जरूरी है चीन पर आर्थिक चोट

प्रभु चावला एडिटोरियल डायरेक्टर द न्यू इंडियन एक्सप्रेस यों तो मसूद अजहर पाकिस्तानी आइएसआइ की कठपुतली है, पर चीन उसे खुद के लिए संपदा का एक ऐसा सृजनकर्ता मानता है, जो पाकिस्तान और यहां तक कि उसके आगे भी चीन के सामरिक तथा कारोबारी हितों का पोषण करता है. मगर ऐसा करते हुए चीन हमारी […]

By Prabhat Khabar Print Desk | March 28, 2019 8:20 AM
प्रभु चावला
एडिटोरियल डायरेक्टर
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस
यों तो मसूद अजहर पाकिस्तानी आइएसआइ की कठपुतली है, पर चीन उसे खुद के लिए संपदा का एक ऐसा सृजनकर्ता मानता है, जो पाकिस्तान और यहां तक कि उसके आगे भी चीन के सामरिक तथा कारोबारी हितों का पोषण करता है. मगर ऐसा करते हुए चीन हमारी उस उदार नीति को नजरअंदाज कर देता है, जिसके बलबूते उसे भारत में अपने निर्यातों के बदले डॉलरों में वह कमाई होती है, जिसे वह पाकिस्तान स्थित अपने इस पसंदीदा आतंकी खलनायक के वित्तपोषण में खर्च करता है.
यह एक काले दुष्टतापूर्ण अर्थशास्त्र के सिवा और कुछ भी नहीं है, क्योंकि चीन के द्वारा अजहर की ढाल बनने का इसके अलावा और कोई भी औचित्य हो ही नहीं सकता.
साम्यवादी चीन के पूंजीवादी रक्तप्रवाह में यथार्थवाद कूट-कूट कर भरा है, जिसमें अजहर एक घातक विषाणु की तरह फलते-फूलते हुए चीन-पाक आर्थिक गलियारे के रूप में उसके निवेश की देखरेख करता है. दहशतगर्दी भरे अफगान-भारत सीमाक्षेत्रों से गुजरनेवाला यह गलियारा एक बार जब पूरी तरह निर्मित हो जायेगा, तब यह मध्य-पूर्व एवं यूरोपीय गंतव्यों तक चीनी निर्यातों के लिए एक वैकल्पिक मार्ग खोल देगा.
इस गलियारे की मार्फत चीन का उद्देश्य अपने सिनजियांग प्रांत स्थित काश्गर शहर को बलूचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से जोड़ देना है, जिससे चीन की पहुंच पश्चिम एशिया एवं अफ्रीका के ऊर्जा बाजारों तक बढ़ जायेगी.
प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार इस चरण के बाद लगभग 50,000 चीनी नागरिक ग्वादर में रहा करेंगे. इस परियोजना के निर्बाध परिचालन के साथ ही इन चीनी नागरिकों की सुरक्षा केवल अजहर ही सुनिश्चित कर सकता है.
इस समीकरण को सरल स्वरूप में प्रस्तुत किया जाये, तो अजहर चीन के आर्थिक हितों का भयादोहन करता है. यही वजह है कि चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् द्वारा अजहर को एक वैश्विक आतंकी घोषित करने की चौथी कोशिश को भी अपने ‘वीटो’ से विफल कर दिया.
दरअसल, वैश्विक आतंकी के ठप्पे ने अजहर की तरक्की का मार्ग अवरुद्ध कर उसके वित्तीय स्रोत तो सुखा ही दिये होते, साथ ही भारत के अंदर और बाहर हथियार उठाने की उसकी क्षमता भी कुतर दी होती. सो चीन ने एक दुराग्रही बहानेबाज जैसा बर्ताव करते हुए इस मुद्दे पर अंतिम निर्णय के पूर्व सभी दस्तावेजों के अध्ययन के लिए और ज्यादा वक्त की जरूरत बता दी.
इस घटनाक्रम पर ट्वीट करते हुए जहां राहुल गांधी ने मोदी पर चीन से डरने के आरोप लगाये, वहीं भाजपा ने चीन द्वारा संयुक्त राष्ट्र की स्थायी सदस्यता तक पहुंचने के उपक्रम में नेहरू के योगदान की याद दिलाते हुए भाजपा द्वारा नेहरू परिवार की गलतियां सुधारने के प्रयासों का उल्लेख किया और राहुल पर चीनी राजनयिकों से साठगांठ के आरोप लगाये.
इन मौखिक युद्धों को छोड़ दें, तो चीन के संदर्भ में भारतीय राजनय की प्रभावशीलता पर सवाल तो खड़े होते ही हैं. यह जरूर है कि पुलवामा की दुखद घटना के बाद भारत ने सुरक्षा परिषद् के 13 सदस्यों को मसूद अजहर के खिलाफ प्रस्ताव लाने हेतु तैयार कर लिया.
