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Sudha Murthy: क्यों हमेशा अपने साथ चम्मच रखती हैं सुधा मूर्ति, वजह बताने पर ट्विटर पर करने लगी ट्रेंड.

Sudha Murthy: पद्मश्री से सम्मानित भारतीय शिक्षिका और लेखिका सुधा मूर्ति एक ऐसी शख्सियत हैं जिनसे लोग प्रेरित होते हैं. उनकी बातों को सुनना पसंद करते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि सुधा मूर्ति जब कहीं यात्रा के लिए जाती हैं अपने साथ चम्मच क्यों रखती हैं? वजह बताई तो ट्विटर पर ट्रेंड करने लगीं .

By Meenakshi Rai | July 26, 2023 1:09 PM
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Sudha Murthy: इंफोसिस के फाउंडर नारायण मूर्ति की पत्नी सुधा मूर्ति अपनी सादगी और प्रेरक भाषण के लिए विश्वभर में विख्यात हैं.भारतीय शिक्षिका और लेखिका सुधा मूर्ति अक्सर देश- विदेश की यात्रा पर जाती रहती हैं.वे बड़ी सादगी और सहजता से अपनी बातों को भी सामने रखती हैं . एक यूट्यूब साक्षात्कार में सुधा मूर्ति ने कहा कि वह जब भी कहीं विदेश जाती हैं तो अपना खाना साथ ले जाती हैं क्योंकि वो शुद्ध शाकाहारी हैं और उनकी चिंता यह है कि अगर नॉन-वेज डिश में एक ही चम्मच का इस्तेमाल किया गया तो क्या होगा ? वेज और नॉन वेज के लिए एक ही चम्मच पर अपनी चिंता को लेकर सुधा मूर्ति ट्विटर पर ट्रेंड कर रही हैं. अपने साक्षात्कार में उन्होंने भोजन, रेस्तरां के बारे में बात की थी और उनकी भोजन संबंधी प्राथमिकताएं वायरल हो गईं.

'What if same spoon is used for veg & non-veg, food,' says Sudha Murty; remark goes viral

सुधा मूर्ति (Sudha Murthy) ने यूट्यूब साक्षात्कार में अपने फेवरेट रेस्तरां और भोजन के बारे में बात की थी . उन्होंने कहा था कि वे जब भी बाहर जाती हैं तो शाकाहारी रेस्तरां खोजती हैं या फिर खाने-पीने की चीजों से भरा एक बैग साथ ले जाती हैं जिसमें पोहे जैंसे कुछ तैयार खाना होते हैं जिसे आपको सिर्फ पानी में गर्म करना होता है. उन्होंने बताया था कि वे शाकाहारी हैं और आम तौर पर अपना भोजन साथ रखती हैं लेकिन उन्हें चिंता है कि शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह के भोजन के लिए एक ही चम्मच का उपयोग किया जाता है। उनके इस इंटरव्यू के बाद ट्विटर उपयोगकर्ताओं ने तुरंत ब्रिटेन के प्रधान मंत्री ऋषि सुनक की विभिन्न प्रकार के मांस के साथ तस्वीर पोस्ट की और पूछा कि क्या ब्रिटेन के प्रधान मंत्री के पास अपनी सास सुधा मूर्ति के लिए अलग चम्मच हैं ?

सुधा मूर्ति ने कहा कि ‘जब भी वे विदेश जाती हैं तो अपने साथ खाने-पीने की चीजों से भरा बैग ले जाती हैं. वह 25-30 रोटियां बनाती हैं और भुनी हुई सूजी लेती हैं ताकि गर्म पानी डालने पर वह खाने के लिए तैयार हो जाए. सुधा मूर्ति ने कहा, वे अपने साथ कुकर भी रखती हूं। जो उन्होंने अपनी दादी से सीखा है. इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे किस देश में हैं क्योंकि वे अपना खाना साथ ले जाती हैं.’

कौन हैं सुधा मूर्ति

सुधा मूर्ति केवल एक इंजीनियरिंग शिक्षक ही नहीं बल्कि एक प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ता और लेखिका भी हैं. सुधा मूर्ति को सामाजिक कार्यों में योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है .2006 में उन्हे पद्मश्री मिला था . सुधा मूर्ति वर्तमान में इंफोसिस फाउंडेशन के अध्यक्ष के रूप में कार्य करती हैं. वे मुख्य रूप से अपने सामाजिक, परोपकारी कार्यों के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने कन्नड़, मराठी और अंग्रेजी भाषा में कई उत्कृष्ट पुस्तकें भी लिखी हैं.

जीवन और शिक्षा

19 अगस्त, 1950 को कर्नाटक में शिगगांव, हावेरी में सुधा मूर्ति का जन्म हुआ था. उनके पिता का नाम डॉ आरएच कुलकर्णी और माता का नाम विमला कुलकर्णी है . उन्होंने कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (केएलई टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी) से इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में स्नातक किया. सुधा मूर्ति ने भारतीय विज्ञान संस्थान से कंप्यूटर विज्ञान में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की और उन्हें स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया था. स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने जे.आर. डी.टाटा को पोस्टकार्ड लिखा था और उसमें यह शिकायत की थी कि ‘टाटा मोटर्स’ में लिंग पक्षपात किया जाता है, क्योंकि वहां केवल पुरूषों को ही नौकरी दी जाती है. इस शिकायत के कारण ‘टाटा मोटर्स’ के अधिकारियों ने उन्हें इस विषय पर लंबी चर्चा के लिए बुलाया, सुधा ने ‘टेल्को’ में एक ग्रेजुएट ट्रेनी के रूप में अपना कैरियर आरंभ किया.सुधा मूर्ति ने जब वह पुणे में टेल्को में एक इंजीनियर के रूप में कार्यरत थीं, तब एनआर नारायण मूर्ति से विवाह किया था. वे बैंगलोर विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर भी हैं. वह क्राइस्ट यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर भी रहीं थीं.उन्होंने इंफोसिस फाउंडेशन की स्थापना की और वर्तमान में अध्यक्ष हैं.1996 में, सुधा मूर्ति ने एक पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना की। ट्रस्ट ने अब तक बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में 2 हजार से ज्यादा घर बनाए हैं. उनके पास प्रत्येक स्कूल के लिए एक पुस्तकालय का भी सपना है और अब तक उन्होंने 70 हजार से अधिक पुस्तकालय स्थापित किए हैं. उनके संगठन ने अब तक 16 हजार से अधिक सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण भी कराया है. सेवा कार्यों के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्हें पद्मश्री से नवाजा था और 2023 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया.

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