पानी बचायें या मिट जायें

संजय बारू द एक्सीडेंटल प्राइममिनिस्टर के लेेखक sanjayabaru@gmail.com अभी जहां एक ओर भारत के पश्चिमी तट पर माॅनसून की तेज बौछारें पड़ रही हैं, वहीं दूसरी ओर ऐसी रिपोर्टें भी मिल रही हैं कि देश का 40 प्रतिशत से भी ज्यादा हिस्सा सुखाड़ की चपेट में है. देश के अलग-अलग हिस्सों में एक ही साथ […]

By Prabhat Khabar Print Desk | June 20, 2019 7:46 AM

संजय बारू

द एक्सीडेंटल प्राइममिनिस्टर के लेेखक

sanjayabaru@gmail.com

अभी जहां एक ओर भारत के पश्चिमी तट पर माॅनसून की तेज बौछारें पड़ रही हैं, वहीं दूसरी ओर ऐसी रिपोर्टें भी मिल रही हैं कि देश का 40 प्रतिशत से भी ज्यादा हिस्सा सुखाड़ की चपेट में है. देश के अलग-अलग हिस्सों में एक ही साथ बाढ़ और सुखाड़ दोनों की विभीषिकाओं से निबटना सरकार के लिए एक प्रतिवर्ष आनेवाली चुनौती ही है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘जल शक्ति’ के लिए एक कैबिनेट स्तर के मंत्री की नियुक्ति के निर्णय की खबर जिस सप्ताह आयी, ठीक उसी सप्ताह यह रिपोर्ट भी मिली कि दिल्ली समेत 21 भारतीय शहरों में वर्ष 2020 तक भूजल समाप्त हो चुका होगा, जिसके असर को उन शहरों में बसनेवाले लगभग 10 करोड़ लोग झेलेंगे.

इस पृष्ठभूमि में जल उपयोग संबंधी जागरूकता स्तर को ऊपर उठाने की किसी भी कोशिश का स्वागत किया जाना चाहिए. इसलिए जब गुरुग्राम के स्थानीय अधिकारियों ने विराट कोहली द्वारा पेयजल से अपनी कार धोये जाने पर आर्थिक दंड लगाने का फैसला किया, तो मैं इस कदम के लिए उन अधिकारियों को तहे दिल से साधुवाद देना चाहता हूं. अफसोस सिर्फ इसका है कि यह दंड महज पांच सौ रुपयों की एक स्वल्प राशि का ही था.

हालांकि, आज से कई दशक पूर्व पानी इतना दुर्लभ नहीं था, फिर भी हमारी पीढ़ी के लोग जल उपयोग की अधिक चेतना के साथ बड़े हुए. जिस तरह हम लोगों को यह सिखाया गया कि कमरे से निकलते वक्त कमरे की बत्तियों तथा पंखे आदि को स्विच ऑफ कर दें, उसी तरह यह भी बताया गया था कि हम पानी को किफायत से खर्च करें और उसे व्यर्थ बरबाद न किया करें.

बाल्टी से स्नान करना इसी उद्देश्य की पूर्ति का एक तरीका था. मगर आज, बाल्टी की बजाय शावर (झरने) से स्नान करने का चलन लोकप्रिय हो चुका है और समृद्ध घरों में तो पश्चिमी शैली के बाथटबों का प्रचलन भी तेजी से बढ़ा है.

बाल्टी-मग से स्नान करने के भारतीय चलन को तब एक दिलचस्प यूरोपीय समर्थन भी हासिल हुआ, जब मशहूर यूरोपीय पत्रकार विक्टर जोर्जा ने ‘मेनचेस्टर गार्डियन’ एवं ‘ल मांद’ जैसे सुप्रसिद्ध समाचार पत्रों के अपने लोकप्रिय स्तंभों में बाल्टी और मग से नहाने के अपने अनुभव को अपने पाठकों के साथ साझा किये.

