Jharkhand News: झारखंड में साहित्य का घर कहां? लाइब्रेरी के नाम पर चलाए जा रहे स्टडी रूम
Jharkhand News: झारखंड में पुस्तकालय के नाम पर बिजनेस का नया धंधा किया जा रहा है. जिन जगहों पर किताबों से सजी अलमारियां और पाठकों की भीड़ होनी चाहिए थी, वहां अब सिर्फ भाड़े की कुर्सियां और घंटों की गिनती है. किताबें नहीं हैं, सिर्फ फीस लेकर घंटों बैठने का इंतजाम है. आंकड़े के मुताबिक झारखंड में कुल 329 लाइब्रेरी हैं, जिनमें रांची में 81 और जमशेदपुर में 29. लेकिन असलियत यह है कि इन लाइब्रेरी में से कई या तो निजी संस्थानों की ओर से संचालित हैं जहां हर किसी की पहुंच नहीं है, या फिर नाम मात्र की हैं.
Jharkhand News: कभी शहरों में पुस्तकालय का नाम सुनते ही आंखों के सामने किताबों से सजी अलमारियां, शांत कोने और पन्नों की सरसराहट आती थी. लेकिन आज, तस्वीर कुछ और है. अब शहरों की गलियों में पुस्तकालय के नाम पर बिजनेस का नया धंधा खड़ा हो गया है. जिन जगहों पर किताबों से सजी अलमारियां और पाठकों की भीड़ होनी चाहिए थी, वहां अब सिर्फ भाड़े की कुर्सियां और घंटों की गिनती है. किताबें नहीं, सिर्फ फीस लेकर घंटों बैठने का इंतजाम है. छात्र पढ़ते जरूर हैं, लेकिन अपनी लाई हुई कॉपी और किताबों से. सवाल उठता है ये असली पुस्तकालय है या सिर्फ नाम का व्यापार? जिसे लाइब्रेरी के नाम पर चलाया जा रहा है.
झारखंड की पहचान सिर्फ़ खनिज और जंगल नहीं, बल्कि गहरी साहित्यिक परंपरा भी रही है. यहाँ जन्मे लेखकों ने समाज, संस्कृति और संघर्ष को शब्द दिए. जमशेदपुर और आसपास से निकले साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं से न केवल राज्य बल्कि पूरे देश को समृद्ध किया. इन्हीं में से डॉ. रामदयाल मुंडा ने आदिवासी संस्कृति और भाषाई विरासत को वैश्विक पहचान दिलाई. अनिता चौबे ने अपनी कविताओं और कहानियों से स्त्री संवेदना और सामाजिक सरोकारों को स्वर दिया. शिव खेड़ा, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मोटिवेशनल लेखन के लिए प्रसिद्ध हैं, उन्होंने सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास का संदेश दिया. वहीं अंशुमन भगत, जो 21वीं सदी के चर्चित हिंदी लेखक हैं, अपनी सरल और स्पष्ट लेखनी के जरिए युवाओं और समाज दोनों को गहराई से प्रभावित कर रहे हैं. इन सभी लेखकों की विशेषता यह है कि इन्होंने अलग-अलग विधाओं में लिखकर झारखंड की सांस्कृतिक और बौद्धिक धरोहर को समृद्ध किया है.
फिर आश्चर्य कहां? आंकड़े बताते हैं कि झारखंड में कुल 329 लाइब्रेरी हैं, जिनमें रांची में 81 और जमशेदपुर में 29. लेकिन असलियत यह है कि इन लाइब्रेरी में से कई या तो निजी संस्थानों द्वारा संचालित हैं जहाँ हर किसी की पहुंच नहीं है, या फिर नाम मात्र की हैं. यही वजह है कि साहित्य प्रेमी और साधारण छात्र अक्सर दरवाजे तक आकर लौट जाते हैं. हालांकि जामताड़ा जिला एक मिसाल बनकर सामने आया है, जहां हर ग्राम पंचायत में 118 कम्युनिटी लाइब्रेरी बनाई गई हैं और करियर काउंसलिंग व मुफ्त मोटिवेशनल कार्यक्रम भी चलाए जाते हैं. लेकिन विडंबना देखिए, जिस धरती ने इतने साहित्यकार दिए, वहीं आज जीवंत सार्वजनिक पुस्तकालय ढूंढना मुश्किल हो गया है.
लाइब्रेरी का मतलब सिर्फ़ एसी स्टडी रूम नहीं है. असली पुस्तकालय वह है जहां कोई छात्र अपने मन की किताब उठा सके, जहां साहित्य प्रेमी अपने प्रिय लेखक को पढ़ सके, जहां समाज के हर वर्ग को ज्ञान तक समान पहुंच हो. आज वक्त है कि झारखंड अपनी साहित्यिक धरोहर को फिर से संभाले. शहरों में सिर्फ़ स्टडी हॉल नहीं, बल्कि जीवंत पुस्तकालय होने चाहिए, जहां किताबें बोलें, पाठक सुनें और साहित्य जीवित रहे. क्योंकि सच्चाई यही है कि जहां किताबें नहीं, वहां साहित्य की सांसें भी धीरे-धीरे थम जाती हैं.
