घरों में समाते पहाड़ !

जंगल, पहाड़ और पर्यावरण को लेकर सवाल हम खूब उठाते हैं, मगर इसका जवाब कौन देगा? सालों से उठते ये सवाल वहीं-के-वहीं हैं, जबकि गांव से महानगर तक कंक्रीटों के महल जंगल की तरह पसर गये हैं. इसके लिए खुद हम जिम्मेदार हैं. सच तो यह है कि विकास की दौड़ में हम एक ओर […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 22, 2017 5:59 AM
जंगल, पहाड़ और पर्यावरण को लेकर सवाल हम खूब उठाते हैं, मगर इसका जवाब कौन देगा? सालों से उठते ये सवाल वहीं-के-वहीं हैं, जबकि गांव से महानगर तक कंक्रीटों के महल जंगल की तरह पसर गये हैं. इसके लिए खुद हम जिम्मेदार हैं. सच तो यह है कि विकास की दौड़ में हम एक ओर सवाल उठाते और दूसरी ओर उन सवालों की वजह भी बनते हैं.
हम पेड़ लगा सकते हैं, लेकिन हम ऐसा कर नहीं पा रहे. पहाड़ तो हम उगा भी नहीं सकते, मगर उसे नष्ट करने में अंतिम दम तक लगे हुए हैं. ऐसे में पहाड़ो की घटती ऊंचाई को रोक पाना तो नामुमकिन है ही, पहाड़ाें के वजूद को बचाना भी मुश्किल हो गया है. हालात यही रहे, तो हमारी आने वाली पीढ़ी कागज पर बने पहाड़ों में ही उनकी ऊंचाई तलाशती रह जायेगी.
एमके मिश्रा,रातू.

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