बच्चा चोरी की अफवाह से बचें

आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi @prabhatkhabar.in कहा जाता है कि अफवाहों के पंख होते हैं. अफवाहें उड़ती हैं. इस बात में सच्चाई भी है. इनके फैलने की गति इतनी तेज है कि एक राज्य से दूसरे राज्य की सीमाओं को लांघते इन्हें समय नहीं लगता है. हाल में एक अफवाह उड़ी है कि […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 16, 2019 6:58 AM
आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi
@prabhatkhabar.in
कहा जाता है कि अफवाहों के पंख होते हैं. अफवाहें उड़ती हैं. इस बात में सच्चाई भी है. इनके फैलने की गति इतनी तेज है कि एक राज्य से दूसरे राज्य की सीमाओं को लांघते इन्हें समय नहीं लगता है. हाल में एक अफवाह उड़ी है कि बच्चा चारों का गैंग सक्रिय है. इस अफवाह ने लगभग पूरी हिंदी पट्टी- बिहार, झारखंड, हरियाणा, हिमाचल, दिल्ली, उप्र, मप्र और राजस्थान को अपनी चपेट में ले लिया है. स्थिति इतनी संगीन हो गयी है कि बच्चा चोरी के शक में लोगों को पीट-पीट कर मार दिया जा रहा है. पिछले कुछेक महीनों में ऐसी 50 से ज्यादा घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें लोगों को बच्चा चोर समझ कर पीटा गया है. कुछेक को इतना मारा गया कि उनकी मौत हो गयी.
बच्चों को लेकर माता-पिता बेहद संवेदनशील होते हैं. चोरी की अफवाह फैल जाने से एक भय का वातावरण बन गया है, जिसका नतीजा भीड़ की हिंसा के रूप में सामने आ रहा है. अलबत्ता, जांच से जो तथ्य सामने आये हैं, उनसे पता चलता है कि कोई नहीं जानता कि कौन-सा बच्चा, किस का बच्चा और कहां का बच्चा चोरी हुआ है. लोग पता लगाने की जहमत भी नहीं उठा रहे हैं. बस, गांव-बस्ती में बच्चा चोरी का हल्ला उठता है और भीड़ आक्रामक हो जा रही है.
नतीजतन बेगुनाह लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ रहा है. अभी तक जो तथ्य सामने आये हैं, उनमें मानसिक रूप से बीमार लोगों की सबसे ज्यादा शामत आयी है. बच्चा चोरी की अफवाह में किन्नर और नशेबाज भी भीड़ के शिकार हुए हैं. उन्माद इतना प्रबल है कि पुलिस के हस्तक्षेप करने और भीड़ को नियंत्रित करने में भारी कठिनाई का सामना करना पड़ा है. चिंताजनक बात यह है कि सोशल मीडिया आग में घी का काम कर रहा है. ऐसे व्हाट्सएप संदेश चल रहे हैं, जिनमें बच्चा चोर गिरोह सक्रिय होने की बात कही जा रही है.
दावा किया जा रहा है कि बच्चा चोर गिरोह चोरी करके बच्चों के अंग काट कर बेचता है अथवा उनके साथ दुष्कर्म करता है. अफवाह को मजबूत बनाने के लिए फर्जी वीडियो भी भेजे जाते हैं, जो पाकिस्तान, बांग्लादेश या किसी अन्य देश की घटनाओं को जोड़ कर बनाये गये होते हैं. महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि अधिकांश मामलों में बच्चा चोरी की शिकायतें बेबुनियाद साबित हुई हैं.
झारखंड के रामगढ़ जिले में बच्चा चोर समझ कर पीटे गये एक शख्स की मौत हो गयी थी. बिहार के पटना, गया, छपरा, नालंदा, समस्तीपुर, उप्र के अमेठी, ग्रेटर नोएडा और मप्र के ग्वालियार से भी बच्चा चोरी की अफवाह पर लोगों को पीटने की सामने खबरें सामने आयी हैं.
ग्वालियर शहर में भीड़ ने एक किन्नर और उनके दो साथियों को एक फर्जी वीडियो के आधार पर बच्चा चोर समझा और उनकी पिटाई कर दी गयी. दो लोग बाइक पर आये और कहा कि यही है बच्चा चोर, जो वीडियो में दिखता है और मारपीट शुरू कर दी. जालंधर शहर में एक नेपाली मूल के वेटर ने एक बच्चे से हाथ मिलाने की कोशिश की, जिसे बच्चा चोरी की कोशिश समझ कर पीट दिया गया.
