निर्भया : हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार और जेल प्रशासन को लगायी फटकार, कहा- ‘व्यवस्था कैंसर से ग्रस्त”

नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने निर्भया मामले में दोषियों द्वारा व्यवस्था की खामियों का फायदा अपनी सजा में देरी करवाने के मकसद से उठाने के लिए दिल्ली की आप सरकार और जेल प्रशासन को कड़ी फटकार लगायी. अदालत ने कहा कि दिल्ली सरकार और जेल प्रशासन ने एक ऐसी कैंसर ग्रस्त व्यवस्था की […]

By Prabhat Khabar Print Desk | January 15, 2020 10:12 PM

नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने निर्भया मामले में दोषियों द्वारा व्यवस्था की खामियों का फायदा अपनी सजा में देरी करवाने के मकसद से उठाने के लिए दिल्ली की आप सरकार और जेल प्रशासन को कड़ी फटकार लगायी.

अदालत ने कहा कि दिल्ली सरकार और जेल प्रशासन ने एक ऐसी कैंसर ग्रस्त व्यवस्था की रचना की है जिसका फायदा मौत की सजा पाये अपराधी उठाने में लगे हैं. न्यायमूर्ति मनमोहन और न्यायमूर्ति संगीता ढींगरा सहगल ने यह कड़ी टिप्पणी दिल्ली सरकार और जेल अधिकारियों की इस दलील पर की, जिसमें उन्होंने अदालत से कहा कि निर्भया सामूहिक बलात्कार एवं हत्या मामले में चारों दोषियों में से किसी भी दोषी को 22 जनवरी की निर्धारित तारीख को फांसी के फंदे से (मौत होने तक) लटकाया नहीं जा सकता क्योंकि उनमें से एक ने दया याचिका (राष्ट्रपति को) दी है.

चारों दोषियों मुकेश कुमार सिंह (32), विनय शर्मा (26), अक्षय कुमार सिंह (31) और पवन गुप्ता (25) को तिहाड़ जेल में 22 जनवरी को फांसी दी जानी है. दिल्ली की एक अदालत ने सात जनवरी को उनका मृत्यु वारंट जारी किया था. दिल्ली सरकार के वकील (फौजदारी) राहुल मेहरा ने अदालत से कहा कि जेल नियमावली के तहत यदि किसी मामले में मौत की सजा एक से अधिक व्यक्ति को सुनायी गयी है और यदि उनमें से कोई एक भी व्यक्ति दया याचिका दे देता है तो, याचिका पर फैसला होने तक अन्य व्यक्तियों की भी मौत की सजा की तामील निलंबित रहेगी. इस पर पीठ ने जोर से कहा, यदि सभी सह-दोषियों के दया याचिका देने तक आप कार्रवाई नहीं कर सकते हैं तो आपका नियम खराब है. ऐसा लगता है कि (नियमों को बनाते समय) दिमाग नहीं लगाया गया. व्यवस्था कैंसर से ग्रसित है.

उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार और जेल अधिकारियों को इस बात के लिए भी फटकार लगायी कि उन्होंने दोषियों को अपनी ओर से इस बारे में यह नोटिस जारी करने में देर की कि वे राष्ट्रपति को दया याचिका दे सकते हैं. पीठ ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के पांच मई 2017 के फैसले के बाद ही यह नोटिस जारी कर देना चाहिए था. इसके बजाय यह 29 अक्तूबर और 18 दिसंबर 2019 को जारी किया गया. उच्च न्यायालय ने कहा, खुद को सही से व्यवस्थित करिये. आपके अंदर खामी है. समस्या यह है कि लोग व्यवस्था में भरोसा खो देंगे. चीजें सही दिशा में नहीं हो रही हैं. व्यवस्था का फायदा उठाया जा सकता है. जेल अधिकारियों के बचाव में मेहरा ने कहा कि जेल नियमावली यह कहती है कि जब तक सभी सह-दोषी अपने सभी कानूनी उपायों का इस्तेमाल नहीं कर लें, हम नोटिस नहीं जारी कर सकते.

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