निगरानी में ड्रोन

मोट से संचालित होनेवाले बेहद हल्के विमानों (ड्रोन) का इस्तेमाल विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ता जा रहा है. एक ओर जहां खेती, खनन, फोटोग्राफी, निगरानी, माल ढुलाई जैसे कामों में यह बेहद उपयोगी साबित हो रहा है, वहीं दूसरी ओर सुरक्षा के लिहाज से खतरा भी बनता जा रहा है. पिछले साल ड्रोन से सऊदी अरब […]

By Prabhat Khabar Print Desk | January 16, 2020 12:32 AM

मोट से संचालित होनेवाले बेहद हल्के विमानों (ड्रोन) का इस्तेमाल विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ता जा रहा है. एक ओर जहां खेती, खनन, फोटोग्राफी, निगरानी, माल ढुलाई जैसे कामों में यह बेहद उपयोगी साबित हो रहा है, वहीं दूसरी ओर सुरक्षा के लिहाज से खतरा भी बनता जा रहा है.

पिछले साल ड्रोन से सऊदी अरब के तेल कारखानों पर बड़ा हमला हुआ था. अक्तूबर में छत्तीसगढ़ के बस्तर में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के एक शिविर के पास तीन दिन में चार बार ड्रोनों को मंडराते हुए देखा गया था.
हालांकि, ऐसी संवेदनशील जगहों या सीमा पर तो ड्रोन को देखते ही मार गिराने के आदेश हैं तथा ड्रोनों के बारे में भी निर्देश मौजूद हैं, लेकिन आतंकवादी हमलों की आशंका को देखते हुए औद्योगिक ठिकानों, घनी आबादी तथा भीड़ भरे इलाकों में ड्रोनों से सुरक्षा के समुचित उपाय करने की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही है.
इस दिशा में ठोस पहल करते हुए सरकार ने देशभर के ड्रोनों को पंजीकृत कराने का निर्देश जारी किया है. अगले महीने से बिना पंजीकरण के ड्रोनों को उड़ाने पर दंडित करने का प्रावधान किया गया है.
ऐसे अनेक मामले संबद्ध विभागों के संज्ञान में आये हैं, जिनमें नागरिक उड्डयन महानिदेशालय के निर्देशों का उल्लंघन हुआ है. दिसंबर, 2018 में इस कार्यालय ने 250 ग्राम से लेकर 150 किलोग्राम और उससे अधिक वजन के ड्रोनों को पांच श्रेणियों में बांटा था.
इसके साथ उड़ान की जगहों को भी चिह्नित कर दिया गया था. हवाई अड्डे के आसपास, सैन्य ठिकाने और सीमावर्ती इलाके कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जिन्हें ‘रेड जोन’ करार दिया गया है और वहां किसी भी स्थिति में सामान्य ड्रोन नहीं इस्तेमाल किये जा सकते हैं. कुछ क्षेत्रों में सीमित अनुमति है और कई इलाकों में उड़ान के लिए मंजूरी की जरूरत नहीं है.
नजर से ओझल होकर दूर कहीं सक्रिय रहनेवाले ड्रोनों के बारे में भी नये नियमों पर विचार हो रहा है, क्योंकि हमारे देश में बस्तियां, कारखाने और चहल-पहल के क्षेत्र बहुत अधिक हैं. पंजीकरण से ड्रोनों की पहचान और निगरानी तो होगी ही, उनकी सही संख्या का आकलन भी हो जायेगा. एक अनुमान के मुताबिक, हमारे देश में बिना पंजीकरण के ऐसे छह लाख यंत्र हो सकते हैं. इनमें से अधिकतर आयातित ड्रोन हैं.
उल्लेखनीय है कि भारत में किसी भी अन्य देश से अधिक ड्रोन आयात किये जाते हैं. ड्रोन से हमले या दुर्घटना से बचाव में इस पहलकदमी से मदद मिलेगी, लेकिन यह भी सुनिश्चित करना होगा कि अवैध ड्रोन न उड़ सकें. यदि इस कवायद में भी निर्देशों को लागू करने में हुई देरी जैसी समस्या रहेगी, तो फिर कोशिश कामयाब नहीं हो सकेगी.
इस संदर्भ में डिजिटल हवाई बाड़ लगाने और विशेष बंदूकों को हासिल करने के प्रस्तावों को भी अमल में लाना जरूरी है. सरकार को ड्रोन के सकारात्मक और व्यावसायिक उपयोग को बढ़ावा देने की दिशा में भी कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि यह विभिन्न गतिविधियों में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है.

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