‘कोटा फैक्टरी’ आकर बच्चा हो जाता है अकेला, दोस्त की बजाय मिलते हैं कंपीटिटर

दिनभर पढ़ाई से भरी दिनचर्या, कदम-कदम पर प्रतिस्पर्धा, बेहतर करने का नियमित दबाव, परिजनों की उम्मीदें और घर से दूर रहने की पीड़ा के साथ छात्र कहते हैं कि वे अक्सर खुद को अकेला पाते हैं और अपनी भावनाओं को साझा करने के लिए उनके साथ कोई भी शख्स मौजूद नहीं होता है.

By Rajneesh Anand | August 24, 2023 5:57 PM

राजस्थान के कोटा शहर को फैक्टरी कहा जाता है, जहां से इंजीनियरिंग और मेडिकल के छात्र पढ़ाई करके निकलते हैं और देश के बेहतरीन संस्थानों में एडमिशन पाते हैं. लेकिन विगत कुछ वर्षों से कोटा शहर का नाम कुछ और कारणों से चर्चा में है- वह है परीक्षा की तैयारी में जुटे बच्चों का आत्महत्या करना.

छात्र दोस्त नहीं, प्रतिस्पर्धी होते हैं

पिछले एक महीने में चार बच्चों ने कोटा में आत्महत्या की है. बढ़ती आत्महत्या की घटनाओं के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी इसपर चिंता जताई थी और कोचिंग संस्थानों को कड़े शब्दों में चेतावनी दी थी. उन्होंने यह कहा था कि अगर कोई बच्चा आईआईटी की परीक्षा में पास करके भगवान नहीं बन जाता है, इसलिए बच्चों पर प्रेशर बनाना बंद कीजिए. सरकार की इस चेतावनी के बाद कई विशेषज्ञों की राय सामने आई है, उनका कहना है कि यहां अध्ययनरत छात्र दोस्त नहीं होते, सिर्फ प्रतिस्पर्धी होते हैं. प्राधिकारियों का कहना है कि 2023 में अभी तक कोटा में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटे 20 अभ्यर्थी आत्महत्या कर चुके हैं, जो पिछले साल (15 आत्महत्याओं) के मुकाबले ज्यादा है.

बच्चा हो जाता है अकेला

दिनभर पढ़ाई से भरी दिनचर्या, कदम-कदम पर प्रतिस्पर्धा, बेहतर करने का नियमित दबाव, परिजनों की उम्मीदें और घर से दूर रहने की पीड़ा के साथ छात्र कहते हैं कि वे अक्सर खुद को अकेला पाते हैं और अपनी भावनाओं को साझा करने के लिए उनके साथ कोई भी शख्स मौजूद नहीं होता है. विशेषज्ञ कहते हैं कि परिजन दोस्ती या मित्रता को बच्चों के पढ़ाई से संभावित भटकाव के रूप में देखते हैं और उन्हें मित्र बनाने को लेकर हतोत्साहित करते हैं. मध्यप्रदेश की रहने वाली नीट की अभ्यर्थी रिद्धिमा स्वामी ने बताया, यहां दोस्ती का कोई सिद्धांत नहीं है…सिर्फ प्रतिस्पर्धी हैं. आपके बगल में बैठे हर छात्र को एक अतिरिक्त प्रतिस्पर्धी के रूप में देखा जाता है, जिससे आपको मुकाबला करना है. स्कूल और कॉलेज जैसा नहीं है, कोई भी यहां नोट्स आपके साथ साझा नहीं करता क्योंकि हर कोई आपको एक खतरे के तौर पर देखता है जो पसंदीदा कॉलेज की आपकी सीट छीन सकता है.

