वसीयत से नहीं ”काका” से प्रेम था अनीता को!

मुंबई:एक वक्त था जब अभिनेता राजेश खन्ना उर्फ काका के लोग दीवाने हुआ करते थे. उनके अभिनय को देख लडकियां उन्हें अपना दिल दे बैठती थी. ऐसे ही समय से अनीता आडवाणी राजेश खन्ना को जानतीं हैं. वह नहीं चाहती कि काका का सपना टूटे क्योंकि वे चाहते थे कि उनका घर म्यूजियम में तब्दील […]

By Prabhat Khabar Print Desk | August 7, 2014 11:05 AM

मुंबई:एक वक्त था जब अभिनेता राजेश खन्ना उर्फ काका के लोग दीवाने हुआ करते थे. उनके अभिनय को देख लडकियां उन्हें अपना दिल दे बैठती थी. ऐसे ही समय से अनीता आडवाणी राजेश खन्ना को जानतीं हैं. वह नहीं चाहती कि काका का सपना टूटे क्योंकि वे चाहते थे कि उनका घर म्यूजियम में तब्दील हो जाये. यही कारण है कि वे उनकी वसीयत के लिए लड़ रहीं हैं.

अपने और काका के बीच संबंध का खुलासा खुद अनीता ने एक इंटरव्यू के दौरान कर चुकीं हैं. उन्होंने कहा कि ‘मैं उनसे पहली बार तब मिली जब बहुत छोटी थी. उनके एक परिचित ने उन्हें काका की शूटिंग दिखाने ले गये. वो सेट पर एक कुर्सी पर तौलिया लपेटे बैठे थे. मैं उन्हें देखते ही रह गई.’

तब से ही अनीता उनकी दीवानी हो गईं थी. अनीता की माने तो उसके बाद से आज तक उन्हें कोई और अच्छा नहीं लगा. यह उनकी और काका की पहली मुलाकात थी. फिर दोनों दोबारा महबूब स्टूडियो में मिले तब अनीता की उम्र कोई 13 साल रही होगी. उसके बाद मैं अगले आठ-दस महीने उनसे लगातार मिलती रही.

अनीता ने बताया कि काका उन्हें देखकर काफ़ी ख़ुश हो जाते थे. उन्हें समझ में ही नहीं आता था कि इतना बड़ा सुपरस्टार उन्हें क्यों इतना पसंद करता है. फिर वह अपने गृहनगर जयपुर चली गई और दोनों का संपर्क ख़त्म हो गया.

फिर कई सालों बाद 1990-91 में दोनों दोबारा एक पार्टी में मिले. फिर धीरे-धीरे उनमें मिलने का सिलसिला शुरू हो गया. साल 2000 के बाद अनीता उनके मुंबई स्थित घर आशीर्वाद भी आने लगी. अनीता ने बताया काकाजी को अकेलेपन से बेहद डर लगता था. वो रात को तेज़ आवाज़ में टीवी चलाकर और घर की लाइटें ऑन करके सोते थे.

यह बात अनीता को बहुत अजीब लगी. काका अपनी फ़िल्में नहीं देखते थे. टीवी पर उनकी जब कोई फिल्म आती, तो अनीता कहती कि काकाजी, चलिए ये फ़िल्म देखें. तो वो कहते मुझे नहीं देखनी. तुम देखो. शायद अपने आपको देखना उन्हें पसंद ही नहीं था."

अनीता ने बताया कि काका को काम सलीक़े वाला पसंद था. कोई बात उनके मन की ना हो या कोई सामान अपनी जगह पर ना रखा हो तो वो बेहद ग़ुस्सा हो जाते थे. उनका स्टाफ़ उनसे थर-थर कांपता था. कई बार ग़ुस्से में वो खाने की प्लेट भी फेंक देते. लेकिन शाम होते ही वो बिलकुल बच्चे बन जाते. ज़िद करने लगते कि मुझे आइसक्रीम खानी है.

मुझे छोले-भटूरे खिलाओ. वग़ैरह-वग़ैरह. काफ़ी रोमांटिक तबियत के थे. कई बार अपने गाने मेरे सपनों की रानी पर नाचने लगते. काफ़ी धार्मिक भी थे. घर में पूजा-पाठ भी करते थे.

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