…तो क्या कोरोना से ठीक होने के बाद डायबिटीज का बढ़ जाता है खतरा, जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

अधिकांश लोगों में मधुमेह एक एसिम्टोमेटिक बीमारी है. ऐसे लोगों की एक अच्छी संख्या हो सकती है, जिन्हें कोरोना संक्रमण होने से पहले अपने मधुमेह के बारे में पता नहीं हो सकता है.

By Prabhat Khabar Print Desk | June 7, 2021 11:04 PM

नई दिल्ली : देश में कोरोना की दूसरी लहर भी अब कमजोर होने लगी है, लेकिन तीसरी लहर का खतरा बरकरार है. इस बीच चौंकाने वाली बात यह सामने आ रही है कि जो लोग कोरोना से ठीक हो जा रहे हैं, उन्हें डायबिटीज होने की भी आशंका रहती है. हमने इन्हीं आशंकाओं को दूर करने के लिए दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के एंडोक्रिनोलॉजी और मेटाबॉलिज्म विभाग के प्रमुख डॉ. निखिल टंडन से बात की. आइए, जानते हैं कि उन्होंने पूछे गए सवालों का क्या जवाब दिया…

वायरल संक्रमण से रक्त शर्करा (ब्लड शुगर) का स्तर क्यों बढ़ जाता है?

कोई भी संक्रमण या वायरल बुखार रक्त शर्करा (ब्लड शुगर) के स्तर को बढ़ा सकती है. यह मूल रूप से उस तंत्र का परिणाम है, जिसे शरीर संक्रमण से लड़ने के लिए नियोजित करता है. कुछ मामलों में उस संक्रमण के इलाज के लिए दी जाने वाली दवाएं ब्लड शुगर के स्तर में इस वृद्धि का वजह बन सकती हैं. यदि शुगर एक सीमा से अधिक बढ़ती है, तो गंभीर अवस्था में पहुंच जाती है. इसका एक बेहतर उदाहरण कोरोना के मामले में साइटोकाइन स्टॉर्म है. यह अग्नाश्य द्वारा इंसुलिन स्त्राव के साथ-साथ इंसुलिन के लिए कोशिकाओं की संवेदनशीलता दोनों को प्रभावित करता है. इंसुलिन कोशिकाओं में ग्लूकोज की गति को सुगम बनाता है और किसी भी खराबी (या तो उत्पादन या ऊतक संवेदनशीलता में) से रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है. कोरोना के मामले में मध्यम से गंभीर बीमारी वाले रोगी को स्टेरॉयड देने की आवश्यकता हो सकती है, जिससे रोगियों के रक्त में शर्करा के स्तर में भी वृद्धि हो सकती है.

क्या डायबिटीज कोरोना के रोगियों का इलाज करना मुश्किल है?

अधिकतर मामलों में अच्छी तरह से नियंत्रित मधुमेह वाला व्यक्ति कोरोना इलाज के लिए उसी तरह प्रतिक्रिया करता है, जैसे एक गैर-मधुमेह रोगी करता है. हालांकि, लंबे समय से और खराब नियंत्रित मधुमेह वाले लोगों में या गुर्दे या हृदय रोग जैसी मधुमेह संबंधी जटिलताओं वाले लोगों में कोरोना का प्रबंधन अधिक जटिल हो सकता है. ऐसे मरीजों में रोग का कोर्स अधिक गंभीर हो सकता है, जिसमें आक्रमक प्रबंधन की आवश्यकता होती है. इसमें ऑक्सीजन, वेंटिलेटर, आईसीयू देखभाल आदि की आवश्यकता शामिल होती हैं. ऐसे रोगियों में कोरोना का प्रबंधन मधुमेह के उपचार को और अधिक कठिन बना सकता है.

क्या कोरोना मधुमेह का कारण बन सकता है?

