आखिर जल में ही क्यों विसर्जित की जाती हैं देवी-देवताआें की प्रतिमाएं, जानिये इससे जुड़ी कुछ रोचक बातें…

नयी दिल्लीः नवरात्र शुरू है आैर 30 सितंबर यानी शनिवार को विजयदशमी भी है. इस बीच, खबर यह भी है कि 30 सितंबर को ही दुर्गा माता अपने लोक को चली जायेंगी. माता के जाने के बाद उनकी प्रतिमाएं जल में विसर्जित कर दी जायेंगी. हर साल माता की प्रतिमाएं जल में प्रवाहित कर दी […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 26, 2017 12:34 PM

नयी दिल्लीः नवरात्र शुरू है आैर 30 सितंबर यानी शनिवार को विजयदशमी भी है. इस बीच, खबर यह भी है कि 30 सितंबर को ही दुर्गा माता अपने लोक को चली जायेंगी. माता के जाने के बाद उनकी प्रतिमाएं जल में विसर्जित कर दी जायेंगी. हर साल माता की प्रतिमाएं जल में प्रवाहित कर दी जाती हैं आैर अकेले माता की ही प्रतिमाएं नहीं, बल्कि अन्य देवी-देवताआें की प्रतिमाएं भी जल में ही विसर्जित की जाती हैं.

इस बीच सवाल यह भी पैदा होता है कि आखिर देवी-देवताआें की प्रतिमाएं जल में ही प्रवाहित क्यों की जाती हैं? बहुत कम लोग ही एेसे होंगे, जो शास्त्र के इस गूढ़ रहस्य को जानते होंगे. यह जानना बेहद जरूरी है कि आखिर प्रतिमाएं जल में ही विसर्जित या प्रवाहित क्यों की जाती हैं.

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इस साल 30 सितंबर यानी शनिवार को एक तरफ रावण का पुतला दहन किया जायेगा, तो मां दुर्गा भी वापस अपने लोक लौट जायेंगी. माता के जाने के बाद उनकी प्रतिमा को जल में प्रवाहित किया जायेगा, क्योंकि शास्त्रों में ऐसा वर्णित है. शास्त्रों में कहा गया है कि देवी-देवताओं की प्रतिमा को पूजन के बाद जल में समर्पित कर देना चाहिए. शास्त्रों में ऐसा क्यों कहा गया है, यह जान लेना भी जरूरी है.

जल के देवता वरुण माने जाते हैं भगवान विष्णु के दूसरा स्वरूप

शास्त्रों का कहना है कि देवी-देवताओं की प्रतिमा को पूजन के बाद जल में समर्पित कर देना चाहिए. शास्त्रों में ऐसा इसलिए कहा गया है, क्योंकि जल के देवता वरुण हैं, जो भगवान विष्णु के ही स्वरूप माने जाते हैं. इसलिए जल को हर रूप में पवित्र माना गया है. यही वजह है कि कोई भी शुभ काम करने से पहले पवित्र होने के लिए जल का प्रयोग किया जाता है.

सृष्टि का आदि आैर अंतिम स्थल है जल

शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि भगवान की मूर्तियों को जल में इसलिए विसर्जित किया जाता है, क्योंकि सृष्टि के प्रारंभ में भी सिर्फ जल ही था और सृष्टि के अंत के समय भी सिर्फ जल ही शेष बचेगा. यानी जल ही अंतिम सत्य है. यही कारण है कि भगवान विष्णु मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी के रूप में धरती पर अवतरित हुएख् तो जल ही समाधि ली थी.

नीर में निवास करने से नारायण कहते हैं भगवान विष्णु

भगवान विष्णु नीर यानी जल में निवास करते हैं, इसलिए नीर में निवास करने की वजह से वे नारायण कहलाते हैं. जल में निवास होने के कारण जल को भी नारायण भी माना गया है. जल शांति, बुद्धि और ज्ञान का प्रतीक भी माना जाता है. इसलिए जल में देव प्रतिमाओं का वसर्जित करने का विधान है.

प्राण-प्रतिष्ठा के समय मूर्ति में स्थापित हो जाते हैं देवी-देवता

शास्त्रों में कहा गया है कि जब हम किसी मूर्ति की स्थापना करते हैं, तो मूर्ति पूजा से पहले उनकी प्राण प्रतिष्ठा की जाती है. इस दौरान देवी-देवता अंश रूप में प्रतिमा में विराजमान हो जाते हैं. जब मूर्ति को जल में विसर्जित करते हैं, तो वह जल मार्ग से अपने लोक को प्रस्थान कर जाते हैं.

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