बोले राष्ट्रपति , सरकार के योजनाओं की जानकारी दलित, पिछड़े और आदिवासियों को मिले

नयी दिल्ली : राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज कहा कि अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य दुर्बल वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों के लिए काम करना और भोजन एवं जीवन स्तर में सुधार करना भी राज्य का कर्तव्य है और यह अत्यंत जरुरी है कि समाज के इन वर्गो के जीवन को बेहतर बनाने के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 27, 2017 6:20 PM

नयी दिल्ली : राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज कहा कि अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य दुर्बल वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों के लिए काम करना और भोजन एवं जीवन स्तर में सुधार करना भी राज्य का कर्तव्य है और यह अत्यंत जरुरी है कि समाज के इन वर्गो के जीवन को बेहतर बनाने के लिये सरकार द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों की पूरी जानकरी इन्हें मिले.

इंटरनेशनल अम्बेडकर कॉनक्लेव को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान में वर्णित नीति निदेशक तत्व सामाजिक न्याय के लिए स्पष्ट दिशा प्रदान करते हैं. अनुसूचित जातियों, जन-जातियों और अन्य दुर्बल वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों के लिए काम करना तथा भोजन और जीवन स्तर में सुधार करना भी राज्य का कर्तव्य है. ऐसे अन्य निदेशक तत्व भी संविधान में वर्णित हैं जिनका सीधा प्रभाव अनुसूचित जातियों और जन-जातियों के लोगों पर पडता है.

उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति एवं जन-जाति वर्ग के ज्यादातर लोग अपने संवैधानिक अधिकारों के विषय में नहीं जानते हैं. इसी प्रकार केंद्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा स्वास्थ्य, कानूनी सहायता, शिक्षा, कौशल जैसे क्षेत्रों में चलाए जा रहे जन-कल्याण के अभियानों और योजनाओं के बारे में भी कार्यक्रम लोग जागरुक नहीं हैं. यही स्थिति कन्या, महिला, किसान और गरीबों के हित में चलाए जा रहे अभियानों और कार्यक्रमों के बारे में भी है. कोविंद ने कहा, यह अत्यंत जररी है कि समाज के इन वर्गो के जीवन को बेहतर बनाने के लिये सरकार द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों की पूरी जानकरी मिले.

राष्ट्रपति सचिवालय की विज्ञप्ति के अनुसार, राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा कि बाबासाहेब ने कहा था कि न्याय, बंधुता, समता और स्वतन्त्रता से युक्त समाज ही मेरा आदर्श समाज है. इसी आदर्श का समावेश उन्होने हमारे संविधान में किया. हम जानते हैं कि हमारे संविधान का मूल उद्देश्य एक ऐसे लोकतन्त्र का निर्माण करना है जिसमे सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय प्राप्त हो, प्रतिष्ठा और अवसर की समानता प्राप्त हो और समस्त नागरिकों में बंधुता बढे.

उन्होंने कहा कि डॉक्टर अंबेडकर ने असमानता की अमानवीय स्थितियों का सामना करते हुए असाधारण शिक्षा के बलबूते तरक्की और प्रतिष्ठा हासिल की थी. सामाजिक अधिकारों के लिए संघर्ष के साथ सार्वजनिक जीवन में प्रवेश करते हुए उन्होने भारतीय समाज को सही अर्थों में आधुनिक समाज बनाने की दिशा में अद्वितीय योगदान दिया. उनकी पुण्य स्मृति में यह कृतज्ञ राष्ट्र उन्हें नमन करता है.

कोविंद ने कहा कि दुनिया के सबसे बडे लोकतन्त्र के हर वर्ग के लोगों की आशाओं को पूरा करने के रास्ते डॉक्टर अंबेडकर के बनाए हमारे संविधान में उपलब्ध हैं. संविधान के प्रारुप को प्रस्तुत करते हुए डॉक्टर अंबेडकर ने संवैधानिक नैतिकता के महत्व को रेखांकित किया था. उन्होने कहा था कि संवैधानिक नैतिकता को विकसित करने के लिए प्रयास करना पडता है. यह कहकर उन्होने स्पष्ट संकेत दिया था कि भारतवासियों को संवैधानिक नैतिकता का विकास करते रहना चाहिए.

अंबेडकर को उद्धृत करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि किसी भी संविधान की सफलता का आधार केवल उसमे निहित प्रावधान ही नहीं हैंअ संविधान की सफलता जनता पर तथा उन राजनैतिक दलों पर भी निर्भर करती है जिनका उपयोग जनता अपनी आकांक्षाओं और राजनैतिक प्राथमिकताओं को अंजाम देने के लिए साधन के रुप में करती है. हमारे पास विरोध व्यक्त करने के संवैधानिक तरीके उपलब्ध हैं अत: संविधान विरोधी अराजकता के व्याकरण से बचना जरुरी है. उन्होंने कहा कि स्वतन्त्रता, समता और बंधुत्व को वे एक दूसरे पर निर्भर मानते थे . इन तीनों में किसी एक के अभाव में बाकी दोनों अर्थहीन हो जाते हैं. मात्र राजनैतिक लोकतन्त्र से संतुष्ट होना अनुचित होगा. सामाजिक लोकतन्त्र की स्थापना भी करनी होगी.

राष्ट्रपति ने कहा कि डॉक्टर अंबेडकर ने शिक्षा के बुनियादी महत्व पर बहुत जोर दिया था. संवैधानिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए शिक्षा का प्रसार होना अनिवार्य है. वे कहते थे कि राजनीति के समान ही शिक्षण संस्थान भी महत्वपूर्ण है. किसी भी समाज की उन्नति उस समाज के बुद्धिमान, तेजस्वी और उत्साही युवाओं के हाथ में होती है. शिक्षा पर उन्होने बहुत ध्यान दिया और अनेक संस्थानों की स्थापना की. जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए वे शिक्षा को पहली सीढ़ी मानते थे. कोविंद ने इस संदर्भ में फोरम आफ एससी एंड एसटी लेजिस्लेटर्स एंड पार्लियामेंटेरियन्य जैसी संस्थाओं के योगदान की सराहना की.