भारत में 85 प्रतिशत लोगों को चुनी हुई सरकार पर भरोसा, पढ़ें प्यू रिसर्च सेंटर का सर्वे

नयी दिल्ली : भारत में 85 फीसदी लोग अपनी सरकार पर भरोसा करते हैं, लेकिन यहां चौंकाने वाली बात यह है कि बड़ी संख्या में भारतीय सैन्य शासन और तानाशाही के भी समर्थक हैं. एक सर्वेक्षण से यह बात सामने आयी है. प्यू रिसर्च सेंटर ने अपनी सर्वेक्षण रिपोर्ट में बताया है कि अपने मजबूत […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 17, 2017 9:25 AM

नयी दिल्ली : भारत में 85 फीसदी लोग अपनी सरकार पर भरोसा करते हैं, लेकिन यहां चौंकाने वाली बात यह है कि बड़ी संख्या में भारतीय सैन्य शासन और तानाशाही के भी समर्थक हैं. एक सर्वेक्षण से यह बात सामने आयी है. प्यू रिसर्च सेंटर ने अपनी सर्वेक्षण रिपोर्ट में बताया है कि अपने मजबूत लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए पहचाने जाने वाले भारत में 55 फीसदी लोग किसी न किसी तरह से तानाशाही का समर्थन करते हैं. इनमें से 27 फीसदी लोग मजबूत नेता के पक्षधर हैं.

पीएम मोदी ने कहा-जीएसटी पर निर्णय लेने में कांग्रेस समेत सभी दल बराबर के भागीदार

सर्वेक्षण में भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी रिपोर्ट तैयार की गयी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में अर्थव्यवस्था 2012 से 6.9 फीसदी की दर से बढ़ रही है और वहां 85 फीसदी से अधिक लोग अपनी सरकार में विश्वास रखते हैं. सर्वे की मानें तो, वैश्विक स्तर पर 26 फीसदी लोगों ने यह कहा कि ऐसी व्यवस्था शासन के लिए अच्छी होगी, जिसमें मजबूत नेता संसद या अदालतों के दखल के बिना खुद निर्णय ले.

सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले 71 फीसदी लोगों ने कहा कि यह शासन के लिए उचित नहीं होगा. भारत एशिया प्रशांत क्षेत्र के उन तीन देशों में सम्म‍िलत है, जहां लोग टेक्नोक्रैसी के समर्थक हैं. सर्वे के अनुसार एशिया पैसिफिक के लोग विशेषज्ञों द्वारा शासन पसंद करते हैं, इनमें विशेषकर वियतनाम (67 प्रतिशत ), भारत (65 प्रतिशत ) और फिलिपिंस (62 प्रतिशत) है.

VIDEO : कांग्रेस गुजरात विरोधी, विकासवाद की जंग में भाजपा जीतेगी, वंशवाद हारेगा : PM मोदी

सर्वे से यह बात भी सामने आयी है कि 53 प्रतिशत भारतीय और 52 प्रतिशत दक्षिण अफ्रीकी लोग अपने देश के लिए सैन्य शासन को अच्छा मानते हैं लेकिन सर्वे में यह भी बात सामने आयी है कि दोनों ही समाज में बुजुर्ग इस विचार का समर्थन नहीं करते हैं. इनमें वे लोग हैं जिन्होंने लोकतांत्रिक शासन के लिए लड़ाई लड़ी हैं या फिर वे लोकतंत्र के पथ-प्रदर्शकों की अगली पीढ़ी हैं.

Next Article

Exit mobile version