”एक भगत सिंह देश के लिए फांसी पर चढ़ गए, दूसरे ने लोकतंत्र को सूली पर चढ़ाया”

महाराष्ट्र में चल रहे सियासी उथल-पुथल के बीच राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे पर लगातार आरोप प्रत्यारोप लगा रही हैं. ऐसे में शिवसेना ने अब अपने मुखपत्र ‘सामना’ के जरिये भाजपा और सूबे के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी पर हमला बोला है. सामना ने अपने संपादकीय में राज्यपाल की भगत सिंह ‘कोश्यारी’ की तुलना स्वतंत्रता सेनानी भगत […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 26, 2019 5:40 PM

महाराष्ट्र में चल रहे सियासी उथल-पुथल के बीच राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे पर लगातार आरोप प्रत्यारोप लगा रही हैं. ऐसे में शिवसेना ने अब अपने मुखपत्र ‘सामना’ के जरिये भाजपा और सूबे के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी पर हमला बोला है.

सामना ने अपने संपादकीय में राज्यपाल की भगत सिंह ‘कोश्यारी’ की तुलना स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह से करते हुए उन्‍हें आड़े हाथों लिया है. संपादकीय में लिखा गया कि एक भगत सिंह ने देश की आजादी के लिए फांसी के फंदे को चूम लिया था, वहीं दूसरे भगत सिंह (कोश्‍यारी) ने हस्ताक्षर से रात के अंधेरे में लोकतंत्र और आजादी को सूली पर चढ़ा दिया.

सामना में लिखा है- महाराष्ट्र में जो कुछ भी हुआ उसे ‘चाणक्य-चतुराई’ या ‘कोश्यारी साहेब की होशियारी’ कहना भूल होगी. मराठी पत्र में शिवसेना ने पूछा- जब हमने साफ संकेत दे दिया कि शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस गठबंधन के पास 162 विधायकों का समर्थन है, तो राज्यपाल द्वारा पिछले हफ्ते देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार को क्रमश: मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के लिए बुलाने का क्या आधार था?

मालूम हो कि महाराष्ट्र की सियासी उठापटक के बीच शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी मिलकर सरकार बनाने की कवायद में जुटी थी. इसी बीचबीते शनिवार की सुबह देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री और अजित पवार ने डिप्टी सीएम पद की शपथ लेकर सबको चौंका दिया था. इसके बाद कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना ने सरकार बनाने के इस तरीके पर सवाल खड़े करते हुए राज्यपाल के आदेश के खिलाफ सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटाया.

सुप्रीम कोर्ट ने देवेंद्र फडणवीस सरकार को बहुमत परीक्षण के लिए बुधवार शाम पांच बजे तक का समय दिया. कोर्ट ने मंगलवार को फ्लोर टेस्ट, प्रोटेम स्पीकर, ओपेन बैलेट, लाइव टेलीकास्ट कराने का आदेश दिया. इसके बाद महाराष्ट्र से लेकर दिल्ली तक सियासी सरगर्मी तेज हो गई और कोर्ट के फैसले के साथ ही भाजपा आधी सियासी जंग हार गई. जबकि, गवर्नर ने 7 दिसंबर तक का समय दिया था. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भाजपा के लिए बहुमत का आंकड़ा जुटाना आसान नहीं था. महाराष्ट्र की बची-खुची बाजी भाजपा ने अजित पवार के इस्तीफे के साथ अपने हाथों से गंवा दिया.

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