हिंदी साहित्य के हर काल खंड में चंपारण का अवदान ऐतिहासिक : प्रो. सतीश
महारानी जानकी कुंवर महाविद्यालय के सेवानिवृत्त प्राचार्य प्रो (डॉ) सुरेन्द्र केसरी के कहानी संग्रह "गुनाहों की देवी " एवं उनके द्वारा संपादित काव्य संग्रह - "चंपारण की रम्य रसा " का विमोचन समारोह का आयोजन नगर के राज ड्योढ़ी परिसर के बाबा हरिदास नागा शिशु/बालिका विद्या मंदिर के सभागार में किया गया.
बेतिया. महारानी जानकी कुंवर महाविद्यालय के सेवानिवृत्त प्राचार्य प्रो (डॉ) सुरेन्द्र केसरी के कहानी संग्रह “गुनाहों की देवी ” एवं उनके द्वारा संपादित काव्य संग्रह – “चंपारण की रम्य रसा ” का विमोचन समारोह का आयोजन नगर के राज ड्योढ़ी परिसर के बाबा हरिदास नागा शिशु/बालिका विद्या मंदिर के सभागार में किया गया.साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ””””अनुराग””””, बाबा हरिदास नागा सरस्वती शिशु/बालिका विद्या मंदिर एवं शुभ कंप्यूटर सर्विसेज द्वारा विद्यालय के सभागार में दो सत्रों में आयोजित पुस्तक लोकार्पण समारोह सम्पन्न हुआ.मुख्य अतिथि बीआरए बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर के हिन्दी विभाग में वरीय प्राध्यापक व प्रख्यात शिक्षाविद प्रो.(डॉ) सतीश कुमार राय, पुस्तकों के लेखक/संपादक प्रो.(डॉ) सुरेन्द्र प्रसाद ””””केसरी””””, विशिष्ट अतिथि झखरा,नौतन के ईश्वर शांति डिग्री कॉलेज के अध्यक्ष ज्ञानेंद्र शरण,डॉ. विद्या मंदिर प्रबंध समिति अध्यक्ष डॉ.पूर्णिमा बाला श्रीवास्तव,प्राचार्या विनीता कुमारी व अनुराग के प्रवक्ता डॉ.जगमोहन कुमार ने संयुक्त रुप से दीप प्रज्ज्वलित कर के किया.प्रथम सत्र में प्रो.केसरी द्वारा रचित कहानी- संग्रह ””””गुनाहों की देवी”””” एवं इन्हीं के द्वारा संपादित साझा काव्य- संकलन ””””चम्पारन की रम्य रसा”””” का मंचासीन अतिथियों ने लोकार्पण किया. मुख्य अतिथि प्रो. राय ने कहा कि अपने चंपारण को आदि कविता की जन्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है. हिंदी साहित्य के प्रत्येक काल खंड को चंपारण ने बहुत कुछ दिया है. चाहे सिद्ध साहित्य हो या सरभंग संप्रदाय का संत साहित्य अथवा आधुनिक काल, हर काल खंड में चंपारण का अवदान ऐतिहासिक है.इस परम्परा को समृद्ध करने में साझा काव्य संकलन प्राचीन परम्परा है. “चंपारण की रम्य रसा ” कवियों के विकास को रेखांकित करता है.””””गुनाहों की देवी”””” में नारी विमर्श के माध्यम से युगीन विद्रूपताओं को रेखांकित करने का महत्वपूर्ण लेखक द्वारा किया गया है. अपने अध्यक्षीय संबोधन में डॉ.पूर्णिमा बाला श्रीवास्तव ने कहा कि साहित्य को समाज का दर्पण कहा गया है. साहित्यिक रचनात्मकता को निरंतरता प्रदान करना हर काल खंड की आवश्यकता होती है.प्रधानाचार्या विनीता कुमारी ने कहा कि नारी विमर्श की महत्ता हर युग में रही है. साहित्य सृजन में अपने श्रेष्ठ संस्कारों का समावेश सुनिश्चित करना युग धर्म होना चाहिए. समारोह का संचालन अनुराग के संस्थापक सदस्य डॉ. जगमोहन कुमार एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. चन्द्रिका राम ने किया.
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