Constitution: संविधान से समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द हटाने के लिए पेश किया गया निजी विधेयक

भाजपा के राज्यसभा सांसद डॉक्टर भीम सिंह ने शुक्रवार को राज्यसभा में दो निजी विधेयक पेश किया है. एक विधेयक में उन्होंने नियोजित शहरी विकास के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय प्राधिकरण के गठन की मांग और दूसरे विधेयक में भारत के संविधान से 'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को हटाने की मांग की.

By Anjani Kumar Singh | December 6, 2025 6:34 PM

Constitution: संविधान से समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द को हटाने की मांग पुरानी है. एक बार फिर यह मांग जोर पकड़ रही है. भाजपा के राज्यसभा सांसद डॉक्टर भीम सिंह ने शुक्रवार को राज्यसभा में इस बाबत दो निजी विधेयक पेश किया. एक विधेयक में उन्होंने नियोजित शहरी विकास के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय प्राधिकरण के गठन की मांग की और दूसरे विधेयक में भारत के संविधान से ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को हटाने की मांग की. 


इस निजी विधेयक का विपक्षी दलों की ओर से जोरदार विरोध किया गया. इस बारे में भीम सिंह का कहना है कि भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को अंगीकृत, अधिनियमित तथा आत्मार्पित किया गया जो 26 जनवरी 1950 से लागू हुआ. मूल संविधान में ये दोनों शब्द नहीं थे. ये दोनों शब्द काफी बाद में इंदिरा गांधी द्वारा 1976 में इमरजेंसी के दौरान 42 वें संविधान संशोधन के जरिए संविधान में जोड़ दिए गए हैं जो कि बिल्कुल अनावश्यक हैं. सिंह ने कहा कि इंदिरा ने इन दो शब्दों को विदेशी प्रभाव और मुस्लिम तुष्टीकरण के तहत शामिल किया था. 

संविधान निर्माताओं ने सोच-समझकर लिया था फैसला

ऐसा नहीं कि संविधान निर्माताओं की नजरों से ये दोनों शब्द ओझल रह गए थे. उन्होंने इन शब्दों को प्रस्तावना में जोड़ने या छोड़ने को लेकर व्यापक चर्चा की थी और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इन शब्दों को जोड़ना बिल्कुल गैर जरूरी है. स्वयं डॉक्टर अंबेडकर ने कहा कि भारत प्राचीन काल से सर्वधर्म समभाव के सिद्धांत का पालन करता आया है और इस प्रकार धर्मनिरपेक्षता तो भारत का स्वभाव है. अंबेडकर ने समाजवाद शब्द के परिप्रेक्ष्य में कहा कि हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को किसी खास आर्थिक दर्शन अपनाने के लिए बाध्य नहीं कर सकते. 


डॉ सिंह ने साफ कहा कि संविधान में न ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द जोड़ने की जरूरत है और न ‘समाजवाद’ जोड़ने की. जब हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने व्यापक चर्चा के बाद इन शब्दों को संविधान में जोड़ना उचित नहीं समझा था तब काफी बाद में इन्हें जोड़ देना मुनासिब नहीं था और अब भी इन्हें जुड़े रहने देना तो बिल्कुल गलत है. लिहाजा इन दोनों शब्दों को विलोपित करने के उद्देश्य से उन्होंने संविधान संशोधन निजी विधेयक प्रस्तुत किया है जिसे सदन ने स्वीकृत कर लिया है. इस पर आगे के सत्रों में चर्चा होगी और समुचित निर्णय लिया जाएगा. 

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