जब से रंगीन हुआ सिनेमा, तब से कुछ खोया ही है: अमित

जयपुर : उपन्यासकार, आलोचक और संगीतज्ञ अमित चौधरी ने फिल्म निर्माताओं से फिल्म निर्माण में बेहतर रंगों का समावेश करने का सुझाव देते हुए कहा है कि सिनेमा जब से रंगीन हुआ है तब से उसने कुछ खोया ही है. गुलाबी नगर के डिग्गी पैलेस में चल रहे पांच दिवसीय जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के तीसरे […]

By Prabhat Khabar Print Desk | January 24, 2015 2:12 AM

जयपुर : उपन्यासकार, आलोचक और संगीतज्ञ अमित चौधरी ने फिल्म निर्माताओं से फिल्म निर्माण में बेहतर रंगों का समावेश करने का सुझाव देते हुए कहा है कि सिनेमा जब से रंगीन हुआ है तब से उसने कुछ खोया ही है. गुलाबी नगर के डिग्गी पैलेस में चल रहे पांच दिवसीय जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के तीसरे दिन आज एक सत्र क्लियरिंग ए स्पेस बिटविन फेक्ट एंड फिक्शन में चौधरी ने कहा, जैसे ही सिनेमा श्वेत-श्याम से रंगीन हुआ, उसने कुछ खोया है. निर्माताओं को इस पर सोचने की जरुरत है कि फिल्म को रोचक बनाने के लिये प्रयोग में लिये गये रंगों को आकर्षक तरीके से पेश करें जिससे दर्शक उससे आकर्षित हो.

मशहूर शो चार्ली चैपलिन का उदाहरण देते हुए कहा कि यह शो श्वेत-श्याम और खामोश होने के बावजूद बहुत ज्यादा पंसदीदा रहा. कई पुरस्कारों से सम्मानित चौधरी ने दो अलग अलग कलाओं की तुलना का उदाहरण देते हुए कहा कि भारतीय शास्त्रीय नृत्य और पाश्चात्य थियेटर के सेट को जीवंत बनाने के लिये अलग अलग ढंग से रंगों का उपयोग किया जाता सजाया जाता है.

पत्रकार और उपन्यासकार राजकमल झा ने तथ्य और कल्पना (फेक्ट एंड फिक्शन) की तुलना करते हुए कहा कि कल्पना का आशय अंदर क्या है, जबकि तथ्य का अर्थ जो बाहर है. समाचार कक्ष में अपना ज्यादा समय बिताने वाले झा ने कहा कि इस कक्ष में हर क्षण नया समाचार आता है.

झा ने कहा न्यूज रुम में, चीजें तब तक काल्पनिक होती है जब तक की तथ्यों के साथ नहीं रखी जा सके. उन्होंने कहा कि तकनीक और तेजी से बढ रहे संचार के आज के दौर में केवल स्वयं के अंदर ऐसा स्थान है जहां कोई दूसरा इंसान नहीं झांक सकता. एक अन्य सत्र सेल्फी दी आर्ट ऑफ मेमोअर में कर्र्फ्यूड नाईट के लेखक बशारत पीर ने कहा कि आत्मकथा पूरी तरह से आपके उपर आधारित है. मेमोअर अपने आप से बातचीत भी हो सकती है अथवा किसी सुखद अनुभव को याद रखकर उसे लिखने को कहा जाता है.

लेखक मार्क गेविसेर ने कहा कि पत्रकार होने के नाते उन्हें काफी कुछ लिखना पडता है जिसे मेमोअर भी कहा जा सकता है वो लोगों से बातचीत पर आधारित है. मेमोअर को अच्छी तरीके से लिखने का तरीका है कि अपने आप से बातचीत की बजाय मिलने वाले को अच्छी तरीके से सुना जाये. उन्होंने सामान्य लेखन और आत्मकथा के बीच संबंध और तुलना के बारे में भी बताया.

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