Red Fort Attack : तीन साल से एक्टिव था आतंकी मॉड्यूल, रेड फोर्ट बम धमाके में हुआ बड़ा खुलासा

Red Fort Attack : रेड फोर्ट बम धमाके के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने पूरे देश में छिपे आतंकी मॉड्यूल को खोजना शुरू कर दिया है. इसका उद्देश्य आतंकी मॉड्यूल को खत्म करना है. इस घटना ने स्पष्ट कर दिया कि सुरक्षा व्यवस्था को और सख्त करना बेहद जरूरी है.

By Amitabh Kumar | November 18, 2025 7:44 AM

Red Fort Attack : डॉ. उमर उन नबी के साथियों से पूछताछ में पता चला है कि पुलवामा–फरीदाबाद का यह स्वयं-रैडिकलाइज्ड आतंकी मॉड्यूल कम से कम तीन साल से भारत में हमले का प्लान तैयार कर रहा था. उमर रेड फोर्ट आत्मघाती हमले में शामिल था. जांच एजेंसियां अब पूरी साजिश की जांच कर रही हैं. हिंदुस्तान टाइम्स ने इस संबंध में खबर प्रकाशित की है. खबर के अनुसार, उमर और उसके साथी डॉक्टर मूजामिल शकील और अदील अहमद राथर टेलीग्राम के जरिए अबू आकाशा नाम के व्यक्ति से जुड़े हुए थे.

खबर में बताया गया है कि साल 2022 में वे तुर्की में दो इस्लामियों (मोहम्मद और ओमर) से भी मिले थे. भले ही इनके नाम आम लगते हैं, लेकिन जांच से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक तीनों पुलवामा के डॉक्टर अफगानिस्तान जाकर मुस्लिम उत्पीड़न के मैसेज को सबके सामने रखना चाहते थे और पैन-इस्लामिक एजेंडे का समर्थन करना चाहते थे. अब एजेंसियां इन तीनों संदिग्ध इस्लामियों की सही पहचान पता लगाने में जुटी हैं.

पाकिस्तान या जैश-ए-मोहम्मद की सीधी भूमिका के सबूत नहीं

सुरक्षा एजेंसियों को अभी तक इस आत्मघाती हमले में पाकिस्तान या जैश-ए-मोहम्मद की सीधी भूमिका के सबूत नहीं मिले हैं. लेकिन चिंता की बात यह है कि इस मॉड्यूल के आतंकियों ने ऐसा खतरनाक विस्फोटक तैयार कर लिया था, जिसमें आग लगाने वाले कैमिकल और अमोनियम नाइट्रेट को मिलाकर विस्फोटक का तापमान बहुत कम कर दिया गया था. इसी वजह से जब फॉरेंसिक टीम जांच के दौरान नमूना ले रही थी, तब नवगाम थाने में बरामद विस्फोटक अचानक फट गया. इस हादसे में सुरक्षाकर्मियों सहित नौ लोगों की मौत हो गई.

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भारतीय खुफिया एजेंसियों की बड़ी चिंता क्या है?

रेड फोर्ट धमाके के बाद भारतीय खुफिया एजेंसियों की सबसे बड़ी चिंता यह है कि सीमा पार से होने वाली आतंकी हलचल को तो इलेक्ट्रॉनिक निगरानी से पकड़ा जा सकता है, लेकिन स्थानीय आतंकियों के छोटे मॉड्यूल (जो खुद ही कट्टरपंथी बन जाते हैं) का कोई इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड नहीं होता. इसलिए उन्हें पकड़ना बेहद मुश्किल हो जाता है.