जैसा मुझे याद आ रहा है, तब विक्टर जोर्जा ने इस स्नान का वर्णन इन शब्दों में किया था- ‘अपने हाथ में एक मग लें और उससे बाल्टी से जल निकाल पहले अपने बायें कंधे पर और फिर दायें कंधे पर तथा फिर यदि आपकी मर्जी हो, तो अपने सिर पर भी डालें. उसके बाद, अपनी छाती और पीठ पर तथा एक-दो मग पानी दोनों पैरों पर भी उड़ेलें. तत्पश्चात बदन पर साबुन मलें और एक बार फिर मग से पानी डालने की क्रिया दुहरायें. इस तरह, एक बाल्टी पानी से शरीर की अच्छी धुलाई हो जाती है.’ विक्टर जोर्जा ने टब से स्नान के आदी अपने यूरोपीय पाठकों को यह बताया.

यदि शहरी भारत सिंगापुर से कोई एक सबक ले सकता है, तो वह पानी का संरक्षण तथा उसका पुनरुपयोग है. पिछले दो दशकों के दौरान इस शहर-राज्य की आबादी कई गुनी बढ़ चुकी है, फिर भी वह अपने सभी नागरिकों को पेय जल की पर्याप्त आपूर्ति कर पाने में सक्षम है. इस संबंध में सिंगापुर जितनी भी चीजें करता है, उनमें से भारत में सर्वाधिक किये जाने योग्य वर्षा जल संचयन है.

पानी की कमी का जीवन पर क्या असर हो सकता है, हमारे देश के सामने इसका जीता-जागता उदाहरण फतेहपुर सीकरी है, जिसकी कहानी प्रत्येक वैसे शहरी भारतीय द्वारा याद रखे जाने योग्य है, जिसने अपनी पूरी जिंदगी की बचत एक घर हासिल करने में लगा दी हो.

तालाबों को पुनरुज्जीवन देकर भूजल स्तर के पुनर्नवीकरण के कार्य पर नीति निर्धारकों द्वारा पिछले कुछ समय से गौर किया जा रहा है, मगर इस कार्यक्रम को पूरे देश में मिशन स्तर पर लागू करने हेतु इससे कहीं और ज्यादा कुछ किये जाने की जरूरत है. यह उम्मीद की जानी चाहिए कि नये जलशक्ति मंत्री अपने पूर्ववर्ती की अपेक्षा बेहतर ढंग से इस चुनौती का सामना कर सकेंगे.

जल प्रबंधन के क्षेत्र में प्रमुख भूमिका निर्वाह हेतु सरकार की जरूरत इस उपमहाद्वीपीय पारिस्थितिकी की प्रकृति में ही समाहित है. इतिहासकार कार्ल विटफोगल का ‘चलित-जल समाज’ (हाइड्रोलिक सोसाइटीज) का सिद्धांत मशहूर है, जिसके अनुसार ऐसी किसी भी संस्कृति में, जिसकी कृषि व्यवस्था बड़े पैमाने की सिंचाई प्रणाली पर निर्भर है, उसके लिए जरूरी संसाधन जुटाने हेतु राज्य सत्ता की आवश्यकता होती है.

भारत में भी राज्य सत्ता बड़ी सिंचाई प्रणालियों एवं तालाबों के निर्माण तथा उनके रख-रखाव के प्रबंधन द्वारा अपनी इस भूमिका का निर्वाह करती आयी है. इसी तरह, वर्तमान में वर्षा जल संचयन में भी सरकार के हस्तक्षेप की जरूरत है.

मगर इन सबसे अधिक, आज सरकार के लिए जरूरत इस बात की है कि वह जल संकट के संबंध में जन जागरूकता पैदा करे. पेय जल को उसके सर्वथा अनुपयुक्त कार्य में व्यर्थ बहाने के लिए विराट कोहली पर आर्थिक दंड लगाना सरकारी हस्तक्षेप की एक प्रशंसनीय मिसाल है.

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