सुप्रीम कोर्ट में सब विवादों की जड़ है आरपी लूथरा मामला

नयी दिल्ली:सुप्रीमकोर्ट के चार सबसे सीनियर जजों ने भारत के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को जो पत्र लिखा था, उसमें बिना किसी तर्क के तरजीह वाली पीठ को चयनात्मक तरीके से मामले को आवंटित करने के बारे में सवाल उठाने के लिए आरपी लूथरा बनाम भारत सरकार के मामले का उल्लेख किया गया है. उस […]

By Prabhat Khabar Print Desk | January 13, 2018 9:17 AM

नयी दिल्ली:सुप्रीमकोर्ट के चार सबसे सीनियर जजों ने भारत के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को जो पत्र लिखा था, उसमें बिना किसी तर्क के तरजीह वाली पीठ को चयनात्मक तरीके से मामले को आवंटित करने के बारे में सवाल उठाने के लिए आरपी लूथरा बनाम भारत सरकार के मामले का उल्लेख किया गया है. उस मामले में मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर का उल्लेख किया गया है.

सुप्रीमकोर्ट के चार सबसे वरीय जजों (जस्टिस जे चेलामेश्वर,जस्टिस रंजन गोगोई,जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसफ) द्वारा लिखे गये पत्र में कहा गया है, ‘सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन एवं अन्य बनाम भारत सरकार (2016) 5 एससीसी 1 के अनुसार, जब एमओपी पर इस अदालत की संविधान पीठ को फैसला सुनाना था, तो यह समझना मुश्किल है कि कैसे कोई अन्य पीठ इस विषय पर सुनवाई कर सकती है.’

गत वर्ष 27 अक्तूबर को शीर्ष अदालत की दो जजों की पीठ ने उच्चतर न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति के लिए मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (एमओपी) को अंतिम रूप देने में विलंब के मुद्दे का न्यायिक पक्ष की तरफ से परीक्षण करने पर सहमति जता दी थी और अटॉर्नी जनरल से जवाब मांगा था. पीठ ने कहा था, ‘हमें प्रार्थना पर विचार करने की जरूरत है कि व्यापक जनहित में एमओपी को अंतिम रूप देने में और विलंब नहीं होना चाहिए. यद्यपि इस अदालत ने एमओपी को अंतिम रूप देने के लिए कोई समयसीमा नहीं तय की है, लेकिन इसे अनिश्चिकाल केलिए नहीं खींचा जा सकता है.’

आरपी लूथरा खुद वकील हैं. वह खुद इस मामले में पेश हुए थे और एमओपी के अभाव में उन्होंने उच्चतर न्यायपालिका में नियुक्तियों को चुनौती दी थी. राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) मामले में फैसले के मद्देनजर एमओपी को अंतिम रूप दिया जाना था. यह पत्र तकरीबन दो महीने पहले चारों जजों ने चीफ जस्टिस को लिखा था, लेकिन उसे अब मीडिया में जारी किया गया है.

इस पत्र में सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एवं अन्य बनाम भारत सरकार (एनजेएसी मामला) में संविधान पीठ के फैसले का भी उल्लेख है, जिसमें केंद्र से सीजेआई के साथ विचार-विमर्श करके नया एमओपी तैयार करने को कहा गया था. एनजेएसी मामले में बहुमत के फैसले से असहमति जताते हुए न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने कहा था कि जजं की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली ‘अपारदर्शी’ है और इसमें और ‘पारदर्शिता’ की जरूरत है.

जस्टिस चेलामेश्वर एनजेएसी मामले में पांच सदस्यीय संविधान पीठ का हिस्सा थे. आरपी लूथरा मामला हालांकि बाद में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ के समक्ष आठ नवंबर,2017 को सूचीबद्ध किया गया था. उसने एमओपी को अंतिम रूप देने में विलंब के मुद्दे का परीक्षण करने के दो जजों की पीठ के 27 अक्तूबर,2017 के आदेश को वापस ले लिया था.

तीन जजों की पीठ ने तब कहा था, ‘इन मुद्दों पर न्यायिक पक्ष विचार नहीं कर सकता है, क्योंकि एनजेएसी मामले में संविधान पीठ ने पहले ही कानून तय किया है.’ चार जजों ने अपने पत्र में कहा, ‘एमओपी के बारे में किसी भी मुद्दे पर चर्चा चीफ जस्टिसों के सम्मेलन में होनी चाहिए और पूर्ण अदालत द्वारा होनी चाहिए. इतने महत्वपूर्ण मामले पर अगर न्यायिक पक्ष को विचार करना है, तो इस पर संविधान पीठ के अलावा किसी और को विचार नहीं करना चाहिए.’

चारों जजों ने इस घटनाक्रम को ‘गंभीर चिंता’ के साथ देखा जाना चाहिए. पत्र में कहा गया था, ‘माननीय चीफ जस्टिस हालात में सुधार करने के लिए कर्तव्य से बंधे हैं और कॉलेजियम के अन्य सदस्यों के साथ पूर्ण चर्चा और जरूरत पड़ने पर बाद में इस अदालत के अन्य माननीय न्यायाधीशों के साथ चर्चा के बाद उचित उपचारात्मक कदम उठायें.’

चारों जजों ने पत्र में चीफ जस्टिस से यह भी कहा था, ‘एक बार जब आप आरपी लूथरा बनाम भारत सरकार मामले में 27 अक्तूबर, 2017 के आदेश सेउत्पन्न मुद्दे का पर्याप्त निराकरण कर देते हैं और अगर यह उतना जरूरी हो जाता है, तो हम इस अदालत द्वारा दिये गये अन्य न्यायिक आदेशों से विशेष रूप से आपको अवगत करायेंगे. उनसे भी उसी तरह से निबटने की जरूरत होगी.’

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