न बिजली, न सड़क, फिर भी गूंजा जय हिंद, महाराष्ट्र के इन गांवों में पहली बार फहराया तिरंगा
Tricolor Hoisted Tribal Villages: महाराष्ट्र के नंदुरबार जिले के एक दूरदराज आदिवासी गांव उदाड्या में आजादी के बाद पहली बार तिरंगा फहराया गया. बिजली, सड़क और सरकारी स्कूल जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित इस गांव में शिक्षक गणेश पावरा और वाईयूएनजी फाउंडेशन की पहल से यह ऐतिहासिक पल संभव हुआ. इस पहल का मकसद सिर्फ झंडा फहराना नहीं, बल्कि ग्रामीणों को उनके लोकतांत्रिक अधिकारों के प्रति जागरूक करना भी था.
Tricolor Hoisted Tribal Villages: महाराष्ट्र के नंदुरबार जिले की सतपुड़ा की पहाड़ियों में बसे एक सुदूर आदिवासी गांव उदाड्या में इस बार स्वतंत्रता दिवस से पहले एक ऐतिहासिक क्षण देखा गया. गांव में पहली बार राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया गया, जिससे वहां के निवासियों में गर्व और देशभक्ति की भावना की लहर दौड़ गई. यह गांव अब तक न बिजली की सुविधा से जुड़ा है, न सड़क, और न ही सरकारी स्कूल या ग्राम पंचायत जैसी आधारभूत व्यवस्थाएं यहां मौजूद हैं.
आजादी के बाद पहली बार फहरा झंडा
गांव में तैनात शिक्षक गणेश पावरा ने स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर इंटरनेट से वीडियो डाउनलोड कर तिरंगा फहराने की विधि सीखी और फिर गांव के 30 बच्चों और स्थानीय लोगों के साथ मिलकर तिरंगा फहराया. यह पहल वाईयूएनजी फाउंडेशन की ओर से हुई, जो इस क्षेत्र के चार अनौपचारिक स्कूलों का संचालन कर रहा है. संस्था के संस्थापक संदीप देओरे ने बताया कि पहली बार झंडा फहराने के साथ-साथ लोगों को उनके संवैधानिक और लोकतांत्रिक अधिकारों के प्रति जागरूक करना इस पहल का उद्देश्य था.
200 से अधिक बच्चों ने लिया भाग
करीब 250 बच्चों और चार गांवों — उदाड्या, खपरमाल, सदरी और मंझनीपड़ा — के लोगों ने इस आयोजन में हिस्सा लिया. इन गांवों में संचार, परिवहन, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं नदारद हैं. यहां के लोग पावरी बोली बोलते हैं, जो हिंदी या मराठी से काफी भिन्न है, जिससे संवाद की भी चुनौती रहती है.
देओरे ने बताया कि इन गांवों में शिक्षा की बेहद कमी है और इस वजह से लोग अक्सर अपने अधिकारों से वंचित रह जाते हैं. कुछ जगहों पर आंगनबाड़ी सेवाएं भी ठीक से नहीं पहुंचतीं हालांकि खपरमाल जैसे गांवों में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता आजमीबाई अपने गांव में ही रहकर ईमानदारी से सेवा दे रही हैं.
