क्या आप परिवार के साथ पोर्न साइट्स देख सकते हैं?

इन दिनों भारत में एक नयी बहस छिड़ी हुई है कि क्या पोर्न साइट्स को बैन कर देना चाहिए? दरअसल इस बहस की शुरुआत तब हुई जब सरकार ने 857 पोर्न साइट्स को बंद करने का आदेश पारित किया. सरकार ने इंटरनेट सेवा उपलब्ध कराने वाली कंपनियों को इन साइट्स को बंद करने का निर्देश […]

By Prabhat Khabar Print Desk | August 6, 2015 2:28 PM

इन दिनों भारत में एक नयी बहस छिड़ी हुई है कि क्या पोर्न साइट्स को बैन कर देना चाहिए? दरअसल इस बहस की शुरुआत तब हुई जब सरकार ने 857 पोर्न साइट्स को बंद करने का आदेश पारित किया. सरकार ने इंटरनेट सेवा उपलब्ध कराने वाली कंपनियों को इन साइट्स को बंद करने का निर्देश दिया. लेकिन सरकार के इस निर्देश के सामने आते ही सोशल मीडिया पर हंगामा मच गया और सरकार के फैसले की जमकर आलोचना हुई. इन आलोचनाओं के बाद सरकार बैकफुट पर आ गयी और उसने उन साइट्स को बैन करने का आदेश दिया जो चाइल्ड पोर्नोगॉफी को बढ़ावा देते हैं. लेकिन यहां सवाल यह है कि आखिर क्यों इस बैन को लेकर हंगामा मचा?

क्या भारतीय समाज पोर्न सामाग्री देखना चाहता है?

यह सवाल इसलिए लाजिमी है, क्योंकि जब सरकार ने इन साइट्स पर बैन लगाने की मांग की, तो तथाकथित प्रगतिशील लोगों की पेट में बहुत दर्द हुआ. लेकिन इसका आशय यह कतई नहीं है कि संपूर्ण भारतीय समाज पोर्न का समर्थक है.

पोर्न और सेक्स का अंतर

सेक्स एक स्वाभाविक क्रिया है, लेकिन पोर्न नहीं. सेक्स से इंसान को मानसिक और शारीरिक संतुष्टि मिलती है, जबकि पोर्न इंसान को भ्रमित करता है और उसे संतुष्टि ना देकर उत्तेजित मात्र करता है. बलात्कार की बढ़ती घटनाओं के लिए अगर पोर्न को जिम्मेदार ठहराया गया है, तोइसमें कुछ गलतभीनहीं है.देश में एक मजबूत मत यह है कि देश में बढ़ती बलात्कार की घटनाओं के लिए कहीं ना कहीं पोर्न जिम्मेदार है. लेकिन यह भी कहना सही नहीं है, सिर्फ पोर्न के कारण ही बलात्कार की घटनाएं होती हैं.

क्या आप परिवार के साथ बिना हिचक पोर्न देख सकते हैं?

अगर पोर्न कोई विवादास्पद मुद्दा नहीं है, तो क्या कोई परिवार के साथ इसे देख सकता है. अगर नहीं, तो फिर इसे गलत क्यों ना माना जाये. इस तर्क के विरोध में लोग यह तर्क दे सकते हैं कि क्या पति-पत्नी परिवार के सामने सेक्स करते हैं? लेकिन यह तर्क कहीं से भी सही नहीं होगा, क्योंकि हमारे समाज में विवाह की परंपरा है. विवाह नामक संस्था में समाज एक स्त्री-पुरुष को सेक्स की इजाजत देता है. इसलिए पोर्न और सेक्स की तुलना नहीं की जानी चाहिए.

खजुराहो और पोर्न की तुलना भी न्यायसंगत नहीं

अकसर लोग यह तर्क देते हैं कि भारतीय समाज में सेक्स कभी प्रतिबंधित नहीं था. इसका प्रमाण खजुराहो की मूर्तियां हैं. निसंदेह भारतीय समाज सेक्स के बारे में काफी उच्च कोटि की विचारधारा से प्रभावित था, तभी यहां मंदिरों में सेक्स संबंधित मूर्तियां बनायी गयीं. लेकिन यहां विकृत मानसिकता को बढ़ावा नहीं दिया जाता. नि:संदेह पोर्न विकृत मानसिकता की एक कड़ी है, जिसे बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए.

पोर्न पर प्रतिबंध स्वतंत्रता का हनन नहीं

पोर्न पर प्रतिबंध को स्वतंत्रता के हनन से जोड़कर देखा जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने भी इसपर यह कहते हुए प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया था कि अगर एक बालिग व्यक्ति अपने बंद कमरे में पोर्न देखता है, तो उसे कानून कैसे रोक सकता है. सच है, लेकिन यह भी एक सच है कि पोर्न इंसान में विकृत मानसिकता को बढ़ावा देता है, जहां तक बात इस पर प्रतिबंध की है, तो आज के दौर में जहां जहां इतना खुलापन है, बैन का कोई फायदा नहीं होगा. इसलिए यह सभ्य समाज पर ही छोड़ देना चाहिए कि वह पोर्न देखना चाहता है या नहीं.

Next Article

Exit mobile version