सुदृढ़ आर्थिक विकास
वैश्विक अर्थव्यवस्था की मौजूदा हलचलें भारत के आर्थिक तंत्र पर भी चिंताजनक असर डाल रही हैं. डॉलर के मुकाबले कमजोर रुपया, कच्चे तेल की कीमतों में अस्थिरता, निर्यात में नरमी और पूंजी का बाजार से पलायन जैसे कारक अर्थव्यवस्था के विकास के लिए चुनौती बने हुए हैं. भारत सरकार द्वारा वस्तु एवं सेवा कर के […]
वैश्विक अर्थव्यवस्था की मौजूदा हलचलें भारत के आर्थिक तंत्र पर भी चिंताजनक असर डाल रही हैं. डॉलर के मुकाबले कमजोर रुपया, कच्चे तेल की कीमतों में अस्थिरता, निर्यात में नरमी और पूंजी का बाजार से पलायन जैसे कारक अर्थव्यवस्था के विकास के लिए चुनौती बने हुए हैं.
भारत सरकार द्वारा वस्तु एवं सेवा कर के माध्यम से कराधान प्रणाली में आवश्यक सुधार के प्रयास तथा नोटबंदी के साहसिक निर्णय के भी प्रारंभिक परिणाम निराशाजनक रहे हैं, लेकिन यह बड़े संतोष की बात है कि इन सभी चुनौतियों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की गति मजबूती से जारी है. इसका एक बड़ा कारण कर सुधार और दिवालिया कानूनों को लागू करना है.
इन पहलों से आर्थिक प्रणाली की संरचना को ठोस आधार मिला है. औद्योगिक संस्था फिक्की के ताजा तिमाही सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया है कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में मेनुफैक्चरिंग सेक्टर में उत्पादन में उल्लेखनीय बढ़ोतरी होगी और इसका एक नतीजा निर्यात बढ़ने के रूप में सामने आयेगा. निर्यात में अपेक्षित वृद्धि नहीं होने और रुपये की कीमत गिरने से चालू खाता घाटा बढ़ा है. रुपये की गिरावट से भी निर्यात को लाभ नहीं हो सका है. ऐसे में दूसरी तिमाही के आकलन उत्साहवर्धक हैं.
इन्हीं आधारों पर एशियन डेवलपमेंट बैंक ने सितंबर के आखिरी हफ्ते में कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर मौजूदा वित्त वर्ष में 7.3 फीसदी और आगामी वित्त वर्ष में 7.6 फीसदी रह सकती है. यह अनुमान भारतीय रिजर्व बैंक और भारत सरकार के अनुमान से बहुत अलग नहीं है. चालू वित्त वर्ष के लिए रिजर्व बैंक का आकलन 7.4 फीसदी है, जबकि सरकार का मानना है कि विकास दर 7.5 फीसदी रह सकती है.
भारत के लिए एक सकूनदेह बात यह भी है कि एशिया की ज्यादातर उभरती अर्थव्यवस्थाओं के विकास में स्थिरता बनी हुई है और इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर के बड़े झटकों को बर्दाश्त करने में सहूलियत बनी रहेगी. कुछ अन्य अहम तथ्य भी अर्थव्यवस्था की मजबूती को इंगित करते हैं. एशियन डेवलपमेंट बैंक की सालाना रिपोर्ट में रेखांकित किया है कि 2018-19 के इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में वृद्धि दर 8.2 फीसदी रही थी और इस अवधि (अप्रैल-जून) में निजी उपभोग में 8.6 फीसदी की बढ़त दर्ज की गयी थी. लगातार दूसरी तिमाही में निवेश की बढ़त दो अंकों (दस फीसदी) में रही है.
इससे संकेत मिलता है कि नोटबंदी और डिजिटल लेन-देन पर जोर देने के खराब असर से ग्रामीण क्षेत्र बाहर निकल रहा है और वहां आमदनी बेहतर हो रही है. ध्यान रहे, उपभोग और उत्पादन की बढ़त को ग्रामीण अर्थव्यवस्था से बड़ी मदद मिलती है. किसानों के लिए हो रहे उपायों और स्वास्थ्य बीमा नीति से भी आमदनी, बचत और खर्च में फायदा होने की उम्मीद है, लेकिन इस माहौल में खुदरा मुद्रास्फीति में बढ़त, निर्यात को बढ़ाने और पूंजी बाजार की अस्थिरता पर ध्यान दिया जाना चाहिए.