Azad Bharath Review: महिला क्रांतिकारियों के संघर्ष को प्रभावी ढंग से दर्शाती फिल्म, निर्देशक रूपा अय्यर का अद्भुत काम

Azad Bharath Review: 'आजाद भारत' भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महिला क्रांतिकारियों की अनकही और प्रेरक कहानी को सामने लाती है. यह फिल्म साहस, बलिदान और नारी शक्ति को सम्मान देती है. फिल्म में श्रेयस तलपड़े, सुरेश ओबेरॉय, रूपा अय्यर, इंदिरा तिवारी ने मुख्य किरदार निभाया हैं.

By Divya Keshri | December 31, 2025 1:39 PM

फिल्म रिव्यू: आजाद भारत

  • कलाकार: श्रेयस तलपड़े, सुरेश ओबेरॉय, रूपा अय्यर, इंदिरा तिवारी, डॉ. सुभाष चंद्र, प्रियांशु चटर्जी, सुचेंद्र प्रसाद
  • निर्देशक: रूपा अय्यर
  • प्रोड्यूसर: रूपा अय्यर, जया गोपाल एबी, राजेंद्र राजन
  • बैनर: इंडिया क्लासिक आर्ट्स, जी स्टूडियो 
  • शैली: देशभक्ति
  • अवधि: 2 घंटे भाषा:
  • हिंदी सेंसर: U/A
  • रेटिंग: 3.5 स्टार्स

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के अवसर पर रूपा अय्यर के निर्देशन में बनी पीरियड ड्रामा फिल्म ‘आजाद भारत’ आजाद हिंद फौज की पृष्ठभूमि पर आधारित है. फिल्म में खास तौर पर उसकी महिला इकाई रानी झांसी रेजिमेंट पर ध्यान दिया गया है. इसमें भारत की पहली महिला क्रांतिकारी नीरा आर्या की सच्ची जीवन कहानी दिखाई गई है, जिन्होंने देश की आजादी के लिए बड़ा संघर्ष और बलिदान दिया. फिल्म बताती है कि नीरा आर्या आजाद हिंद फौज में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ काम करती थीं. नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जान की दुश्मन बनी अंग्रेज सरकार में सीआईडी इंस्पेक्टर अपने पति श्रीकांत को भी नीरा ने जान से मार दिया था. यह फिल्म नेताजी की रणनीतियों के साथ-साथ नीरा आर्या की भावुक और साहसी कहानी को आसान और प्रभावी ढंग से पेश करती है.

रूपा अय्यर- श्रेयस तलपड़े अपने किरदार में चमके

नीरा आर्या की भूमिका रूपा अय्यर ने बहुत प्रभावशाली ढंग से निभाई है. उनके चेहरे के भाव, गुस्सा और आक्रोश किरदार को मजबूत बनाते हैं. वह अंग्रेजों के अत्याचार सहती हैं, लेकिन कभी हार नहीं मानतीं. हर सीन में रूपा अय्यर पूरी तरह अपने किरदार में ढली हुई नजर आती हैं. नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रूप में श्रेयस तलपड़े ने भी शानदार अभिनय किया है. इस गंभीर भूमिका में उनकी बॉडी लैंग्वेज और चेहरे के भाव दोनों असरदार हैं. सरस्वती राजामणि बनीं इंदिरा तिवारी का अभिनय भी सराहनीय है. वहीं छज्जूराम के किरदार में सुरेश ओबेरॉय ने अपनी भूमिका के साथ पूरा न्याय किया है.

रूपा अय्यर की गहरी रिसर्च

निर्देशन के मामले में रूपा अय्यर पूरी तरह सफल रही हैं. किसी गुमनाम क्रांतिकारी पर फिल्म बनाना आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने गहरी रिसर्च और मेहनत के साथ इसे पर्दे पर उतारा है. फिल्म सच्ची घटनाओं पर आधारित है, फिर भी कहानी में ऐसे मोड़ हैं जो दर्शकों को बांधे रखते हैं. यह फिल्म देशभक्ति की भावना जगाती है और कई सीन रोंगटे खड़े कर देते हैं. बैकग्राउंड म्यूजिक कहानी के साथ अच्छे से चलता है और डायलॉग भी दिल को छू जाते हैं.

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