Gyanvapi Masjid : ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर मिली संरचना गुप्त युग के शिवलिंग के समान, इतिहासकार का दावा

Gyanvapi Masjid Case: देश भर में ज्ञानवापी मस्जिद विवाद चर्चा का विषय बना हुआ है. इन सबके बीच, इतिहासकार भगवान सिंह ने कहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर पाए गए शिवलिंग जैसी संरचना वाराणसी के पास पाए जाने वाले गुप्ता काल से मिलती-जुलती है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 21, 2022 6:34 AM

Gyanvapi Masjid Case: देश भर में ज्ञानवापी मस्जिद विवाद चर्चा का विषय बना हुआ है. इन सबके बीच, इतिहासकार भगवान सिंह ने कहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर पाए गए शिवलिंग जैसी संरचना वाराणसी के पास पाए जाने वाले गुप्ता काल से मिलती-जुलती है. भगवान सिंह ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पीएचडी की डिग्री हासिल की हैं और मूर्ति पूजा और प्राचीन भारतीय इतिहास के विशेषज्ञ हैं.

ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर मिली संरचना सैदपुर शिवलिंग के समान

इंडिया टुडे के साथ विशेष बातचीत में इतिहासकार भगवान सिंह ने कहा कि संग्रहालय में संरक्षित शिवलिंग की खुदाई सालों पहले वाराणसी के पास सैदपुर इलाके से की गई थी. सैदपुर और आसपास के क्षेत्र गुप्त साम्राज्य की राजधानियों में से एक थे. उनका दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर मिली संरचना सैदपुर शिवलिंग के समान है. उन्होंने कहा कि एक शिवलिंग की पहचान उसकी सामग्री और निर्माण के प्रकार से होती है. एक विशेषज्ञ आसानी से बता सकता है कि क्या कोई ढांचा शिवलिंग है और अगर है तो वह किस युग का है. उन्होंने कहा कि पहले ज्ञात शिवलिंग हड़प्पा और मोहनजोदड़ो स्थलों पर पाए गए थे.

सबसे पुराना शिवलिंग हड़प्पा और मोहनजोदड़ो स्थलों की खुदाई के दौरान मिले

इतिहासकार भगवान सिंह ने कहा कि आर्य आक्रमण के सिद्धांत के विपरीत, इतिहासकारों का कहना है कि हड़प्पा सभ्यता में लोग शैववाद के उत्साही शिष्य थे, क्योंकि पहले ज्ञात शिवलिंग हड़प्पा और मोहनजोदड़ो पुरातात्विक स्थलों की खुदाई के दौरान पाए गए थे. स्थलों की खुदाई में शामिल झोन मार्शल ने अपनी पुस्तक मोहनजोदड़ो-द इंडस सिविलाइजेशन में स्थलों पर पाए जाने वाले शिवलिंगों के प्रकारों का उल्लेख किया है. इतिहासकार ने कहा कि भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे पुराना शिवलिंग हड़प्पा और मोहनजोदड़ो स्थलों की खुदाई के दौरान मिला है, जो काफी हद तक आधुनिक शिवलिंग के समान हैं. भगवान सिंह ने कहा कि हड़प्पा की खुदाई के दौरान भगवान शिव के एक रूप पशुपतिनाथ की मूर्ति भी मिली थी. इसका अर्थ है कि हड़प्पा सभ्यता एक शैव सभ्यता थी. शिवलिंग के बारे में साहित्य में सबसे पहला उल्लेख वैदिक काल से मिलता है.

प्राचीन साहित्य के अनुसार शिवलिंग की पहचान

इतिहासकार भगवान सिंह ने कहा कि वृहद संहिता, वैदिक युग के साहित्य के श्लोक 53-54 के अध्याय 58 के अनुसार, एक शिवलिंग के तीन भाग भग पीठ (शीर्ष और गोल आकार), भद्र पीठ (आठ किनारों वाला मध्य भाग), और ब्रम्ह पीठ ( जमीन के नीचे रहता है और उसके चार कोने हैं) होते हैं. उन्होंने कहा कि सैदपुर में पाए गए शिवलिंग की भगा पीठ मस्जिद परिसर के अंदर मिली संरचना के समान है. मैंने इसे केवल टीवी पर देखा है और इसलिए मैं यह कह सकता हूं कि यह समान दिखता है. उन्होंने कहा कि मैं इसे व्यक्तिगत रूप से देखे बिना पुष्टि नहीं कर सकता. हालांकि, शिवलिंग की पहचान करना बहुत आसान है, क्योंकि यह भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाने वाले सबसे आम पुरातात्विक साक्ष्यों में से एक है और एक विशेषज्ञ इसे देखकर ही बता सकता है.

शिवलिंग के निर्माण के युग को बताते है पत्थर

इतिहासकार ने कहा कि शिवलिंग के निर्माण में इस्तेमाल किए गए पत्थर न केवल इसकी उत्पत्ति की पुष्टि करते हैं, बल्कि इसके निर्माण के युग को भी बताते हैं. भगवान सिंह ने कहा कि इसी तरह के कई शिवलिंगों में जटा (भगवान शिव के लंबे बाल) भाग पीठ से नीचे की ओर बह रहे हैं. कई में भगवान के चेहरे हैं और कई में देवताओं की मूर्तियां हैं. उन्होंने कहा कि शिवलिंग बनाने का कोई कठोर तरीका नहीं है, लेकिन ऐसा करने के कई तरीके हैं.

इतिहासकार को शोध भारत में मूर्ति पूजा पर

भगवान सिंह ने कहा कि गुप्त काल के दौरान, मंदिरों के दरवाजों में एक तरफ देवी गंगा और दूसरी तरफ देवी यमुना की मूर्तियां थीं, जो भक्तों के लिए पवित्रता के प्रतीक के रूप में थीं. देवी गंगा की सवार एक मकर (मगरमच्छ) है और देवी यमुना की सवार एक कछुआ है. उन्होंने कहा कि मैंने टीवी पर देखा कि सर्वेक्षण के दौरान मस्जिद के अंदर एक मकर मूर्ति भी मिली थी. मेरा शोध भारत में मूर्ति पूजा पर है और मैं कह सकता हूं कि यदि अधिक बिंदु जुड़े हुए हैं, तो यह स्थापित किया जा सकता है कि एक मंदिर था जो चौथी से छठी शताब्दी CE के बीच बनाया गया था.

Next Article

Exit mobile version