जलेस का 11 वां राष्ट्रीय सम्मेलन, डॉ चंचल सिंह ने की अध्यक्षता, वक्ताओं ने कहा- संस्कृति को बचाने की लड़ाई

11th National Conference of Jales: विषयक विचार गोष्ठी में राजस्थान के भंवर  मेघवंशी ने दलित विमर्श पर अपनी बात रखते हुए कहा कि  दलितों को शोषण सहने की नियति बन चुकी है. लेकिन हम खामोश हैं. झारखंड की नीतीशा खलखो ने आदिवासियों की  दयनीय स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि   आदिवासी नेतृत्व को मजबूत किया जाए ताकि संघर्ष और आंदोलन को और तेज किया जा सके  तभी शोषण से मुक्ति का रास्ता खुलेगा.

By Pritish Sahay | September 19, 2025 10:54 PM

11th National Conference of Jales: बांदा स्थित प्रेम सिंह बगिया के सभागार में डॉ चंचल सिंह की अध्यक्षता में जलेस का 11 वां राष्ट्रीय सम्मेलन की शुरुआत की गई. उदघाटन सत्र को संबोधित करते हुए मशहूर वैज्ञानिक, गौहर रजा ने कहा कि आज सबसे ज्यादा खतरा संस्कृति पर है. हमें इस लड़ाई को मिल जुल कर लड़ना होगा. हमें आम लोगों तक पहुंचने के लिए बोलियों  तक पहुंचने की बात कही तथा उर्दू अदब में जनवाद की मौजूदगी की बात कही. फैज का हवाला देते हुए कहा कि 132 शब्दों की शायरी से सत्ता प्रतिष्ठान भयभीत है. मुख्य अतिथि की हैसियत से बोलते हुए कॉम सुभाषिनी अली ने कहा कि  वर्तमान सरकार संविधान पर हमला कर मनुस्मृति लागू करना चाहती है . महिलाओं की सहभागिता पर भी अपनी बात रखी. जन संस्कृति मंच के महासचिव मनोज सिंह एवं प्रगति लेखक संघ की ओर से खान फारूक खान प्रलेस के प्रतिनिधि ने प्रलेस के महासचिव सुखदेव सिंह सिरसा का शुभकामना संदेश पढ़ा.

प्रेम सिंह ने उद्घाटन सत्र में किसानों की व्यथा पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज देश में किसानों की स्थिति बहुत ही गंभीर है. संसद में उनका कोई प्रतिनिधि नहीं है, उनकी कहीं सुनाई नहीं देती है. उन्होंने लेखकों का आह्वान करते हुए कहा कि आप मेरी आवाज बने. सभा का संचालन डॉ संजीव ने किया. तीन दिन चलने वाले इस राष्ट्रीय सम्मेलन में यूपी,राजस्थान,महाराष्ट्र हरियाणा,बिहार, झारखंड, गुजरात, दिल्ली, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के लगभग 300 प्रतिनिधि शामिल हुए. झारखंड से 24 प्रतिनिधि शामिल हुए जिसमें रांची से 8, जमशेदपुर से 8, धनबाद से 4, बोकारो से 2, मधुपुर से 2.

विषयक विचार गोष्ठी में राजस्थान के भंवर  मेघवंशी ने दलित विमर्श पर अपनी बात रखते हुए कहा कि  दलितों को शोषण सहने की नियति बन चुकी है. लेकिन हम खामोश हैं. झारखंड की नीतीशा खलखो ने आदिवासियों की  दयनीय स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि   आदिवासी नेतृत्व को मजबूत किया जाए ताकि संघर्ष और आंदोलन को और तेज किया जा सके  तभी शोषण से मुक्ति का रास्ता खुलेगा. नामवर कवि संपत सरल ने तीखा प्रहार करते हुए कहा  कि ये सांस्कृतिक लड़ाई है,  हास्य व्यंग्य की कविता, चुटकुला, जन गीत से इन्हें लड़ा जा सकता है. अपनी  कविता के माध्यम से उन्होंने सत्ता पर तीखा प्रहार किया. मीडिया पर प्रहार करते हुए कहा कि 1947 से पहले टीवी चैनल होते तो देश आजाद नहीं होता.  शुभा ने कहा कि धर्म का उदार चेहरा गुम कर दिया गया है और धर्म का क्रूर चेहरा सत्ता से समझौता कर चुका है.

डेमोक्रेसी पूंजी के काम की चीज नहीं है. इसलिए सत्ता,पूंजी और  आज की मीडिया इसे खत्म करना चाहती है. इस ढांचे में हम संघर्ष नहीं कर सकते बल्कि हमें सभी जातियों, धर्म के लोगों को साथ  लेकर  सामाजिक,सांस्कृतिक एवं राजनीतिक आंदोलन की धार को और तेज करना होगा. शाहीन बाग के आंदोलन का भी हवाला दिया. डॉ अली इमाम खान ने अध्यक्षीय भाषण दिया सभा की अध्यक्षता डॉ अली इमाम खान ,मनमोहन,और राम प्रकाश त्रिपाठी की अध्यक्ष मंडली ने की. तथा बजरंग बिहारी तिवारी ने संचालन किया. दूसरे सत्र के समापन के बाद  सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया.