हार्दिक पटेल ने दी बुआ आनंदीबेन को चुनौती, बोले कांग्रेस को हटाया, 2017 में भाजपा को भी हटायेंगे

एक 22 साल का युवा जींस और टीशर्टपहने एक विशाल रैली को संबोधित करता है. फेसबुक और टि्वटर पर तस्वीरें डालने का शौक जिसमें हथियारों के साथ ली गयी तस्वीर पर ज्याला लाइक और कमेंट. सब एक साधारण युवा की तरह. पर आखिर इसमें ऐसा खास क्या है, इसमें जो लोग इसकी बात बड़े मन […]

By Prabhat Khabar Print Desk | August 21, 2015 2:20 PM

एक 22 साल का युवा जींस और टीशर्टपहने एक विशाल रैली को संबोधित करता है. फेसबुक और टि्वटर पर तस्वीरें डालने का शौक जिसमें हथियारों के साथ ली गयी तस्वीर पर ज्याला लाइक और कमेंट. सब एक साधारण युवा की तरह. पर आखिर इसमें ऐसा खास क्या है, इसमें जो लोग इसकी बात बड़े मन से सुन रहे हैं. कहने को, तो इसके साथ गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदी पटेल का भी नाम जुड़ा है, लेकिन आज वो अपनी " बुआ"( मुख्यमंत्री गुजरात आनंदी बेन पटेल) को भी लगभग धमकी भरे लहजे में कहता सुना गया कि उनका भतीजा अब बड़ा हो गया है. हार्दिक के साथ पटेल समाज भी खड़ा हो रहा है, जो आरक्षण की मांग कर रहा है. हार्दिक ने आज जब एक बड़ी रैली की, तोउन्होंनेसीधे तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी चुनौती दी. उन्होंने कहा, पटेल समाज ने बहुत पहले कांग्रेस को उखाड़ फेंका था अब कमल को भी यहां से उखाड़ फेंकने का वक्त आ गया.

आरक्षण के कारण नौकरी गवायी, दर्द ने राजनीति में लाकर खड़ा किया
अहमदाबाद के विरमगांव के चंद्रपुर में 20 जुलाई 1993 को हार्दिक पटेल का जन्म हुआ. हार्दिक का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ लेकिन एक साधारण लड़का जो एक साधारण सी नौकरी चाहता था उसे राजनीति ने अपनी तरफ तब खींच लिया जब उसके पड़ोस के एक लड़के की नौकरी उससे कम नंबर लाने के बावजूद हो गयी. उसे उस वक्त आरक्षण का महत्व समझ आया. उसने ये बात अपने दोस्तों के साथ छोटी मोटी सभाओं में रखनी शुरू कर दी. बड़े नेताओं ने भी उसे उस वक्त कोई महत्व नहीं दिया लेकिन धीरे-धीरे युवाओं को भी एक नेता मिल गया जो आरक्षण के दर्द को सही ढंग से सही जगह पर पहुंचा सकता था. रिटायर्ड अफसर औऱ कई बड़े लोग भी हार्दिक के इसदर्दके साथ खड़े होते गये और इस तरह अकेले चले हार्दिक के पीछे इतना बड़ा कारवां खड़ा हो गया कि उनकी एक आवाज पर लाखों लोग जमा हो जाते हैं.
क्या चाहता है पाटिदार समूह
पाटिदार ग्रुप आरक्षण की मांग कर रहा है. शुरुआत में जब इसकी आवाज मुखर होनी शुरू हुई तो किसी ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया लेकिन धीरे- धीरे इस ग्रुप ने अपने साथ एक विशाल जनसमूह खड़ा कर लिया. अब गुजरात सरकार के लिए यह सिरदर्द बनता जा रहा है. उत्तर गुजरात के बाद मध्य गुजरात, दक्षिण गुजरात, सौराष्ट्र सभी प्रदेश में आज ‘जय सरदार, जय पाटीदार’ के नारे गूंज रहे है. पाटीदार को कुछ नहीं चाहिए, पाटीदार को सिर्फ अनामत चाहिए के नारे तेज हो रहेहैं.
सरकार ने शुरू में आरक्षण की मांग को लेकर आयोजित की जा रही रैली की इजाजत नहीं दी लेकिन अंत में सरकार को इजाजत देनी पड़ी. हार्दिक पटेल आरक्षण की मांग के पीछे तर्क देते हुए कहते हैं कि पिछले पंद्रह साल में खेती ने गांवों के भीतर पटेलों को कमज़ोर कियाहै. आबादी तीस प्रतिशत होने के बाद भी उनकी स्थिति कमज़ोर होती जा रही है. युवाओं को नौकरियां नहीं मिल रही हैं. अच्छे संस्थान में नामांकन नहीं हो रहा है. इसलिए अब आरक्षण की मांग तेज हो रही है. एक समय था जब पटेल नेताओं ने ओबीसी आरक्षण का विरोध किया था अब ओबीसी दर्जा मांग रहे हैं.
हार्दिक पटेल की राजनीतिक महत्वकाक्षा
हार्दिक पटेल का कद पिछले कुछ सालों में ही काफी बढ़ गया है. उनके ट्वीट और बयान साफ बताते है कि उनका रुख राजनीति की तरफ भी है. भले ही उन्होंने अपनी इस महत्वाकांक्षा के विषय में चुप्पी साध रखी हो लेकिन गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ उनके बयान खुलकर सामने आये. आम आदमी पार्टी की तरफ उनका झुकाव भी साफ नजर आया. गुजरात में हार्दिक वोट बैंक की राजनीति को भी अच्छी तरह समझते हैं वो जानते हैं कि गुजरात में पटेल वोट बैंक का क्या योगदान है.
कितनी जायज है पटेल समाज के आरक्षण की मांग
वोट बैंक और जनसंख्या के आधार पर पटेल समाज के आरक्षण की मांग कितनी जायज है. इस पर चर्चा से पहले हमें आकड़ो पर ध्यान देना होगा गुजरात के 54 प्रतिशत ओबीसी में 30 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा ठाकुर समाज का है. पटेल समाज की भी संख्या कम नहीं है. 17 से 20 प्रतिशत हैं. देश में गुर्जर और जाट आंदोलन पहले ही आरक्षण की मांग कर रहे हैं.
ऐसे में ओबीसी की श्रेणी में पहले से आने वाले समूह डर हुए हैं कि अगर इन लोगों को भी इस सूची में शामिल कर लिया गया तो उनके लिए परेशानी खड़ी होगी. अगर पटेल आंदोलन के डर से राज्य सरकार ने कोई फैसला लिया तो केंद्र सरकार के लिए नयी परेशानी खड़ी हो सकती है सुप्रीम कोर्ट में रद्द होने के बाद भी जाट आरक्षण का सवाल अभी भी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है.

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