क्यों शुभता का रंग पीला है

मिथिलेश कु राय युवा कवि mithileshray82@gmail.com कक्का कल खेतों की मेड़ पर चलते हुए बड़ी दूर तक निकल गये. दृश्य इतना सुहावना था कि समय का होश ही न रहा. चलते हुए अंत तक यही लगता रहा कि आगे का दृश्य पास के दृश्य से बेहतर है. इसी लोभ में चलते चले गये. ऊपर पंछियों […]

By Prabhat Khabar Print Desk | January 22, 2020 6:49 AM
मिथिलेश कु राय
युवा कवि
mithileshray82@gmail.com
कक्का कल खेतों की मेड़ पर चलते हुए बड़ी दूर तक निकल गये. दृश्य इतना सुहावना था कि समय का होश ही न रहा. चलते हुए अंत तक यही लगता रहा कि आगे का दृश्य पास के दृश्य से बेहतर है. इसी लोभ में चलते चले गये. ऊपर पंछियों के झुंड को लौटता देखकर पश्चिम की ओर निगाह फेरी, तो अंधेरे को तेजी से लपकता देख बढ़ते कदमों को मुश्किल से रोक पाये. उन्होंने कहा कि वसंत मौसमों का राजा है. लेकिन, यह सिर्फ अपने आभूषणों के कारण राजा नहीं है. यह अपने स्वभाव और कृषक समुदाय के होठों पर मुस्कुराहट देने के प्रयास के कारण भी राजा है.
कक्का जब यह बता रहे थे, लगता था कि उनकी आंखों के सामने अब भी कोई ऐसा दृश्य तैर रहा है, जिसके सम्मोहन में वे बंधे हुए हों. वे कहने लगे कि हमारे पूर्वज जब शुभता के रंग की खोज कर रहे होंगे, उन्हें रंग ढूंढने में हठात सफलता नहीं मिली होगी. जब वसंत का मौसम आया होगा और खेतों में सरसों के फूलों से फसलें सज गयी होंगी. जब कृषक समुदाय इस अद्भुत दृश्य को देखकर चहकने लगे होंगे. हमारे पूर्वजों का इस ओर ध्यान गया होगा. पीले रंग की तरफ देखकर मुस्कुराते चेहरे से ही उन्होंने यह तय किया होगा कि यह रंग खुशियों को पास लाता है. इसे शुभता के रंग का नाम दे दिया जा सकता है.
कक्का जब भी कोई बात छेड़ेंगे, उसे खेतों के दृश्यों से जोड़ कर देखेंगे. क्या कक्का का यह कथन सत्य है कि हमारा जीवन और जीवन की सारी उन्नति का मार्ग खेतों से ही प्रशस्त होता है? खेत से भूख मिटती है और पेट भरने के बाद ही सौंदर्य की तरफ दिमाग का झुकाव हो पाता है.
कक्का जब इस तरह का वाक्य बुदबुदाते हैं, तो मैं उनकी ओर अपलक देखने लगता हूं. वे कह रहे थे कि हम भले ही कोई सिद्धांत या नारा या दृश्य गढ़ लें, लेकिन जब तक हम आम जन-जीवन से जुड़ नहीं जाते, तब तक हमारी जिंदगी स्थायी क्या, लंबी भी नहीं हो सकती.
सरसों के पीले-पीले फूलों पर नजर पड़ने के बाद जब हमारे पूर्वजों ने इसे शुभता का रंग घोषित किया होगा, आम जनों को लगा होगा कि यह तो सच में यही है. वे भी तो कब से ऐसा ही सोच रहे थे. कितना समय बीत गया, लेकिन हमारे पूर्वर्जों द्वारा सौंपे गये शुभता के इस रंग में हमने परिवर्तन करने के बारे में कभी नहीं सोचा.
पीले को सदियों से पवित्र रंग के तौर पर देखा जा रहा है. कक्का कहते हैं कि फूल को सिर्फ फूल के नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए. फूल असल में संदेशवाहक होते हैं, जो खिलकर फल के आने की सूचना देते हैं.
वसंत ठिठुरन के मौसम के तुरंत बाद आता है. जब वसंत आता है, तब खेत फूलों से सज जाते हैं और धूप भी खिलने लगती है. किसान खेतों में अपनी मेहनत को खिलते हुए देखते हैं और तृप्त होते रहते हैं. खिले हुए फूलों से उनमें एक आश भरती रहती है कि इसके तुरंत बाद फसलें दाने से भर जायेंगी. वसंत में पंछी और तितलियों के उल्लास को देखो, तो पता चल जायेगा कि वे भी पराग और दाने की संपन्नता को देखकर इतरा रहे होते हैं कि शुभ दिन निकट है!

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