भिक्षां देहि नहीं है सही

भारतीय संस्कृति में भिक्षा की प्रथा बहुत पुरानी है. गुरु और उनके शिष्य भिक्षाटन कर अपने भोजन का इंतजाम करते थे और वैदिक और नैतिक शिक्षा ग्रहण कर जीवन के हर पहलुओं में अपने जीवन के परिमार्जन की सीख ग्रहण करते थे. महात्मा बुद्ध ने भिक्षुक का जीवन धारण कर समाज की बुराइयों का अंत […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 12, 2019 6:40 AM
भारतीय संस्कृति में भिक्षा की प्रथा बहुत पुरानी है. गुरु और उनके शिष्य भिक्षाटन कर अपने भोजन का इंतजाम करते थे और वैदिक और नैतिक शिक्षा ग्रहण कर जीवन के हर पहलुओं में अपने जीवन के परिमार्जन की सीख ग्रहण करते थे. महात्मा बुद्ध ने भिक्षुक का जीवन धारण कर समाज की बुराइयों का अंत कर बौद्धिक चेतना का संचार किया. भगवान महावीर भी अपने अनुयायियों द्वारा दिये गये आहार को ग्रहण करते थे. किंतु आज भीख मांगना एक रोजगार का साधन बन गया है.
ट्रेनों, स्टेशनों, सड़कों, मंदिरों, मस्जिदों के सामने बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग भिक्षा के गोरखधंधे में कथित आलसी और भ्रष्ट लोगों के कहने पर लगे हैं. ट्रेनों में बुरके से पहचान छिपाकर बहन की शादी, मां के इलाज के नाम पर भिक्षाटन करने की क्या कोई मजहब इजाजत देता है? आज भारत विकास के पथ पर बहुत आगे निकल चुका है. अब अपने आलस, भिक्षाटन के गोरखधंधे और भ्रष्टाचार से भारत जैसे समृद्ध और उच्च नैतिक मूल्यों वाले देश के हिमालयी मस्तक पर लाचारी और गरीबी का बदनुमा दाग लगाना ठीक नहीं है.
देवेश कुमार देव, गिरिडीह, झारखंड

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