फ्री में चीजें बांटकर भारी आर्थिक संकट में फंस जाएगा भारत? जानिए क्या कहते हैं आईएमएफ और नीति निर्धारक

नीति निर्धारित करने वाले अधिकारियों का कहना है कि भारत में जनता को दी जाने वाले फ्री की योजनाएं व्यावहारिक नहीं हैं. इस प्रकार की योजनाएं लंबे समय तक नहीं चलती हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 7, 2022 2:05 PM

नई दिल्ली : कोरोना महामारी की बिसात पर पड़ोसी देश श्रीलंका में उपजे आर्थिक संकट से भारत को लेकर भी अनेक सवाल खड़े किए जा रहे हैं. श्रीलंका में पैदा हुए विकट आर्थिक हालात के पीछे सरकार की गलत नीतियों और मुफ्तखोरी के खेल को अधिक जिम्मेदार बताया जा रहा है. बताया यह भी जा रहा है कि भारत में भी मुफ्तखोरी की संस्कृति तेजी से पनप रही है, जिसका निकट भविष्य में बड़े पैमाने पर प्रभाव दिखाई दे सकता है. वहीं, अगर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की रिपोर्ट की मानें तो कोरोना काल के दौरान केंद्र सरकार की ओर से मुफ्त में अनाज बांटने से भारत में अत्यंत गरीबों की संख्या में बढ़ोतरी होने का खतरा टल गया. रिपोर्ट कहती है कि अगर सरकार इस प्रकार का कदम नहीं उठाती, तो भारत में गरीबों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी होती.

क्या कहते हैं नीति निर्धारक अधिकारी

नीति निर्धारित करने वाले अधिकारियों का कहना है कि भारत में जनता को दी जाने वाले फ्री की योजनाएं व्यावहारिक नहीं हैं. उनका कहना है कि इस प्रकार की योजनाएं लंबे समय तक नहीं चलती हैं. खासकर, कर्ज के भार तले दबे राज्यों को तो इस प्रकार की योजनाओं से दूरी ही बनाए रखना चाहिए, क्योंकि यह उनके लिए घातक है. उन्होंने कहा कि हमें श्रीलंका के आर्थिक संकट से सबक लेना चाहिए.

भारत में फ्री में देने का चल रहा राजनीतिक खेल

भारत में पिछले महीने समाप्त हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान लोगों को मुफ्त में चीजें और पैसा देने का जमकर ऐलान किया गया. कोई लैपटॉप तो कोई स्कूटी, स्मार्टफोन और पैसा देने का ऐलान किया. पंजाब में चुनाव होने के बाद सीएम भगंवत सिंह मान ने दो कदम आगे बढ़कर ऐलान किया. पंजाब में भगवंत मान ने 300 यूनिट तक बिजली फ्री में देने में देने का ऐलान किया है. हालांकि, इससे पहले सीएम चरणजीत सिंह चन्नी की सरकार गरीबों और दलितों को 200 यूनिट तक फ्री में बिजली मुहैया करा रही थी. मान के इस कदम से सरकार को सालाना 9000 रुपये अतिरिक्त खर्च उठाने पड़ेंगे. इसके साथ ही, उन्होंने राज्य में 18 से अधिक उम्र की करीब 1.13 करोड़ महिलाओं को 1000 रुपये प्रति महीने भुगतान करने का ऐलान किया. इससे सरकार के सालाना खर्च में 13000 करोड़ रुपये का इजाफा होगा.

मुफ्त अनाज योजना से नहीं बढ़ी अति गरीबों की संख्या : आईएमएफ

वहीं, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की दस्तावेजी रिपोर्ट की मानें तो गरीबों को मुफ्त अनाज उपलब्ध कराने वाली प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेवाई) ने कोरोना महामारी से प्रभावित 2020 में भारत में अत्यधिक गरीबी के स्तर को 0.8 फीसदी के निचले स्तर पर बरकरार रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. आईएमएफ की ओर से ‘महामारी, गरीबी और असमानता : भारत से मिले साक्ष्य’ शीर्षक से जारी दस्तावेज में कहा गया है कि महामारी से पहले भारत में वर्ष 2019 के दौरान भारत में अत्यधिक गरीबी 0.8 फीसदी के निचले स्तर पर थी. महामारी के दौरान सरकार की ओर से गरीबों को मुफ्त में अनाज देने की योजना 2020 में भी इसे निचले स्तर पर बरकरार रखने में महत्वपूर्ण साबित हुई.

क्या है सरकार मुफ्त अनाज योजना

बताते चलें कि कोरोना महामारी का प्रसार पूरी दुनिया में बढ़ने के साथ ही भारत में केंद्र की मोदी सरकार की ओर से मार्च 2020 में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेएवाई) की शुरुआत की गई. इसके तहत केंद्र सरकार हर महीने प्रति व्यक्ति पांच किलो अनाज मुफ्त उपलब्ध कराती है. यह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (एनएफएसए) के तहत काफी सस्ती दर दो रुपये और तीन रुपये किलो पर उपलब्ध कराये जा रहे अनाज के अतिरिक्त है. पीएमजीकेएवाई को सितंबर 2022 तक बढ़ा दिया गया है.

Also Read: UP Free Ration Scheme: यूपी में अगले तीन महीने तक मिलेगा फ्री राशन, कार्ड में ऐसे जोड़ें नए सदस्य का नाम
भारत में कब कितनी गरीबी

  • वर्ष 2011-12 में निम्न पीपीपी के तहत 1.9 डॉलर की गरीबी रेखा के आधार पर गरीबी का स्तर 12.2 फीसदी था.

  • वर्ष 2013 में खाद्य सुरक्षा कानून के अमल में आने के बाद से सस्ती दर पर खाद्यान्न उपलब्ध कराने की व्यवस्था तथा आधार के जरिये इसके

  • और बेहतर तरीके से क्रियान्वयन से गरीबी कम हुई.

  • वर्ष 2016-17 में अत्यधिक गरीबी दो फीसदी के निचले स्तर पर पहुंची थी.

  • क्रय शक्ति समता (पीपीपी) के आधार पर 68 फीसदी उच्चतम निम्न मध्यम आय (एलएमआई) गरीबी रेखा के अनुसार, 3.2 डॉलर प्रतिदिन के हिसाब से महामारी से पहले वर्ष 2019-20 में गरीबी 14.8 फीसदी रही.

Next Article

Exit mobile version