मोशन इमोशन की अनयूजवल कहानी ”पीकू”

II उर्मिला कोरी II फ़िल्म-पीकू निर्माता -एन पी सिंह,रोनी लाहिरी निर्देशक- शूजीत सरकार कलाकार अमिताभ बच्चन,दीपिका पदुकोने,इरफ़ान खान,मौसमी चट्टर्जी और अन्य रेटिंग- साढ़े तीन मोशन में इमोशन है.फ़िल्म का यह टैगलाइन और प्रोमो से यह बात पहले ही समझ आ रही थी कि यह मौजूदा दौर की फिल्मों से अलग है. लेखक जूही चतुर्वेदी और […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 8, 2015 3:24 PM

II उर्मिला कोरी II

फ़िल्म-पीकू

निर्माता -एन पी सिंह,रोनी लाहिरी

निर्देशक- शूजीत सरकार

कलाकार अमिताभ बच्चन,दीपिका पदुकोने,इरफ़ान खान,मौसमी चट्टर्जी और अन्य

रेटिंग- साढ़े तीन

मोशन में इमोशन है.फ़िल्म का यह टैगलाइन और प्रोमो से यह बात पहले ही समझ आ रही थी कि यह मौजूदा दौर की फिल्मों से अलग है. लेखक जूही चतुर्वेदी और निर्देशक शूजीत सरकार की जोड़ी ने इस समझ को सही भी साबित कर दिया.

विक्की डोनर के बाद यह जोड़ी कब्ज,पैखाना जैसे सिनेमा से अछूते विषय को लेकर पीकू की कहानी बुनी है ऋषिकेश मुख़र्जी और बासु भट्टाचार्य वाले अंदाज़ में. फिल्म की मूल कहानी पर आए तो यह फ़िल्म पिता पुत्री के रिश्ते को एक अलग अंदाज़ में पारिभाषित करता है. यहाँ पिता पुत्री एक दूसरे की केअर करते हैं लेकिन लड़ते झगड़ते भी है.

हर दिन उनके बीच कब्ज और पैखाने को लेकर चिक -चिक होती है. पिता नहीं चाहते कि उनकी बेटी की शादी हो क्योंकि वह उसे खुद से दूर नहीं करना चाहते है.पीकू उनकी हमेशा ऐसे ही देखभाल करे भास्कोर बनर्जी यही चाहते हैं. यही वजह है कि जब किसी लड़के को वो अपनी बेटी में रूचि लेते देखते हैं तो उनका कहना होता है कि उनकी बेटी वर्जिन नहीं है.

वह फाइनेंसियली और सेक्सुअली स्वतंत्र है. बेटी पीकू अपने बाबा की बहुत केयर करती है. पिता के कब्ज की बीमारी की वह हर छोटी बड़ी बात जानती है. पल पल अपने पिता के लिए वह फिक्रमंद भी दिखती है लेकिन गुस्से में वह अपने बाबा को यह कहना भी नहीं भूलती कि अच्छा होता उन्हें कोई बड़ी बीमारी हो जाती. उनकी वजह से वह वह डेट पर नहीं जा सकी.

फिल्म का ट्रीटमेंट एकदम रीयलिस्टिक है.कोई भी भारी भरकम सन्देश देते नज़र नहीं आते है. न ही रिश्तों को फ़िल्मी अंदाज़ में ज़्यादा गुड़ी गुड़ी होकर निभाते दीखते हैं,जो भी है वह वास्तविक सा है। फिल्म के किरदार उनके रिश्ते ही नहीं. फिल्म के अनुरूप पूरा परिवेश’है. कोलकात्ता का चम्पाकुंज ही नहीं दिल्ली के चितरंजन पार्क में भी चारपाई,मच्छरदानी, सत्यजित रे की तस्वीरें,ढेर सारे बांग्ला साहित्य के ज़रिए वास्तविकता को जिया गया है.

फिल्म में ये सब भी एक अहम किरदार से हैं.फिल्म में बंगाली’मेंटालिटी को बहुत ही’सजीवता से दिखाया गया है. कहानी में थोड़ी बहुत खामियां हैं. फिल्म का अंत कमज़ोर है ,कहानी ज़्यादा प्रभावी नहीं है हाँ उसका नरेसन उसे खास ज़रूर बना जाता है. अभिनय की बात करे तो यह फिल्म की सबसे बड़ी युएसपी है.

अमिताभ बच्चन ने एक बार फिर साबित कर दिया उन्हें सदी का महानायक क्यों कहा जाता है. भास्कोर बनर्जी के किरदार को उन्होंने आत्सात कर लिया है.बोलचाल बॉडी लैंग्वेज सब में वह अपनी छाप छोड़ते हैं. पीकू के किरदार को दीपिका ने बहुत सादगी और सहजता से अपनी छाप छोड़ी है.इरफ़ान की मौजूदगी फिल्म को और ज़्यादा खास बना देती है,सिर्फ डायलाग से ही नहीं फिल्म में उनके हाव् भाव भी गुदगुदा जाते हैं.

अन्य कलाकार भी अपने अपने अभिनय से इस फिल्म की रोचकता को बढ़ाते हैं. अनुपम रॉय का संगीत और फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक कहानी की तरह ही दिल को छूते हैं.फिल्म की कहानी की तरह डायलाग भी बेहतरीन है. कुलमिलाकर पीकू एक खास फिल्म है,जो सभी का मनोरंजन करने में सक्षम है

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