Chanakya Niti: दुष्ट और सांप में किसकी संगति है ज्यादा बेहतर – आचार्य चाणक्य से जानें
Chanakya Niti: दुष्ट और सांप में कौन बेहतर है? आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति में दिया है ऐसा उत्तर जो आपके जीवन को बदल सकता है.पढ़ें पूरी जानकारी.
Chanakya Niti: हमारे जीवन में अच्छे और बुरे दोनों ही प्रकार के लोग मिलते हैं. कुछ लोग अपनी सकारात्मक सोच से हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं, तो कुछ लोग अपनी नकारात्मकता और चालाकी से नुकसान पहुँचाते हैं. आचार्य चाणक्य ने अपनी चाणक्य नीति में ऐसे ही दुष्ट व्यक्तियों से सावधान रहने की बात कही है. उनका मानना है कि दुष्ट व्यक्ति का साथ इंसान के जीवन को जहरीला बना देता है.
Chanakya Niti: दुष्ट व्यक्ति की संगति क्यों है सबसे बड़ा अभिशाप – जानें चाणक्य नीति से
Chanakya Niti Shlok: श्लोक
दुर्जनेन च सर्पेण वरं सर्पो न दुर्जनः।
सर्पो दंशति कालेन दुर्जनस्तु पदे पदे।।
श्लोक का अर्थ
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दुष्ट व्यक्ति और सर्प में तुलना करने पर भी सर्प बेहतर है. इसका कारण यह है कि सर्प केवल तभी डसता है जब उसे छेड़ा जाए या संकट महसूस हो. लेकिन दुष्ट व्यक्ति तो हर समय, हर अवसर पर दूसरों को कष्ट पहुंचाने के लिए तत्पर रहता है. वह बिना कारण भी दूसरों को नुकसान पहुँचाने में संकोच नहीं करता. इसीलिए दुष्ट से बचना अत्यंत आवश्यक है.
Chanakya Niti: दुष्ट व्यक्ति से दूरी बनाना क्यों है जरूरी
- दुष्ट व्यक्ति हमेशा नकारात्मकता फैलाता है. उनसे दूर रहने पर मन में शांति और स्थिरता बनी रहती है.
- दुष्ट व्यक्ति के साथ रहने से अक्सर संदेह और अविश्वास का वातावरण बनता है. उनसे दूरी बनाकर अच्छे और सच्चे संबंध बनाए जा सकते हैं.
- दुष्ट लोग दूसरों का समय और ऊर्जा व्यर्थ करने में माहिर होते हैं. उनसे दूर रहने पर व्यक्ति अपनी ऊर्जा सही दिशा में लगा सकता है.
- दुष्ट व्यक्ति दूसरों की प्रगति से जलते हैं और रोड़े अटकाते हैं. उनसे दूर रहकर इंसान अपनी उन्नति पर ध्यान केंद्रित कर सकता है.
- जैसे सर्प से दूरी रखकर इंसान सुरक्षित रह सकता है, वैसे ही दुष्ट से दूरी बनाकर भी व्यक्ति जीवन की कई समस्याओं से बच सकता है.
आचार्य चाणक्य कहते है कि जैसे हम सर्प से हमेशासावधान रहते हैं, उसी प्रकार हमें दुष्ट व्यक्ति से भी दूरी बनाकर चलना चाहिए. क्योंकि सर्प तो कभी-कभार ही डसता है, लेकिन दुष्ट हर कदम पर हमें कष्ट पहुंचाने के लिए तैयार रहता है.
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