विकल्प की कमी से जूझ रहे हैं बच्चे

पिछले दो साल से यहां रहकर संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) की तैयारी कर रही ओडिशा निवासी मानसी सिंह का कहना है कि कोटा में जिंदगी ”ट्रेडमिल” पर दौड़ने जैसी प्रतीत होती है. उन्होंने कहा, ”यह ट्रेडमिल पर दौड़ने के जैसा है. आपके पास सिर्फ दो विकल्प हैं या तो नीचे उतर जाइए या फिर भागते रहिए. आप रुक नहीं सकते और न ही अपनी गति धीमी कर सकते हैं. आपको बस दौड़ते रहना है. शासकीय नर्सिंग महाविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग के प्रमुख दिनेश शर्मा ने कहा कि छात्र यहां न तो किसी से अपने दिल की बात कह पाते हैं और न ही उनमें अन्य साथियों के प्रति सहानुभूति पैदा होती है. उन्होंने कहा, ”जब माता-पिता अपने बच्चों को यहां छोड़ते हैं तो उनका पहला निर्देश यही होता है कि दोस्ती के चक्कर में अपना वक्त खराब मत करना, आप यहां पढ़ाई के लिए आए हैं. जब माता-पिता इसे नकरात्मकता से देखते हैं तो छात्रों को लगता है कि इसमें कुछ न कुछ गलत है और इसे नहीं किया जाना चाहिए.

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बच्चों को जरूरत है प्यार और मार्गदर्शन की

मनोवैज्ञानिकों का भी यह मानना है कि बच्चे जब घर से दूर पढ़ाई के लिए जाते हैं, तो उन्हें अकेलापन बहुत महसूस होता है. अगर दोस्त भी उनके दुश्मन की तरह होंगे तो बच्चे खुद को कैसे संभाल पायेंगे. इन हालात में कई बार नशे के आदी बन जाते हैं, तो कई बार वे आत्महत्या जैसा रास्ता अपनाते हैं. चूंकि बच्चे किशोरावस्था में होते हैं तो वे बहुत हतोत्साहित हो जाते हैं. इन हालात में उन्हें सही मार्गदर्शन की जरूरत होती है, जो कोचिंग संस्थान वाले उन्हें नहीं दे रहे हैं. वे उनके मानसिक हालात को समझ ही नहीं रहे हैं और केवल उन्हें किताबी ज्ञान दे रहे हैं. इन परिस्थितियों में माता-पिता की भूमिका बहुत अहम हो जाती है.

तनाव के लक्षण बच्चों में साफ नजर आते हैं

कोटा के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (एसपी) चंद्रशील ठाकुर ने भी दिनेश शर्मा के स्वर में स्वर मिलाते हुए कहा कि कौन कहता है कि जब कोई बच्चा तनाव में होता है तो उसमें लक्षण दिखाई देते हैं और जब वह अपने घरवालों से दूर होता है तो सिर्फ उसके दोस्त ही होते हैं, जो सबसे पहले उसकी हालत देख पाते हैं. उन्होंने कहा, कोचिंग संस्थानों में कोई संयुक्त एक्सरसाइज नहीं होती. वहां सिर्फ और सिर्फ एक व्यक्ति का सफर होता है और ये छात्र अक्सर खुद को अकेला पाते हैं. ऐसा बहुत बार होता है जब छात्रावास में एक साथ रहने वाले अभ्यर्थी हमें सूचित करते हैं कि किसी ने खुद को कमरे के अंदर बंद कर लिया है और हम समय पर वहां पहुंचते हैं. ज्यादातर छात्र यहां पहली बार अपने घरवालों से दूर रहते हैं…इसलिए दोस्त बनाना बहुत मददगार साबित हो सकता है और इसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आत्महत्याओं को रोकने के लिए सुझाव मुहैया कराने हेतु पिछले सप्ताह अधिकारियों को एक समिति गठित करने का निर्देश दिया था. समिति में कोचिंग संस्थानों, परिजनों और चिकित्सकों सहित सभी हितधारक शामिल होंगे और यह 15 दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट दाखिल करेगी.

(भाषा इनपुट के साथ)

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