यह वही अजहर है, जिसे छुड़ाने के लिए दिसंबर 1999 में हुए विमान अपहरण के बाद वाजपेयी सरकार कश्मीर की जेल से उसे छोड़ने के लिए मजबूर हो गयी थी, क्योंकि अपहृत विमान के 180 यात्रियों का जीवन दांव पर लगा था. तब से लेकर अब तक अजहर द्वारा निर्देशित निर्बाध खून-खराबे ने भी चीन को अपना रास्ता बदलने को मजबूर नहीं किया, जबकि चीन स्वयं भी अपने सिनजियांग प्रांत में उइगरों के मुस्लिम उग्रवाद से त्रस्त रहा है. अब भी दस लाख से ऊपर उइगर उग्रवादी चीनी जेलों में बंद हैं और चीन ने मुस्लिम इबादतों में भाग लेने तथा कुरआन शरीफ रखने पर प्रतिबंध लगा रखा है.
ऐसे में इतना तो साफ है कि भारतीय नीति-निर्माता चीनी सरकार तथा पाकिस्तानी आतंकी गुटों के बीच पनप रहे सामरिक एवं आर्थिक प्रगाढ़ता की इबारत पढ़ पाने में सफल नहीं रहे.
चीन समर्थक तत्वों ने भारतीय राजनय एवं कॉरपोरेट जगत में अपनी घुसपैठ संभव कर ली है, जो भारतीय राष्ट्रीय हितों की अनदेखी करते हुए चीन केंद्रित व्यापार को प्रश्रय देने का समर्थन करते रहे हैं.
वर्ष 2018 में भारत-चीनी व्यापार उसके पिछले वर्ष के लगभग 71.18 अरब डॉलर के मुकाबले तकरीबन 84.44 अरब डॉलर तक पहुंच गया. इसके बावजूद हमारे 50 अरब डॉलर के व्यापार घाटे में कमी आने की कोई संभावना नहीं दिख रही.
भारतीय कराधान प्रणाली ने बिना सोचे-समझे सस्ते और घटिया चीनी मालों से हमारे बाजार भर दिये जाने को संभव बना दिया, जिसकी वजह से बेशुमार घरेलू औद्योगिक इकाइयां बंद हो गयीं. वर्ष 2018 में भारतीय उपभोक्ताओं ने शीर्ष चार चीनी स्मार्टफोन ब्रांडों की खरीदारी पर 50 हजार करोड़ रुपये की रकम खर्च की, जो वर्ष 2017 में इन्हीं ब्रांडों पर व्यय राशि से दोगुनी थी.
ऑनर, जियोमी, विवो, ओप्पो, इंफिनिक्स, लेनोवो-मोटोरोला तथा वन-प्लस जैसे चीनी स्मार्टफोन ब्रांडों ने हमारे बाजारों के पचास प्रतिशत से भी अधिक पर कब्जा कर रखा है.
कीमतों के प्रति संवेदनशील भारतीय मानसिकता के फायदे उठाते हुए चीन ने असेंबली लाइन निर्मित घरों से लेकर खिलौने तक फैले सस्ते घरेलू उपभोक्ता सामानों से हमारे बाजार पाट दिये हैं.
चीन से हमारे बर्ताव की परंपरागत नीति से इतर प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले वर्षों में उससे निकटता बढ़ाने की कोशिशों के तहत द्विपक्षीय बैठकों के अलावा कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीनी नेतृत्व से 10 दफा से भी ज्यादा मुलाकातें कीं, पर उन नेताओं के दिलों से अजहर के प्रति प्रेम में कोई कमी नहीं आयी. चीन द्वारा अजहर के लगातार बचाव ने मोदी की इस नीति के लिए शर्मिंदगी की वजह ही पैदा की है. चीन बाजार और मुद्रा की अच्छी समझ रखता है, भारत के पास इन दोनों की बहुतायत है. युद्ध के खेल में चीन को पराजित कर पाना मुश्किल हो सकता है, पर आर्थिक खेल एक दूसरी ही पटकथा लिख सकते हैं.
अगले आम चुनावों के जनादेश भारतीय व्यवस्था में चीनी हितों के पैरोकारों की समाप्ति तथा भारत में कारोबार और पाकिस्तान में निवेश की चीनी नीति को धूल चटाने की प्रभावी रणनीति के आधार पर मांगे जाने चाहिए. चीन द्वारा अपने उस आतंकी भाई से सारे सरोकारों की समाप्ति के बाद ही हिंदी-चीनी फिर भाई-भाई बन सकते हैं.
(सौजन्य : द न्यू इंडियन एक्सप्रेस)

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