वन्य उत्पादों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए तकनीक का प्रयोग जरूरी : अर्जुन मुंडा

आदिवासी उद्यम को बढ़ावा देने के लिए आयोजित हुआ राष्ट्रीय कार्यशाला ब्यूरो, नयी दिल्ली वन्य उत्पादों से आदिवासियों की आय बढ़ाने के लिए सरकार शहद, बांस और लाह पर विशेष ध्यान दे रही है. इसके उत्पादन में खर्च कम आता है और आय भी अच्छी हो सकती है. केंद्रीय आदिवासी मामलों का मंत्रालय इसके लिए […]

By Prabhat Khabar Print Desk | August 8, 2019 7:13 PM

आदिवासी उद्यम को बढ़ावा देने के लिए आयोजित हुआ राष्ट्रीय कार्यशाला

ब्यूरो, नयी दिल्ली

वन्य उत्पादों से आदिवासियों की आय बढ़ाने के लिए सरकार शहद, बांस और लाह पर विशेष ध्यान दे रही है. इसके उत्पादन में खर्च कम आता है और आय भी अच्छी हो सकती है. केंद्रीय आदिवासी मामलों का मंत्रालय इसके लिए बेहतर बाजार मुहैया कराने की योजना पर काम कर रहा है. तकनीक के जरिए इसकी गुणवत्ता बढ़ाने का काम किया जा रहा है. इन उत्पादों के विकास की काफी संभावना है.

भारत बांस उत्पादन में विश्व में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है. लगभग 13.96 मिलियन हेक्टेयर में इसकी खेती होती है. चीन में जहां प्रति हेक्टेयर 50 मिट्रिक टन का उत्पादन होता है, वहीं भारत में यह सिर्फ 10-15 मिट्रिक टन प्रति हेक्टेयर है. ऐसे में भारत में इसके विकास की काफी संभावना है.

अगर शहद की बात की जाये तो राष्ट्रीय हनी बोर्ड के अनुसार वर्ष 2017-18 में देश में 1.05 लाख मिट्रिक टन शहद का उत्पादन हुआ. पिछले 12 साल में शहद के निर्यात में 200 फीसदी का इजाफा हुआ है. सरकार का मानना है कि आदिवासियों को ट्रेनिंग और तकनीक की जानकारी देकर शहद का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है.

वहीं, लाह लंबे समय से आदिवासियों की आजीविका का साधन रहा है. देश में लाह के कुल उत्पादन का 57 फीसदी झारखंड में होता है, लेकिन निर्यात के मामले में भारत काफी पीछे है. चीन, थाइलैंड जैसे देश निर्यात के मामले में काफी आगे हैं. ऐसे में इन उत्पादों के जरिये आदिवासियों की आय बढ़ाने के उपायों को लेकर गुरुवार को ट्राईफेड और जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने शहद, बांस और लाह पर फोकस करने और जनजातीय उद्यम को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजन किया.

कार्यक्रम का उदघाटन करते हुए आदिवासी मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने बांस तथा बांस अर्थव्यवस्था, लाह तथा शहद पर रिपोर्ट जारी की. कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुंडा ने कहा कि ऐसे प्रयासों का फोकस केवल रोजगार सृजन तक सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि बाजार की आवश्यकताओं पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए.

समर्थन प्रणाली और अनुसंधान बाजार प्रेरित होने चाहिए और बाजार में मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाये रखना चाहिए. जनजातीय लोगों के साथ उद्यमी की तरह व्यवहार करते हुए तकनीक के प्रयोग को बढ़ावा देने की जरूरत है.

इस मौके पर केंद्रीय आदिवासी मामलों की राज्यमंत्री रेणुका सिंह ने कहा कि ऐसी पहलों से वन-धन विकास केंद्र मजबूत होंगे. वन- धन, जनधन और पशुधन के एकीकरण से जनजातीय लोगों की जिंदगी में सुधार आयेगा.

मंत्रालय के सचिव दीपक खांडेकर ने कहा कि वन-धन योजना के लिए बांस, शहद और लाह को शामिल करने का कारण यह है कि ये उत्पाद पहले से बाजार में हैं और इसके लिए बाजार मुहैया कराना जरूरी है. राष्ट्रीय कार्यशाला का मकसद बांस, शहद और लाह के क्षेत्र में कौशल और स्थानीय संसाधनों पर आधारित जनजातीय उद्यम स्थापित करने के लिए रणनीति बनाना है.

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