कोरोना संक्रमण के खिलाफ गेम चेंजर के रूप में देखी जा रही मोनोक्लोनल एंटीबॉडी : डॉ रेड्डी

Corona infection, new weapon, Monoclonal antibodies : हैदराबाद : कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई में मोनोक्लोनल एंटीबॉडी आधारित उपचार को एक नये हथियार के रूप में देखा जा रहा है. अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को कोरोना संक्रमित होने के बाद ड्रग्स के कॉकटेल से इलाज किया गया था. इसके बाद ड्रग्स के कॉकटेल ने दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा था. तीन दिनों के उपचार के बाद ही डोनाल्ड ट्रंप अपने कार्यालय वापस आ गये थे.

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 29, 2021 5:38 PM

हैदराबाद : कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई में मोनोक्लोनल एंटीबॉडी आधारित उपचार को एक नये हथियार के रूप में देखा जा रहा है. अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को कोरोना संक्रमित होने के बाद ड्रग्स के कॉकटेल से इलाज किया गया था. इसके बाद ड्रग्स के कॉकटेल ने दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा था. तीन दिनों के उपचार के बाद ही डोनाल्ड ट्रंप अपने कार्यालय वापस आ गये थे.

हैदराबाद के एजीआई के अध्यक्ष डॉ डी नागेश्वर रेड्डी ने कहा कि मोनोक्लोनल एंटीबॉडी आधारित उपचार को कोविड-19 प्रबंधन में गेम चेंजर की तरह देखा जा रहा है. अभी तक इसकी वास्तविकता दुनिया के सामने सबूत के रूप में स्थापित नहीं हुए हैं. लेकिन, न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन सहित अन्य पत्रिकाओं में नैदानिक अध्ययन उत्साहजनक हैं. क्योंकि, इससे भर्ती मरीजों में वायरल निकासी और मृत्यु में 70 फीसदी की कमी आयी है.

उन्होंने कहा कि मोनोक्लोलन एंटीबॉडी के जरिये उपचार में समय और मरीज का चयन अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है. इस उपचार के लिए 65 साल से अधिक उम्र के मरीज, मोटापा वाले मरीज, अनियंत्रित मधुमेह वाले मरीज और कैंसर मरीजों की तरह इम्यूनोसप्रेसेंट के अधीन रहनेवाले हृदय रोग के मरीज आदर्श उम्मीदवार हैं. साथ ही उपचार के लिए अधिकतम समय तीन से सात दिनों के भीतर दिया जाना चाहिए.

इसके अलावा 55 वर्ष से अधिक आयु के ऐसे मरीजों को यह दिया जा सकता है, जिन्हें हाई ब्लडप्रेशर जैसी हृदय समस्याएं हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि एक सप्ताह के भीतर इस उपचार से मरीजों को आरटी-पीसीआर नेगेटिव बनने में मदद मिल सकती है. हालांकि, गर्भवती महिलाओं को यह उपचार नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि हमारे पास मरीजों के इस सबसेट के लिए पर्याप्त सुरक्षा डेटा नहीं है.

मोनोक्लोनल एंटीबॉडी हमारे शरीर में कैसे काम करते हैं, इस पर डॉ रेड्डी ने बताया कि वे वायरस (एस 1 और एस 2) के स्पाइक प्रोटीन से जुड़ते हैं और उसकी प्रतिकृति को सीमित कर देते हैं. वायरस में उत्परिवर्तन इस मोनोक्लोनल एंटीबॉडी के उपचार की प्रभावशीलता को प्रभावित कर सकता है. हालांकि, कुछ वेरिएंट के खिलाफ प्रभावशीलता साबित हो चुके हैं. हम इस बारे में निश्चित नहीं हैं कि यह डबल म्यूटेंट बी.1.617 (तथाकथित भारतीय संस्करण) के खिलाफ कैसा होगा.

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