अधिकांश लोगों में मधुमेह एक एसिम्टोमेटिक बीमारी है. ऐसे लोगों की एक अच्छी संख्या हो सकती है, जिन्हें कोरोना संक्रमण होने से पहले अपने मधुमेह के बारे में पता नहीं हो सकता है. ऐसे कई अध्ययन हैं, जो हमें बताते हैं कि खराब संसाधन वाले देशों में मधुमेह जैसी पुरानी बीमारी वाले 50 फीसदी लोगों का सही उपचार नहीं किया जाता. कई मरीज यह जानते हुए भी कि उन्हें मधुमेह है या तो चिकित्सा देखभाल का खर्च उठाने में असमर्थ होते हैं या फिर बीमारी का ठीक से प्रबंधन नहीं कर रहे होते. नतीजतन, मधुमेह के लगभग आठ में से केवल एक मरीजों का रक्त शर्करा स्तर बेहतर रूप से नियंत्रित होता है. फिर ऐसे लोग भी हैं, जिनको मधुमेह होने का खतरा होता है. कुछ रोगियों में यह तनाव या हाइपरग्लेसेमिया और स्टेरॉयड जैसी दवाओं के संयोजन से भी मधुमेह हो सकता है, जिससे ब्लड शुगर के स्तर में वृद्धि हो सकती है.

क्या कोरोना के मरीज डायबिटीज का शिकार हो सकता है?

कोरोना की वजह से संक्रमित मरीज में मधुमेह होने की संभावना पर अभी चर्चा चल रही है. सैद्धांतिक रूप से कोरोना भी मधुमेह का कारण बन सकता है. वजह यह है कि अग्नाशय में एसीई2 रिसेप्टर्स होते हैं, जो सार्स कोव-2 अग्नाशय की बीटा कोशिकाओं में प्रवेश करने में सक्षम हो सकते हैं. नतीजतन, संरचनात्मक और कार्यात्मक क्षति हो सकती है. हालांकि, इस तथ्य का इसका समर्थन करने के लिए हमें अभी और अधिक आंकड़ों की जरूरत है.

तो क्या कोरोना डायबिटीज का कारण बन सकता है?

कोरोना के समय यदि हम एचबीएवनसी का परीक्षण करते हैं, जो हमें पिछले तीन महीनों का औसत ग्लूकोज की जानकारी देता है. यदि इसके स्तर में बढ़ोतरी हो जाती है, तो साफ है कि वह पॉजिटिव होने से पहले ही मधुमेह का मरीज था. यदि एचबीवनसी सामान्य था, तो हमें कोराना के ठीक होने के बाद ब्लड शुगर के स्तर की दोबारा जांच करानी चाहिए. यदि इस दौरान स्टेरॉयड थेरेपी (यदि उपयोग की जाती है) को बंद कर दिया गया है. तब उसके बाद ग्लूकोज का स्तर सामान्य हो जाएगा. यदि बीमारी से ठीक होने या स्टेरॉयड या दोनों के बंद होने के कुछ सप्ताह बाद भी ब्लड शुगर हाई रहता है, तो यह डायबिटीज के कारण होने वाले कोरोना की संभावना को बढ़ा देगा.

डायबिटीज से पॉजिटिव होने या कोरोना से डायबिटीज होने पर डॉक्टर क्या करते हैं?

सही मायने में यह टेस्ट डॉक्टरों को यह जानने में मदद करता है कि क्या कोरोना रोगी में हाई ब्लड शुगर का स्तर अस्थायी है. इन कारणों को समझने और बीमारी के लॉन्ग मैनेजमेंट की जरूरत है. पहले मामले में जैसे ही व्यक्ति कोरोना से ठीक होता है या जब स्टेरॉयड बंद कर दिया जाता है, तो ब्लड शुगर का स्तर सामान्य हो जाता है. इन रोगों को ठीक होने के बाद अपने ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित करने के लिए किसी दवा की जरूरत नहीं होती.

डायबिटीज के रोगी को गंभीर संक्रमण से बचाने के लिए क्या करना चाहिए?

डायबिटीज से गुर्दे, हृदय और आंखों में दिक्कत हो सकती है. ऐसे रोगियों को अधिक सावधान रहने की जरूरत है. उन्हें अपने ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रण में रखने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए. उन्हें अपने आहार, व्यायाम और दवा के बारे में बहुत सावधानी और सतर्कता अपनानी चाहिए. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चूंकि ऐसे रोगियों में गंभीर कोरोना रोग विकसित होने का अधिक खतरा होता है. इसलिए उन्हें टीका लगवाना ही चाहिए. वैक्सीन गंभीर बीमारी की संभावना को काफी कम कर देता है.

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Posted by : Vishwat Sen

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