और तो और, बच्चे के पिता को ही बच्चा चोर समझ कर पीटा गया. दिल्ली से सटे उप्र के ग्रेटर नोएडा में भीड़ ने बच्चे के साथ जा रहे पिता को बुरी तरह पीट दिया. घायल पिता को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा है. ग्रेटर नोएडा के किशन अपने दो बच्चों और साले के दो बच्चों के साथ कार से जा रहे थे.
रास्ते में बच्चों ने समोसा खाने की जिद की, तो किशन ने मिठाई की दुकान के पास कार रोकी और बच्चों को कार में छोड़ कर समोसा लाने चले गये. जब समोसा लेकर लौट रहे थे, तो किसी ने अफवाह उड़ा दी कि यह बच्चा चोर है और बच्चों को चुरा कर ले जा रहा है. इसके बाद वहां भीड़ जमा हो गयी और बिना पूछताछ के किशन को बुरी तरह पीटने लगी. भीड़ न तो उनकी बात सुनने को तैयार थी, न ही बच्चों की. पुलिस ने किसी तरह उनकी जान बचायी. उन्हें इतनी चोटें आयीं कि उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा है.
इससे कुछ दिन पहले यूपी के गाजियाबाद जिले में एक बूढ़ी महिला की बच्चा चोरी के आरोप में भीड़ ने पिटा दिया, जबकि वह महिला बच्ची की दादी थी. कहने का आशय यह है कि बच्चा चोरी की अफवाहों पर कतई ध्यान न दें, यह महज एक अफवाह है. यह एक सामूहिक उन्माद है, जिसे अफवाह की शक्ल मिल गयी है. अखबारों में खबरों से सच्चाई सामने आ रही है, लेकिन चिंता की बात है लोग उस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं.
आपको याद दिला दूं कि कुछ समय पहले इसी तरह चोटी काटने की अफवाह फैली थी. लोगों को चोटी कटवा बता कर लोगों को पीटा गया था.
बाद में प्रमाणित हुआ कि सारी बातें कोरी अफवाह थीं. कभी मंकी मैन, कभी मुंह नोचवा, तो कभी कुछ और, कुल मिला कर अज्ञानता ने अफवाहों को हमेशा बल दिया है. ऐसा देखा गया है कि धर्म के नाम पर अफवाहें बहुत तेजी से फैलती हैं. एक दौर में गणेश जी के दूध पीने की अफवाह चली और नालियों में दूध बहने लगा. फिर एक बंदर आ गया. उसे मंकीमैन नाम दे दिया गया. देश की राजधानी दिल्ली की मलिन बस्तियों और यूपी के लोग रातभर जाग कर हवा में लाठियां भांजते थे. निर्दोष लोगों को मंकीमैन बता पीटे जाने की घटनाएं भी सामने आयीं. कुछ समय पहले पूर्वी उत्तर प्रदेश में सिल-बट्टा पर काले निशान को माता मान लिया गया.
पेड़ के नीचे रख कर उनकी पूजा होने लगी, चढ़ावा चढ़ने लगा, जबकि इसकी वैज्ञानिक व्याख्या थी कि गर्मी में तापमान के 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाने से पत्थर में मौजूद कार्बन गर्म हो कर काले निशान के रूप में उभर आता है. यह सामान्य प्रक्रिया है, कोई देवी प्रकोप नहीं है. एक बार नमक की कमी की अफवाह फैल गयी थी. पूरे देश में नमक को लेकर आपाधापी मच गयी थी. उस दौरान नमक 200 से 300 रुपये प्रति किलो तक बिक गया था.
कभी अफवाहें अपने आप फैलती हैं, तो कभी सुनियोजित भी होती हैं. मुझे मीडिया से भी शिकायत है कि रोज शाम को गर्मागर्म बहसें तो होती हैं, लेकिन बच्चा चोरी की झूठी घटनाओं का खंडन जोर-शोर से प्रसारित नहीं किया जाता है. हम सब जानते हैं कि यह महज अफवाह है, लेकिन इस सामूहिक उन्माद को रोकने के भरपूर प्रयास नहीं किये जा रहे हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि अफवाहों को रोकने में हम आप जैसे सभी जागरूक नागरिक मददगार साबित हो सकते हैं. अफवाह जंजीर की कड़ी की तरह होती है, एक कड़ी टूटी, तो उसका रास्ता अवरुद्ध हो जाता है. आपके पास कोई अफवाह सोशल मीडिया अथवा किसी अन्य माध्यम से पहुंचे, तो कृपया उसे आगे न बढ़ाएं. उसका रास्ता रोकने में सहायक बनें और वक्त मिलने पर अपने आसपास के लोगों को सच्चाई बताएं, उन्हें जागरूक करें, तभी हम इन अफवाहों को फैलने से रोक पायेंगे.

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