EXCLUSIVE: टाटा स्टील झारखंड लिटरेरी मीट-2023 में बोलीं शुभा मुदगल- शास्त्रीय संगीत के प्रति बदलना होगा नजरिया

‘टाटा स्टील झारखंड लिटरेरी मीट-2023’ का आगाज शुक्रवार को ‘आलम-ए-इश्क’ कार्यक्रम से हुआ. इसमें सूफी-भक्ति परंपरा की प्रेम कविता को संगीत के सुरों में सजाने भारतीय शास्त्रीय संगीत की दिग्गज कलाकार शुभा मुदगल पहुंचीं.

By Prabhat Khabar | December 9, 2023 5:21 AM

‘टाटा स्टील झारखंड लिटरेरी मीट-2023’ का आगाज शुक्रवार को ‘आलम-ए-इश्क’ कार्यक्रम से हुआ. इसमें सूफी-भक्ति परंपरा की प्रेम कविता को संगीत के सुरों में सजाने भारतीय शास्त्रीय संगीत की दिग्गज कलाकार शुभा मुदगल पहुंचीं. पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ ताल और तान की जुगलबंदी ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया. अपनी प्रस्तुति के बाद शुभा मुदगल ने ‘प्रभात खबर’ के संवाददाता अभिषेक रॉय से खास बातचीत की. इस दौरान शुभा ने शास्त्रीय संगीत के साथ उनके अटूट प्रेम, युवाओं की शास्त्रीय संगीत साधना और वर्तमान में शास्त्रीय संगीत की निरंतर प्रभाव पर चर्चा की. पेश हैं बातचीत के अंश…

भारतीय शास्त्रीय संगीत में आपका प्रवेश कैसे हुआ?

शुरुआती तालीम पं रामाश्रय झा से मिली. 2009 तक उनका सानिंध्य प्राप्त हुआ. पं रामाश्रय के गुरु पं भोलानाथ भट्ट रहे थे, जिसमें किराना और ग्वालियर घराने का मिश्रण था. इस कारण मुझे भी सिद्ध संगीत पंडितों से मिश्रित संगीत शिक्षा मिली. मैं खुशकिस्मत हूं कि मुझे ऐसे संगीतकारों से सीखने का मौका मिला, जिन्हें संगीत के साथ-साथ साहित्य की समझ थी. इससे कविताओं को संगीत में पिरोने की समझ विकसित हुई.

बॉलीवुड म्यूजिक इंडस्ट्री में कैसे प्रवेश मिला?

अलग-अलग समय में देश के कई दिग्गज शास्त्रीय संगीतकारों ने बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री में अपने आवाज का जादू बिखेरा है. पं हरि प्रसाद चौरसिया, पं शिव कुमार शर्मा, उस्ताद अल्ला रखा साहब, पं रवि शंकर, उस्ताद विलायत खान साहब समेत अन्य इसकी मिसाल हैं. शास्त्रीय संगीत साधकों को कभी कॉमर्शियल म्यूजिक में प्रवेश से परहेज नहीं था. मेरी संगीत साधना को भी ऐसे ही अवसर मिले.

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शास्त्रीय संगीत को विरासत कहा जाता है, आपके नजर में यह कैसा है?

विरासत कभी समाप्त नहीं हो सकती. मैं शास्त्रीय संगीत की ठुमरी और राग-रागरा को आज भी सीख रही हूं. यह नदियों की तरह निरंतर प्रभाव के समान है.

कविताओं को संगीत में पिरोने का अनुभव कैसा है?

मेरे माता-पिता अंग्रेजी के प्रोफेसर थे. इससे साहित्य परिचय हुआ. पढ़ने से साहित्य की समझ विकसित हुई. आगे चलकर संगीत साधना में विलीन हुई, तो गुरुओं से इन्हें गीत में बदलने की शिक्षा मिली.

आज के परिवेश में शास्त्रीय संगीत और कॉमर्शियल म्यूजिक को किस तरह देखती हैं?

युवाओं में सीखने की ललक है. प्रत्येक संगीतकार द्वार पर शिष्यों का तातां लगा है. आज का समाज शास्त्रीय संगीत को जगह नहीं दे रहा. लोगों को लगता है कि शास्त्रीय संगीत से जुड़ने वाले बच्चे अपनी जीविका तैयार नहीं कर सकेंगे. ऐसे में समाज को अपने नजरिये को बदलने की जरूरत है. शास्त्रीय संगीत सीखे बीना संगीत के रहस्य को जानना नामुमकिन है.

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