नवरात्र से वंचित रह गये बाढ़ प्रभावित परिवार, जी रहे खानाबदहोश की जिंदगी

मुंगेर. जिले में चारों ओर शारदीय नवरात्र को लेकर उत्सवी माहौल है. श्रद्धालु आस्था के सागर में गोता लगा रहे. पूरे वातावरण में भक्ति का आवेग फूट पड़ा है. लेकिन

By BIRENDRA KUMAR SING | September 22, 2025 11:48 PM

मुंगेर. जिले में चारों ओर शारदीय नवरात्र को लेकर उत्सवी माहौल है. श्रद्धालु आस्था के सागर में गोता लगा रहे. पूरे वातावरण में भक्ति का आवेग फूट पड़ा है. लेकिन बाढ़ के कारण गांव-घर छोड़ कर अन्यत्र शरण लिये हुए बाढ़ प्रभावित परिवार शारदीय नवरात्र पर माता दुर्गा की पूजा-अर्चना से महरूम रह गये. यह चिंता उनको परेशान कर रही है. उनको यह भी चिंता है कि इस दुर्गा पूजा में गांव-घर लौट पायेंगे अथवा नहीं. बाढ़ से कई गांव डूब गए हैं. नतीजतन, बड़ी संख्या में लोगों को अपने घर छोड़कर सुरक्षित जगहों पर जाना पड़ा. वे अपने परिवार और पशुओं को लेकर सड़कों, ऊंची जगहों, नदी के किनारे और पार्कों में रह रहे हैं. पिछले दो महीनों में गंगा नदी के जलस्तर में उतार-चढ़ाव के कारण, सदर ब्लॉक में नदी के दूसरी ओर स्थित सीताचरण व जाफरनगर गांवों के सैकड़ों परिवार शहर के बाबूआ घाट पर शरण में हैं. इसी तरह, शहीद एसपी केसी सुरेंद्र बाबू पार्क के आसपास लोग प्लास्टिक शीट लगाकर अस्थायी झोपड़ियां बना रहे हैं. ये परिवार बहुत मुश्किल स्थिति में हैं, वे दो महीने से अपने घरों में वापस नहीं जा पाए हैं. उन्हें खाना-पीने का सामान भी मुश्किल से मिल रहा है. वे इस बात की चिंता में हैं कि वे अपने परिवार व पशुओं को कैसे खिलाएंगे. बाबूआ घाट और केसी सुरेंद्र बाबू पार्क में रह रहे राम प्रवेश, क्षत्रिय पहलवान व सुदामा देवी ने बताया कि वे दो महीने से इन अस्थायी शेल्टर में रह रहे हैं. इस दौरान तीन बार बाढ़ का पानी उनके घरों में घुस गया और अब भी पानी नहीं गया है. उन्होंने बताया कि उनका परिवार एक जगह है, जबकि उनका पशुधन दूसरी जगह है. अपने गांव सीताचरण जाने के लिए उन्हें 30 रुपये किराया देना पड़ता है. वहां जाकर बाढ़ की स्थिति देखकर उन्हें वापस अस्थायी शिविर में लौटना पड़ता है. वे अपने बच्चों व पशुओं के साथ टेंट में रात बिताते हैं. सुबह होते ही खाने की तलाश में निकल जाते हैं. उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है जैसे गंगा नदी ने हमें श्राप दे दिया हो. नवरात्र का त्योहार शुरू हो गया है. सोमवार को पहला पूजा का दिन था, लेकिन हम इस तरह की खराब हालत में जी रहे हैं. हमें चिंता है कि हमारे बच्चे दुर्गा पूजा के त्योहार का माहौल नहीं देख पाएंगे.

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