विषमता का अभिशाप

ऑक्सफैम इंटरनेशनल ने सीआरआई (कमिटमेंट टू रिड्यूसिंग इनइक्वैलिटी) इंडेक्स की रिपोर्ट जारी की है. सूची में शामिल 157 देशों में भारत अंतिम के 15 देशों के बीच खड़ा है, जिनमें गैरबराबरी कम करने के प्रति सबसे कम प्रतिबद्धता देखी गयी है. इस मामले में नाइजीरिया जैसे देशों के करीब पहुंचे भारत को 147वां रैंक दिया […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 11, 2018 6:12 AM
ऑक्सफैम इंटरनेशनल ने सीआरआई (कमिटमेंट टू रिड्यूसिंग इनइक्वैलिटी) इंडेक्स की रिपोर्ट जारी की है. सूची में शामिल 157 देशों में भारत अंतिम के 15 देशों के बीच खड़ा है, जिनमें गैरबराबरी कम करने के प्रति सबसे कम प्रतिबद्धता देखी गयी है.
इस मामले में नाइजीरिया जैसे देशों के करीब पहुंचे भारत को 147वां रैंक दिया गया है. ऑक्सफैम ने भारत के बारे में कहा है कि देश की स्थिति बेहद नाजुक है और यहां सरकार स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा पर बहुत कम खर्च कर रही है, वहीं निजी सेक्टर को सब्सिडी प्रदान करती है.
इस लिस्ट में चीन 81वें स्थान पर है और स्वास्थ्य व कल्याणकारी योजनाओं पर भारत की तुलना में वह कई गुना ज्यादा खर्च कर रहा है. हालिया दशक में, भारत में आर्थिक विषमता उच्च स्तर पर है और बहुत तेजी से बढ़ी है. इसका बड़ा कारण ‘सुपर रिच क्लास’ का उदय होना रहा है.
पिछले 11 साल से लगातार, देश के सबसे अमीर भारतीय साबित हो रहे मुकेश अंबानी की एक दिन की कमाई 300 करोड़ को पार कर गयी है. कुल 831 भारतीयों की संपत्ति 1,000 करोड़ से ज्यादा मूल्य की है. पिछले साल ही यह तथ्य सामने आया था कि एक प्रतिशत के हिस्से में देश की 73 फीसदी संपत्ति आती है. यहां 101 अरबपति पूरे देश के एक साल के बजट के बराबर कमाई करते हैं और 273 लोगों की आमदनी चार करोड़ भारतीयों से ज्यादा है.
दूसरी तरफ, 67 प्रतिशत भारतीय गरीबी रेखा के नीचे बसर करते हैं. भारत की 27.5 फीसदी आबादी बहुआयामी गरीबी की मार झेल रही है और कुपोषण का शिकार हो रही है. वहीं 8.6 प्रतिशत भारतीय इतने गरीब हैं कि उनके लिए दोनों समय भोजन जुटाना सपने जैसा बनता जा रहा है.
आर्थिक विषमता की शुरुआत ही संपत्ति के असमान वितरण से होती है. विश्व असमानता रिपोर्ट के अनुसार, 1980 के बाद से लगभग सभी देशों में सार्वजनिक संपत्ति व्यापक पैमाने पर निजी संपत्ति में तब्दील हुई है. सारे अमीर देशों में एक तरफ राष्ट्रीय संपत्ति में बढ़ोतरी देखी गयी है, तो दूसरी तरफ पब्लिक संपत्ति कभी नेगटिव में चली गयी है या फिर जीरो के करीब है. ये आंकड़े बहुत निराश करनेवाले हैं और भारत भी इससे अछूता नहीं रहा है.
भारत जैसे देश में आर्थिक विषमता और भी बड़ी समस्या मानी जानी चाहिए, क्योंकि यहां लोग केवल गरीब और अमीर नहीं हैं. लोग धर्म-जाति-नस्ल आदि के आधार पर भी बंटे हुए हैं. इसलिए भारत जैसे देश को आर्थिक विषमता और अधिक क्षति पहुंचाती है. एक बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश में लोकतंत्र के दीर्घकालीन स्थायित्व के लिए इस विषमता को समाप्त करना बहुत जरूरी है.
हमारी सरकारों की बड़ी जिम्मेदारी है कि वे इस दिशा में काम करें और विषमता की खाई को पाटें. इसके लिए जरूरी है कि स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य कल्याणकारी योजनाओं पर काम किया जाये और संपत्ति के असमान वितरण को दूर करने का प्रयास किया जाये.

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