शौक बना रोजगार, हुनर को ​​मिला हौसले का सहारा तो बनी नई राह, दूसरों के लिए बनी मिसाल

Hobby vs Income Source : अनगिनत महिलाएं हैं जिन्होंने हालात से हारी महिलाओं को प्रेरणा देकर जीवन की नई राह दिखाई है. कभी दहलीज पार करना मुश्किल लगता था लेकिन हुनर और हौसले से आज सफलता के रोजाना नए सोपान चढ़ रही हैं ऐसी ही मिसाल हैं मीरा बेन, जिन्होंने हॉबी को इनकम सोर्स का जरिया बनाने का फैसला लिया.

By Prabhat Khabar | December 10, 2023 4:33 PM

रचना प्रियदर्शिनी

ग्रामीण भारतीय समाज में आज भी कई महिलाएं घूंघट में अपनी जिंदगी बिताने को मजबूर हैं. वहीं कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं, जिन्होंने इस मजबूरी में जीवन गुजारने के बजाय इससे बाहर निकल कर अपने परिवार के लिए अपने पैरों पर खड़ा होने का निश्चय किया. ऐसी ही एक महिला हैं- मीरा बेन.

सुरेंद्रनगर, गुजरात के एक पारंपरिक गुजराती बंजारा परिवार में पैदा हुईं मीरा बेन का परिवार विगत 32 वर्षों से बिहार की राजधानी पटना के अदालतगंज इलाके में रहता है. इस इलाके में उनकी तरह अन्य कई गुजराती परिवार भी रह रहे हैं. शुरुआत में इन परिवारों की महिलाएं घर के कामों में जुड़ी रहती थीं, जबकि पुरुष छोटा-मोटा व्यवसाय किया करते थे. मीरा 25 वर्षों से कपड़ों पर फुलकारी कला का काम करती हैं, जिससे उन्हें अच्छी आमदनी हो जाती है. भले उनके उत्पाद के साथ कोई ब्रांड नेम नहीं, मगर यह किसी ब्रांड से कम भी नहीं. उनके हाथों की बनायी चीजों से नजर नहीं हटती. इसे सिर्फ कद्रदान ही परख सकते हैं.

विपरीत परिस्थिति में काम आया इनका हुनर
शौक बना रोजगार, हुनर को ​​मिला हौसले का सहारा तो बनी नई राह, दूसरों के लिए बनी मिसाल 2

मीरा बेन को लिखना-पढ़ना तो नहीं आता, मगर थोड़ी-बहुत मुंहजबानी हिसाब-किताब कर लेती हैं. जिस समय उन पर दुखों का पहाड़ टूटा, उस समय उन्हें घर के कामकाज के अलावा सिर्फ एक ही काम आता था, और वो था- फुलकारी कढ़ाई का.

दरअसल, ज्यादातर पारंपरिक गुजराती परिवारों में लड़कियों को यह काम सिखाया जाता है. फुलकारी एक प्रकार की कशीदाकारी कला है, जिसके तहत कपड़ों पर धागों से फूल-पत्तियों वाली कढ़ाई की जाती है. मीरा ने अपने कुछ जेवर-गहने बेच कर इस व्यवसाय के लिए आरंभिक पूंजी जुटाई और फुलकारी काम शुरू किया.

मीरा को वर्ष 2017 में मिल चुका है सर्वाधिक बिक्री का अवार्ड

छोटी उम्र में झेलनी पड़ी बड़ी परेशानियां

15 वर्ष की उम्र में मीरा बेन का बाल-विवाह हो गया और 18 की होते-होते वह दो बच्चों की मां बन गयीं. 28 की उम्र में उन्हें वैधव्य का दुख भी झेलना पड़ा. उस वक्त उनके सामने जो सबसे बड़ी समस्या थी, वो थी खुद के साथ-साथ अपने तीन बच्चों को संभालने की. मीरा के परिवार में उनसे पहले किसी महिला ने घर से बाहर निकल कर अपनी आजीविका कमाने के बारे में शायद ही सोचा था. ज्यादातर महिलाएं पर्दे के पीछे या घूंघट की आड़ में जीवन जीने को मजबूर थीं, लेकिन मीरा ने इसके विपरीत दिशा में बढ़ने का निर्णय लिया.

मीरा को वर्ष 2017 में मिल चुका है सर्वाधिक बिक्री का अवार्ड

पटना के अदालतगंज इलाके में रहने वाली मीरा बेन को फुलकारी कार्य करते हुए 25 वर्ष बीत चुके हैं. वर्तमान में उनके साथ बेटा-बहू सहित कई छह कारीगर भी जुड़े हैं. सब मिलकर एक महीने में करीब 60 चादर, 40 जोड़ा सोफा कवर और कुछ पर्स आदि बना लेती हैं. इससे सालाना उन लोगों को 2-2.5 लाख रुपये की कमाई हो जाती है. उनके बनाये बेडशीट, कुशन कवर समेत अन्य उत्पादों की बिहार समेत झारखंड भर में काफी डिमांड है. इनके हाथों की कशीदाकारी की लोग काफी सराहना करते हैं. मीरा ‘बिहार महिला उद्योग संघ की सदस्य हैं. इसके माध्यम से पटना और रांची में आयोजित मेलों में अपने स्टॉल लगाती हैं. वर्ष 2017 में उन्हें सर्वाधिक बिक्री का पुरस्कार भी मिला था. भविष्य में मीरा का लक्ष्य अपने उत्पादों को अन्य राज्यों में लेकर जाने की है

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