इंसानी अंतर्द्वंद की कहानी है ”मानसून शूटआउट”

II उर्मिला कोरी II फिल्म -मानसून शूटआउट निर्माता -गुनीत मोंगा कलाकार -विजय वर्मा ,नवाज़ुद्दीन सिद्दकी ,नीरज काबी ,गीतांजलि और अन्य रेटिंग – ढाई सिनेमा में प्रयोग मॉनसून शूटआउट इसी प्रयोगधर्मी सिनेमा की कड़ी में आती है खासकर फिल्म को बयां करने का तरीका हिंदी सिनेमा के लिए नया है. अपराधी पुलिस वाले ड्रामा से इतर […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 15, 2017 7:05 PM

II उर्मिला कोरी II

फिल्म -मानसून शूटआउट

निर्माता -गुनीत मोंगा

कलाकार -विजय वर्मा ,नवाज़ुद्दीन सिद्दकी ,नीरज काबी ,गीतांजलि और अन्य
रेटिंग – ढाई
सिनेमा में प्रयोग मॉनसून शूटआउट इसी प्रयोगधर्मी सिनेमा की कड़ी में आती है खासकर फिल्म को बयां करने का तरीका हिंदी सिनेमा के लिए नया है. अपराधी पुलिस वाले ड्रामा से इतर यह फिल्म है. फिल्म की कहानी एक अपराधी शिवा (नवाज़ुद्दीन ) और एक ईमानदार पुलिस आदि (विजय वर्मा ) के इर्द-गर्द घूमती है. आदि ( विजय वर्मा ) की नौकरी क्राइम ब्रांच में पुलिस अधिकारी के तौर पर पहले दिन से शुरू होती है. पहले ही दिन उनके सीनियर खान (नीरज काबी) के जरिए उन्हें पता चलता है कि हकीकत में किस तरह से केस सुलझाए जाते हैं. वह इसके खिलाफ है.वह इस तरह काम नहीं करना चाहता है. फिल्म का शीर्षक मॉनसून शूटआउट है इसलिए फिल्म का निर्णायक दृश्य बारिश में ही शूट हुआ है। आदी ने शिवा पर बंदूक ताना है आदि को उसे शूट करने का ऑर्डर मिला है लेकिन वह सोच में पड़ जाता है कि शिवा को जिन्दा पकड़ ले या उसे मार दे या जाने दे. गलत, सही या मध्य इन तीन निर्णयों के बीच कहानी बयां होती है. एक दृश्य के तीन पहलू. ये ट्रीटमेंट को अलग तो कर देता है लेकिन फिल्म कन्फ्यूजन बढ़ जाता है.
कहानी का बयां करने के लिए अपरंपरागत तरीका एक अच्छा विकल्प होता है लेकिन आपको उस के लिए अच्छी कहानी रखने की ज़रूरत है. जो इस फिल्म से नदारद है. यही इस फिल्म की सबसे बड़ी कमज़ोरी है. एक दृश्य के तीन परिणाम यह दर्शाने के लिए एंगेजिंग कहानी की ज़रूरत होती है. पर्दे पर जब कहानी दिखती है तो कहीं न कहीं कुछ छूटा सा दीखता है.
परफॉरमेंस के लिहाज से यह बहुत अच्छी फिल्म है. नायक की भूमिका में नज़र आ रहे अभिनेता विजय वर्मा अपने अभिनय से सहज और असरकारी रहे हैं . नवाजुद्दीन सिद्दकी हमेशा की तरह बेहतरीन रहे हैं. नीरज काबी और गीतांजलि का अभिनय भी अच्छा है बाकी के कलाकार भी कहानी के साथ अपने अभिनय से न्याय करते हैं. फिल्म के गीत – संगीत की बात करूं तो फिल्म में दो गाने हैं पहला गीत अँधेरी रात में दिया तेरे हाथ अपने बोल की तरह ही है हां दूसरा गीत पल ज़रूर अच्छा बन पड़ा है. सिनेमेटोग्राफी की बात करें तो मुंबई शहर के मिजाज को बेहतरीन तरीके से दर्शाया गया है। फिल्म के दूसरे पहलू औसत हैं. कुलमिलाकर कुछ अलग करने के चक्कर में यह फिल्म एंगेज कम कन्फूज ज़्यादा करती है

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