतीयों को ही जारी होते हैं. नयी फीस कई भारतीय पेशेवरों के वार्षिक वेतन के 60 फीसदी से अधिक है. इस कारण अनेक लोगों ने जल्दी-जल्दी अमेरिका लौटने के लिए उड़ानों की बुकिंग करायी, ताकि वे समय पर पहुंच सकें. नासकॉम ने तो अपने सदस्य संगठनों को सलाह दी है कि वे अपने एच-1बी कर्मचारियों को तुरंत अमेरिका भेजने की तैयारी करें, ताकि संभावित बाधाओं से बचा जा सके. टीसीएस, इन्फोसिस, विप्रो, एचसीएल जैसी भारतीय आइटी उद्योग की दिग्गज कंपनियों के साथ-साथ अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, एप्पल और मेटा जैसी अमेरिकी कंपनियां एच-1बी वीजा पर ही निर्भर हैं.
उदाहरण के लिए, 2024 में अमेजन को ही 10,000 से अधिक एच-1बी वीजा अनुमोदन मिले थे. इस तरह की फीस वृद्धि से न केवल भारतीय कंपनियों, बल्कि अमेरिकी कॉरपोरेट जगत की लागत में भी भारी बढ़ोतरी होने की आशंका है. भारत सरकार ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया है. विदेश मंत्रालय ने कहा है कि इस कदम के निहितार्थों का अध्ययन किया जा रहा है और सरकार भारतीय उद्योग जगत से मिलकर सामूहिक रणनीति बनायेगी. भारतीय दूतावासों और वाणिज्य दूतावासों को निर्देश दिये गये हैं कि वे अमेरिका लौटने की कोशिश कर रहे भारतीय नागरिकों की हरसंभव सहायता करें. डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में नीतिगत अस्थिरता और व्यवधान सामान्य स्थिति बन गये हैं.
सबसे पहले यह व्यवधान व्यापार के क्षेत्र में दिखाई दिया, जब ट्रंप ने आयातक देशों पर अतिरिक्त शुल्क लगाने की नीति अपनायी. भारत इस नीति से सबसे बड़ा प्रभावित देश है, क्योंकि रूस से तेल आयात करने पर ट्रंप ने भारत पर 25 फीसदी का अतिरिक्त शुल्क लगा दिया. ट्रंप का तर्क है कि इन नीतियों से अमेरिका को आर्थिक लाभ होगा. उनका और उनके ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ समर्थकों का मानना है कि आयातित वस्तुओं पर ऊंचा शुल्क लगाकर वे विदेशी कंपनियों को अमेरिका में विनिर्माण के लिए मजबूर कर देंगे, लेकिन इस तरह के बदलाव एक झटके में नहीं होते और इनके लिए अनुकूल परिस्थितियों के साथ समय की भी जरूरत होती है.
ट्रंप का यह दांव अपने लक्ष्य तक पहुंचने में विफल साबित हो रहा है. एच-1बी वीजा की फीस को अत्यधिक महंगा कर देने का मकसद यही बताया जा रहा है कि अमेरिकी कंपनियां विदेशी पेशेवरों की जगह स्थानीय अमेरिकी नागरिकों को रोजगार दें, लेकिन यह भी असंभव नहीं, तो कठिन अवश्य है, क्योंकि उच्च तकनीकी क्षेत्र में जिस तरह की विशेषज्ञता भारतीय पेशेवरों के पास है, उसका विकल्प तुरंत उपलब्ध नहीं हो सकता. परिणामस्वरूप यह कदम भी केवल अस्थिरता और व्यवधान ही पैदा करेगा.
उल्लेखनीय है कि खुद अमेरिका के तकनीकी क्षेत्र के कई दिग्गज, जिनमें एलन मस्क जैसे लोग शामिल हैं, एच-1बी वीजा के समर्थक हैं.
मस्क के मुताबिक, यह वीजा अमेरिका को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को आकर्षित करने का अवसर देता है और देश को तकनीकी रूप से अग्रणी बनाये रखता है. अमेरिका के भीतर भी इस फैसले की आलोचना हो रही है. कई सांसदों और उद्योगपतियों ने इसे जल्दबाजी में लिया गया और ‘लापरवाह’ कदम बताया है. अमेरिकी वाणिज्य सचिव ने स्वीकार किया कि एच-1बी वीजा प्रणाली में खामियां हैं, पर उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि 1,00,000 डॉलर का शुल्क हर साल वीजा की पूरी अवधि तक लागू रहेगा. अमेरिकी उद्योग जगत को डर है कि इससे उनके प्रोजेक्ट्स की लागत बढ़ेगी, नवाचार की गति धीमी होगी और कंपनियां काम को ऑफशोर यानी भारत जैसे देशों में शिफ्ट करने लगेंगी.
रणनीतिक दृष्टि से भी यह निर्णय केवल भारतीय आइटी क्षेत्र को नहीं, बल्कि दीर्घकाल में खुद अमेरिका को नुकसान पहुंचा सकता है. भारतीय कंपनियां पहले ही ऑफशोरिंग को बढ़ावा देने पर विचार कर रही है, ताकि अमेरिका में ऑन साइट नियुक्तियों की आवश्यकता कम पड़े. इससे अमेरिकी ग्राहकों को महंगे प्रोजेक्ट्स और धीमी तकनीकी प्रगति का सामना करना पड़ेगा. वैश्विक व्यापार अनुसंधान पहल (जीटीआरआइ) की चेतावनी है कि अंततः यह नीति अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भारत से ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती है. ट्रंप प्रशासन दावा कर रहा है कि यह कदम राष्ट्रीय सुरक्षा और वीजा प्रणाली के दुरुपयोग को रोकने के लिए उठाया गया है, पर वास्तविकता यह है कि यह ‘अमेरिका फर्स्ट’ एजेंडा को आगे बढ़ाने की एक और कोशिश है.
पहले व्यापार पर शुल्क, अब सेवाओं के क्षेत्र में बाधा, दोनों कदम इस ओर संकेत करते हैं कि ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल में भारत जैसे देशों के साथ आर्थिक रिश्तों को नये सिरे से परिभाषित करने की नीति पर काम कर रहे हैं, लेकिन इस प्रक्रिया में वह अमेरिका के उन क्षेत्रों को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं, जो वैश्विक प्रतिभा और मुक्त व्यापार पर आधारित हैं. एच-1बी वीजा की फीस में की गयी भारी वृद्धि केवल एक प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि अमेरिका और भारत की अर्थव्यवस्थाओं के लिए दूरगामी परिणामों वाला कदम है. इससे न केवल भारतीय पेशेवरों और आइटी कंपनियों पर दबाव बढ़ेगा, बल्कि अमेरिकी कंपनियों की प्रतिस्पर्धात्मकता और नवाचार की क्षमता पर भी चोट पहुंचेगी. दीर्घकाल में यह नीति अमेरिका को वैश्विक सहयोग से और अधिक दूर कर सकती है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)
